अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
नई सरकार के गठन की प्रक्रिया तो प्रारंभ हो चुकी है। यह देखने वाला है कि इस बार कैसे सरकार बनती है और कौन कौन सी दलों का समर्थन मिलता है। नरेंद्र मोदी के इस्तीफे के बाद अब उन्हें बारहवें प्रधानमंत्री चुना जाएगा, अगर वह पुनः चुने जाते हैं।
सरकार बनाने की प्रक्रिया में, राष्ट्रपति द्वारा प्रमुख दल के नेता को सरकार बनाने का आह्वान किया जाता है। फिर उन्हें अधिकारिक रूप से सरकार गठित करने का अधिकार होता है। इस प्रक्रिया में विपक्षी दलों का समर्थन भी महत्वपूर्ण होता है।
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार बनाने की कवायद में जुटी है तो वहीं सहयोगी दलों की डिमांड लिस्ट भी सामने आने लगी है। सरकार गठन के लिए अहम एन फैक्टर के दोनों एन यानि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की अपनी शर्तें हैं तो बाकी घटक दलों की भी अपनी-अपनी डिमांड।
चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने लोकसभा स्पीकर के साथ सरकार में अहम मंत्रालयों पर दावा ठोकने के साथ ही आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठा दी है। वहीं, नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने भी यूसीसी पर चर्चा, अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार की शर्त रख दी है।
जीरो सीट वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के प्रमुख रामदास अठावले ने भी एक मंत्री पद की डिमांड कर दी है। मंत्रिमंडल के लिए जेडीयू ने चार सांसदों पर एक मंत्री का फॉर्मूला दिया तो वहीं पांच पर एक के फॉर्मूले की भी चर्चा है।
कैबिनेट बर्थ को लेकर फॉर्मूलों की चर्चा के बीच एनडीए के कई ऐसे दल भी हैं जिनके पास समर्थन के नाम पर एक-दो सीटें हैं लेकिन वह भी कैबिनेट बर्थ के लिए डिमांड कर रहे हैं। बीजेपी के लिए लायबिलिटी बन गईं एक-दो सीटों वाली ऐसी पार्टियों की बात करने से पहले ये जान लेना भी जरूरी है कि एनडीए के किस दल को कितनी सीटें मिली हैं।
NDA में किस पार्टी की कितनी सीटें?
बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को 293 सीटों पर जीत मिली है। इसमें 240 सीटों पर जीत के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। सीटों के लिहाज से एनडीए में 16 सीटों वाली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) दूसरे और 12 सीटों वाली नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) तीसरे नंबर पर है। बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 293 सीटों पर जीत हासिल की है जो बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों के जादुई आंकड़े से 21 ज्यादा है। गठबंधन की चौथी सबसे बड़ी पार्टी एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना है जिसे सात सीटों पर जीत मिली है।
5 सांसदों वाली चिराग की पार्टी NDA में 5वीं बड़ी पार्टी
बिहार की छह लोकसभा सीटों पर चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने उम्मीदवार उतारे थे। एलजेपीआर को छह में से पांच सीटों पर जीत मिली। पांच सीटों वाली एलजेपीआर सीटों के लिहाज से एनडीए में बीजेपी, टीडीपी, जेडीयू और शिवसेना के बाद पांचवी सबसे बड़ी पार्टी है। इन दलों के अलावा एनडीए का कोई भी घटक दल पांच सीट के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सका। एक और दो सीटें जीतने वाली पार्टियों की संख्या ही अधिक नजर आती है।
NDA के वो दल जिनके एक या दो सांसद हैं
एनडीए की 10 पार्टियां ऐसी हैं जिनके पास संख्याबल के नाम पर एक या दो सांसद ही हैं। पश्चिमी यूपी की सियासत में अच्छा प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के दो सांसद हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (सेक्यूलर) यानि जेडीएस और पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी (जेएसपी) के भी दो ही सांसद हैं।
अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाली अपना दल (सोनेलाल), जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर), अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), प्रेम सिंह तमांग गोले की सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम), असम गण परिषद, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) यूपीपीएल के एक-एक सांसद ही हैं।
कैसे लायबिलिटी बन गए हैं एक-दो सीटों वाले ये दल
नंबरगेम की बात करें तो बीजेपी, टीडीपी, जेडीयू, शिवसेना और एलजेपीआर, पांच दलों की सीटों से ही एनडीए का नंबर 280 पहुंच जा रहा है जो बहुमत के लिए जरूरी 272 के जादुई आंकड़े से आठ अधिक है। संसद में प्रतिनिधित्व वाले एनडीए के बाकी 10 दलों के 13 सांसद हैं लेकिन इन दलों में ऐसे कद्दावर चेहरे हैं जिन्हें दरकिनार कर पाना इतना भी आसान भी नहीं होने वाला। अपना दल के खाते में एक सीट आई है लेकिन वह इकलौती सांसद खुद पार्टी प्रमुख अनुप्रिया पटेल हैं। अनुप्रिया पीएम मोदी की दोनों सरकारों में मंत्री रही हैं।
हम पार्टी की बात करें तो खुद जीतनराम मांझी संसद पहुंचे हैं। मांझी बिहार सरकार में कई बार मंत्री रहे हैं, पूर्व मुख्यमंत्री हैं। अजित पवार की एनसीपी से सुनील तटकरे जीते हैं. प्रफुल्ल पटेल जैसा बड़ा चेहरा पहले से ही राज्यसभा में है। झारखंड में बीजेपी को बाबूलाल मरांडी के आने और प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बावजूद नुकसान हुआ है लेकिन सुदेश महतो की आजसू अपनी एक सीट बचाने में सफल रही है। जेडीएस की बात करें तो पार्टी ने कोई डिमांड नहीं की लेकिन कुमारस्वामी के लिए कैबिनेट में सीनियर पोस्ट की डिमांड कर भी दी है।
लोकसभा में जीरो संख्याबल वाले रामदास अठावले की कैबिनेट में भागीदारी की डिमांड के बाद ये दल भी कैबिनेट में भारी-भरकम पोस्ट की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
रुपये के लेन-देन में छुट्टे कराने के लिए एक टर्म यूज होता है- चिल्लर। चिल्लर यानि एक-दो के सिक्के। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अब ये एक दो सीटों वाली पार्टियों के हैवीवेट नेताओं को एनडीए सरकार में एडजस्ट करना पीएम मोदी के लिए सिरदर्द बन सकता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."