दुर्गेश्वर राय की खास रिपोर्ट
क्या आप जानते हैं ‘हीरामंडी’ की असली कहानी? आखिर क्यों भंसाली ने इस कहानी को लोगों के सामने लाने का सोचा! आइए सब बताते हैं।
जब भंसाली ने ये फिल्म बनानी शुरू की तो भारत ने भी कई लोगों ने इस नाक-भौं सिकोड़ी तो पाकिस्तान के फिल्म जगत लोग नाराज हो उठे, उनका कहना था कि पाकिस्तान की किसी जगह पर भंसाली कैसे फिल्म बना सकते हैं। वैसे हीरा मंडी की अपना एक लंबा इतिहास रहा है। यहां की तवायफें अपने फन के लिए बहुत शोहरत पाती रही हैं। वैसे अब यहां भी सबकुछ बदल चुका है। इस जगह को वेश्यावृत्ति करने वाली जगह के तौर पर ज्यादा जानते हैं।
हिंदी सिनेमा के मौजूदा शोमैन संजय लीला भंसाली का तवायफ़ों की ओर हमेशा से एक खास झुकाव रहा है। दरअसल, खुद मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा से सटे चॉल में बड़े हुए भंसाली ने इन कोठेवालियों की बदनसीब जिंदगी को करीब से देखा है। इसलिए ‘देवदास’, ‘सांवरिया’ और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ जैसी फिल्मों के जरिए वह तवायफों की जिंदगी की जद्दोजहद, उनके दर्द, अधूरे प्यार जैसे एहसासों को पर्दे पर उभारते रहे हैं।
वहीं, अपनी पहली वेब सीरीज ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ के जरिए भी भंसाली ने समाज की मुख्य धारा से अलग जीने वाली तवायफ़ों को इज्ज़त, प्यार और सहानुभूति दिलाने की कोशिश की है। भंसाली की ये तवायफें लाहौर की रानियां हैं और उन्होंने अपने चिरपरिचित अंदाज में जो शान-औ-शौकत इन्हें बख्शी है, उसे देख राजे-महाराजे भी शरमा जाएं। हालांकि, इस तमाम चमक-दमक और भव्यता के बावजूद स्क्रीनप्ले की खामियां अखरती हैं।
हीरा मंडी को अगर शाब्दिक अर्थों में देखें तो इसका मतलब होगा हीरों का बाजार या डायमंड मार्केट। लेकिन इसका हीरों के किसी बाजार या बिक्री से लेना देना नहीं है। हालांकि कुछ लोगों को ये भी लगता रहा है कि शायद खूबसूरत लड़कियों के चलते इसका नाम हीरा मंडी पड़ा होगा। इसे शाही मोहल्ला भी कहा जाता है। ये लाहौर का बहुत प्रसिद्ध और ऐतिहासिक इलाका है। इसका नाम सिख राजा रणजीत सिंह के एक मंत्री हीरा सिंह के नाम पर पड़ा। जिसने यहां पर अनाज मंडी का निर्माण कराया।
रणजीत सिंह को तवायफ से हुई मोहब्बत और फिर…
1799 में, रणजीत सिंह नाम के एक 22 वर्षीय मिसलदार ने लाहौर पर कब्जा कर लिया और 1801 में खुद को पंजाब का महाराजा घोषित कर दिया। उन्होंने तवायफों की संस्कृति और उनके दरबारी डांस सहित मुगल शाही रीति-रिवाजों को फिर से शुरू किया। एक बार फिर, शाही मोहल्ले की तवायफों को शाही दरबार में मौका मिला। 1802 में, रणजीत सिंह को मोरन नाम की एक मुस्लिम तवायफ से प्यार हो गया, जिसके कारण उन्होंने शाही मोहल्ले के पास पापड़ मंडी में एक अलग हवेली बना ली। 1839 में सिंह की मौत के बाद, जनरल से प्रधानमंत्री बने हीरा सिंह डोगरा ने शाही मोहल्ले को अपने तरीके से चलाना शुरू किया।
शाही मोहल्ला बनने लगा वेश्यावृत्ति का ठिकाना
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के बाद यह क्षेत्र वेश्यावृत्ति का केंद्र बन गया। इसमें ऐसा था कि सैनिक उन महिलाओं के साथ रहेंगे जिन्हें उन्होंने पकड़ लिया था। धीरे-धीरे यह एरिया वेश्यावृत्ति का अड्डा बन गया। ये दिन के समय एक बाज़ार की तरह दिखता है, जिसमें खाने, खुस्सा (पारंपरिक मुगल जूते) और संगीत से जुड़ी चीजें मिलती हैं, लेकिन रात में, वेश्यालय खुल जाते हैं और वेश्यावृत्ति शुरू हो जाती है। Dawn.com पर 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘एस्कॉर्ट वेबसाइटों और सोशल मीडिया के कारण यहां का बिजनेस काफी प्रभावित हुआ है।’
हीरामंडी को कभी तहजीब-मेहमाननवाजी और कल्चर के लिए जाना जाता था। मुगल काल में यहां तवायफें संगीत और नृत्य के जरिए अपनी संस्कृति को पेश करती थीं। लेकिन आज ये जगह रेड लाइट एरिया की वजह से फेमस है।
लाहौर के हीरा मंडी में वेश्यावृत्ति एक पारिवारिक व्यवसाय है, जो माँ से बेटी को बेरहमी से, खुलेआम और बिना किसी शर्म के दिया जाता है।
संजय लीला भंसाली की हाल ही में रिलीज़ हुई नेटफ्लिक्स सीरीज़ हीरामंडी में दिखाए गए ग्लैमरस संस्करण के विपरीत, इस क्षेत्र का वास्तविक इतिहास कहीं ज़्यादा गहरा है।
दिन में कुछ रात में कुछ
दिन के समय हीरा मंडी पाकिस्तान के किसी सामान्य बाजार की तरह ही लगता है, जहां ग्राउंड फ्लोर की दुकानों पर तमाम तरह के सामान-बढ़िया खाना और संगीत के उपकरण मिलते हैं। लेकिन शाम होते ही दुकानों के ऊपर की मंजिलों पर बने चकलाघर आबाद होने लगते हैं। वर्तमान में तो हालात ऐसे हैं कि लाहौर में खुले आम इस जगह का नाम लेने में भी लोगों को शर्म महसूस होती है।
रुतबेदार और खास धमक वाली होती थी यहाँ की औरतें
इस मंडी में रहने वाली तवायफों के कभी बड़े लोग दीवाने हुआ करते थे, एक खास धमक इन औरतों की हुआ करती थी, लेकिन जो इज्जत, शोहरत और रुतबा इस मंडी मे बची औरतों को आज नहीं है। ज्यादातर ने हीरा मंडी को छोड़ दिया है अब वो इस जगह से काफी दूर रहती हैं और अपना पेशा भी बदल लिया है।
मुजरा करने वाली जिस्म नहीं बेचा करती थी
हीरा मंडी की रहने वालियों की तरह ही हीरा मंडी की कहानी भी है, जो आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। पाकिस्तान के एतिहासिक शहर लाहौर में बादशाही मस्जिद के करीब है हीरा मंडी।
हीरा मंडी का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इस मंडी पर जवानी आई मुगलकाल में। मुगलकाल में लाहौर की हीरामंडी में सुरों की महफिल सजती और शहर के शौकीन लोग इस मंडी का रुख करते। आस-पास के बाजारों में भी खूब रौनक रहा करती थी।
एक खास बात उस जमाने में ये हुआ करती थी कि जिस्म का सौदा इन बाजारों में नहीं होता था। जिस्म का सौदा करने वाली वेश्या अलग हुआ करती थीं और नाचने-गाने वाली अलग।
इन कोठों पर बचपन से ही लड़कियों को रियाज कराया जाता था और फिर वो गाना शुरू करतीं। उन्हें शायरी और संगीत की बाकायदा तालीम दी जाती थी। यहां तक कि अमीर लोग अपने बेटों को शायरी और गाने की सीख लेने के लिए इस मंडी में जाने की सलाह देते।
जब गानेवालियों को भी जिस्म का सौदा करना पड़ा
मुगलों का दौर खत्म हुआ तो अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान पर राज करना शुरू कर दिया। (तब पाकिस्तान अलग देश नहीं था) इस दौर में धीरे-धीरे मुजरा करने वाली और वेश्या के बीच की दीवार ढहने लगी।
अब एक मुजरा करने वाली को जिस्म का सौदा करने वाली भी माना जाने लगा। हालात बदले जरूर लेकिन हीरा मंडी की रौनकें कायम रहीं। गली से निकलता हर आम-ओ-खास नजर भर के एक बार ऊपर की तरफ जरूर देखता और चारों ओर बिखरे हुस्न को निहार लेता।
आजादी के बाद लाहौर पाकिस्तान का हिस्सा बना। हीरा मंडी को लेकर कभी-कभार सवाल भी हुए लेकिन ये मंडी सजती रही। इस मंडी के लिए सबसे बड़ा खतरा बना टेक्नोलॉजी का विकास। मोबाइल फोन, इंटरनेट, फेबसुक, ट्विटर के आने के बाद ये मंडी अपने आखिरी दिन गिनने लगी।
वक्त के साथ बदल गई वेश्यावृति
मुजरे के शौकीन अब नहीं रहे, गीत-संगीत लोगों के मोबाइल फोन पर आ गया तो अब भला कौन हीरा मंडी जाता। दूसरी तरफ शहर में वेश्यावृति भी इंटरनेट पर आ गई।
पाकिस्तान के अखबार डॉन के मुताबिक, लाहौर में फेसबुक के जरिए लड़कियां तय कर लेती हैं कि कहां मिलना है और स्काइप के जरिये जिस्म के सौदे हो जाते हैं।
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हीरा मंडी में कभी रहने वाली तवायफों में आज कुछ लाहौर में बेहद आलीशान जिंदगी जी रही हैं, ये वो हैं जो आज ग्राहकों तक लड़कियां पहुंचाती हैं। हालांकि ये कहती हैं कि उनके विजनेस का क्या होगा जब स्काइप के जरिए 300 रुपये में रातभर के लिए लड़की मिल जाती है।
‘हीरामंडी’ वेब सीरीज की कहानी
आजादी के पहले के दौर में सेट ये कहानी मूल रूप से आजादी की लड़ाई में तवायफ़ों के भुला दिए गए योगदान की है, जिसमें इश्क़, बदले और बग़ावत का तड़का है। ‘हीरामंडी’ की हुज़ूर मल्लिका जान (मनीषा कोइराला) का पूरे हीरामंडी में सिक्का चलता है। अपनी ऐंठ और ग़ुरूर के आगे वह ना नवाबों को भाव देती है न अंग्रेज़ों को। मल्लिका की बड़ी बेटी बिब्बो जान (अदिति राव हैदरी) हीरामंडी की शान है, वहीं छोटी बेटी आलमज़ेब (शरमिन सहगल) को वह कोठे पर बिठाने की तैयारी में हैं।
मसला यह है कि बिब्बो का असल मकसद अपनी मां की विरासत को आगे बढ़ाने के बजाय देश को गुलामी से आज़ाद कराना है, तो शेर-ओ-शायरी का शौक रखने वाली आलम इस पेशे में ही नहीं उतरना चाहती। उसे एक नवाबज़ादे ताज़दार बलोच (ताहा शाह) से इश्क़ है, जिसकी ख़ातिर वह हीरामंडी से भाग खड़ी होती है। इधर, मल्लिका की मरहूम बहन रेहाना की बेटी फरीदन (सोनाक्षी सिन्हा) उसकी मुश्किलें बढ़ाती है। फरीदन का एक ही मकसद है, मल्लिका का घमंड तोड़ना। इनके अलावा, मल्लिका की छोटी बहन वहीदा (संजीदा शेख) भी है, जो हर कदम पर मल्लिका के हाथों ज़लील होती रहती है। लज्जो (ऋचा चड्ढा) भी है, जो एक नवाबज़ादे के इश्क़ में गिरफ्तार है। अब नवाबों, अंग्रेजों और आजादी के दीवानों के बीच चल रही कश्मकश में इन तवायफों की जिंदगी क्या मोड़ लेती है? वे अपने-अपने मकसद में कितनी कामयाब होती हैं? यह सीरीज देखकर पता चलेगा।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."