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November 22, 2024 7:52 pm

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राजनीति के जुनूनी आशिक ; जीत की नहीं है कोई उम्मीद फिर भी वफा निभा रहे हैं लाल झंडे से गंगा दीन…

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जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

आजमगढ़ः साल 2015… गंगादीन ग्राम प्रधान पद के लिए प्रचार करते हुए सवर्ण जाति के एक वोटर के घर गए। उन्हें एक गिलास में पानी दिया गया। गंगादीन ने देखा कि जिस गिलास में उन्हें पानी दिया गया है, वह बेहद गंदा है और ऐसा लगता है कि लंबे समय से इसका प्रयोग भी नहीं किया गया है। गंगादीन समझ गए कि उन्हें ऐसे गिलास में पानी क्यों दिया गया है? जातिगत भेदभाव को मानने वाले परिवारों में अक्सर अनुसूचित जाति के लोगों के लिए अलग से एक इसी तरह का गिलास रखा जाता था। गंगादीन ने उनसे कहा, ‘मुझे आपके पानी की जरूरत नहीं है।’ और वहां से चले गए।

इस घटना के लगभग एक दशक बाद गंगा दीन पूर्वी उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र लालगंज से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के टिकट पर सांसदी का चुनाव लड़ रहे हैं। गंगादीन कहते हैं, ‘मुझे इस चीज की आदत थी कि सवर्ण लोग हमारे इस्तेमाल किए गए बर्तनों से पानी नहीं पीते थे। 30 साल पहले आज़मगढ़ में वामपंथी छात्रों के एक विरोध प्रदर्शन में जाने के बाद मैंने पाया कि पार्टी में जात-बिरादरी की कोई अवधारणा नहीं थी। वहां सभी समान रूप से रहते हैं और आपस में भाईचारा रखते हैं।’

लाल सलाम से इस्तकबाल

सफेद शर्ट, जींस और स्नीकर्स पहने गंगा दीन एक नीम के पेड़ के नीचे एक चारपाई पर बैठे हैं, जो गर्मी की धूप से बचने के लिए मुश्किल से ही एक आश्रय का काम करता है। सीमांत किसान के बेटे गंगादीन ने आठवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया था, लेकिन वह जब बात करते हैं तो ईमानदारी और आत्मविश्वास के साथ बोलते हैं जैसा कि एक प्रतिबद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता अक्सर करते हैं। जब मोबाइल फोन की घंटी बजती है तो वह फोन उठाकर “लाल सलाम” से कॉलर का इस्तकबाल करते हैं। स्थानीय तहसील में एक टाइपिस्ट का काम करने वाले गंगादीन जानते हैं कि वह चुनाव नहीं जीत रहे हैं। असल में उन्हें अपनी जमानत भी वापस मिलने की संभावना नहीं है। उनके पहले कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ने वालों के साथ तो ऐसा ही हुआ था।

चुनाव लोकतंत्र का त्योहार है

लालगंज नाम से ही लाल ‘गढ़’ की छवि उभरती है। साल 2014 में एससी-आरक्षित इस सीट से सीपीआई उम्मीदवार हरि प्रसाद सोनकर को केवल 10,523 वोट (लगभग 1.2%) मिले थे। साल 2019 में त्रिलोकीनाथ को 8,843 (1% से भी कम) मिले थे। ऐसे में ऐसी पार्टी से चुनाव लड़ने का क्या मतलब है? इस सवाल पर गंगादीन कहते हैं, ‘चुनाव लोकतंत्र का त्योहार है। हमें इसमें भाग लेना चाहिए।’ लालगंज में बसपा, सपा और भाजपा प्रमुख दल हैं। बीएचयू में अंग्रेजी साहित्य पढ़ाने वाली 44 साल की इंदु चौधरी बसपा की उम्मीदवार हैं। बीजेपी ने साल 2014 की विजेता नीलम सोनकर को फिर से मैदान में उतारा है, जो गोरखपुर विश्वविद्यालय से परास्तानक हैं। 71 साल के दारोगा प्रसाद सरोज सपा के कैंडिडेट हैं। लालगंज में बसपा मजबूत है, उसने साल 2019 समेत पिछले पांच लोकसभा चुनावों में से तीन में जीत हासिल की है।

कम्युनिस्ट पार्टी की कुंडली

51 साल के गंगा दीन का मानना है कि वोटों को छोड़ दें तो सीपीआई इलाके में कहीं अधिक सक्रिय और लोकप्रिय है। उनका कहना है, ‘पार्टी उन लोगों को काफी पसंद है, जिनके लिए हम साल भर काम करते हैं लेकिन चुनाव के दौरान, वे अपनी-अपनी जातियों के लिए वोट करते हैं। क्या करें। सब पर जात का भूत सवार है।’ हालांकि, हमेशा से ऐसा नहीं था। तकरीबन 100 साल पहले कानपुर में स्थापित सीपीआई 1950 और 60 के दशक में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत थी। साल 1957 में यह लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी थी। साल 1962 में अविभाजित सीपीआई ने लगभग 10% वोटों के साथ देश भर में 29 सीटें हासिल की थीं। दूसरे शब्दों में प्रत्येक 10 भारतीयों में से एक ने कम्युनिस्ट सरकार के लिए मतदान किया।

साल 2004 में भी वामपंथी संगठनों (सीपीआई, सीपीएम, फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी) ने संयुक्त रूप से 61 सीटें जीती थीं, जो कुल वोटों का 8% था। हालांकि, 2019 तक वामपंथियों का वोट शेयर 3% से कम हो गया और सीटें घटकर 6 रह गईं। सीपीआई ने साल 2023 में राष्ट्रीय पार्टी का अपना प्रतिष्ठित दर्जा भी खो दिया। यह गिरावट उन राज्य विधानसभाओं में भी दिखती है, जहां कभी वामपंथ का दबदबा था। साल 1974 में यूपी विधानसभा में सीपीआई के पास 16 सीटें थीं, जो अब जीरो है।

बसपा ने दिया ऑफर

एक स्थानीय बसपा नेता ने गंगादीन को ऑफर किया कि कॉमरेड, आप किस पार्टी में पड़े हैं? हमारे पास आ जाइये लेकिन गंगा दीन ने मना कर दिया। उन्हें अब भी कम्युनिस्ट पार्टी पर भरोसा है। उन्होंने कहा कि मैं कम्युनिस्टों में शामिल हुआ क्योंकि मजदूरों की लड़ाई ये पार्टी अपना समझ कर लड़ती है। उनके लिए इस चुनाव के प्रमुख मुद्दे शिक्षा, बेरोजगारी, निजीकरण और महंगाई हैं। वह कहते हैं, ‘पांच किलो मुफ्त राशन से काम चलने वाला नहीं है।’ अपने घोषणापत्र में सीपीआई ने एससी-एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर 50% की सीमा को हटाने और मनरेगा के तहत दैनिक वेतन को बढ़ाकर 700 रुपये करने का वादा किया है।

घर-घर अभियान

मिर्जा आदमपुर गांव में कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने एक प्रेरक सभा आयोजित किया है। पार्टी का कैडर घर-घर जाकर अभियान चलाता है। बड़ों से मिलना, कस्बों में नुक्कड़ सभाएं करना, पर्चे बांटना- उनका यही काम है। आज़मगढ़ के जिला प्रमुख जितेन्द्र हरि पांडे एक उम्रदराज़ मतदाता से कहते हैं- हेलीकॉप्टर राजनेताओं को वोट न दें। हँसिया (दरांती) को वोट दें। पार्टी स्थानीय शाखा से कैंपेनिंग के लिए 1 क्विंटल गेहूं, जिसकी कीमत लगभग 2,000 रुपये है, का योगदान करने की उम्मीद करती है। पांडे बताते हैं कि अभियान का अनुमानित खर्च 3 लाख रुपये है।

जाति पीछा नहीं छोड़ती

हरिजन समुदाय से संबंध रखने वाले 74 साल के एक शख्स क्षेत्र के सबसे वरिष्ठ सीपीआई कार्ड धारकों में से एक हैं। उनका कहना है कि पिछले दशक में कुछ चीजें बेहतरी के लिए बदली हैं, लेकिन कुछ में नहीं। 50 साल तक पार्टी के सदस्य रहे हैरिगेन ने बहुत पहले ही अपना उपनाम इस्तेमाल करना बंद कर दिया था। हालांकि, उन्हें लगता है कि उपनाम ने उनका पीछा नहीं छोड़ा है। उन्होंने कहा कि इस महीने की शुरुआत में जब वह कैफियत एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे, उसी दौरान एक सहयात्री ने उनका नाम और उसके बाद उपनाम पूछा था। मैंने उनसे कहा कि मैंने अपने उपनाम राम का उपयोग करना बंद कर दिया है, क्योंकि इससे मेरी जाति का पता चलता है और मुझे असुविधा होती है।

इस पर युवक ने जवाब दिया कि आप राम का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं किसी का अपमान नहीं कर रहा हूं। मैं सिर्फ अपनी व्यथा व्यक्त कर रहा हूं। हालांकि, अगर मैंने आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है तो मैं क्षमा चाहता हूँ।’ युवक ने हाथ जोड़कर कहा, ‘कोई बात नहीं। उस पल, ऐसा लगा कि उन्हें भी बुजुर्ग दलित की दुर्दशा समझ में आ गई।’

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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