निधि की रिपोर्ट
महेवा। विकास खंड क्षेत्र महेवा के ग्राम खरगूपुर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम व सातवें दिन सरस कथा वाचक आचार्य रामश्याम् रूरा वालो द्वारा श्रोताओं को कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि आज के युग में दोस्ती स्वार्थ पूर्ण होती जा रही है सुदामा ने अपनी दरिद्रता होने के बाद भी अपने मित्र श्री कृष्ण भगवान से कभी भी धन दौलत कुछ भी नहीं मांगा जो आज भी एक उदाहरण बना हुआ है |
वहीं इस सन्दर्भ को रामचरितमानस के प्रसंग से जोड़ते हुए मधुर चौपाई का भी गायन किया |
जे न मित्र दु:ख होहिं दुखारी | तिन्हहि बिलोकत पातक भारी ||
निज दु:ख गिरि सम रज करि जाना | मित्रक दु:ख रज मेरु समाना ||
अर्थात जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है | अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुःख को सुमेरु (बड़े भारी पर्वत) के समान जाने कथावाचक आचार्य रामश्याम् ने कथा के माध्यम से कहा कि दोस्ती निस्वार्थ भाव से होनी चाहिए कथा के दौरान श्री कृष्ण-सुदामा के मिलन की सजीव झांकी सजाई गई इस दौरान श्रद्धालुओं ने झांकी पर गुलाब की पंखुडियां बरसाकर स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि “देख सुदामा की दीन दिशा ,करुणा करके करुणा निधि रोए “
इसके बाद रुक्मिणी विवाह की कथा को बताते हुए कहा की श्रीकृष्ण से प्रेम देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्म की पुत्री थी | रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं | रुक्मिणी जी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण की साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था |
रुक्मणी की भगवान के प्रति लगन, आस्था और उनकी इच्छा के चलते भगवान ने उनका वरण किया रुक्मणी श्री कृष्ण के विवाह में महिलाओं के द्वारा कन्यादान में साड़ी वस्त्र आभूषण नगद राशि सहित अनेक सामान दिए तथा कन्यादान के लिए महिलाओं की कतारें लगी रही |महिलाओं ने एक-एक करके रुक्मणी का कन्यादान किया। कथावाचक ने श्रोताओं को श्री कृष्ण के और भी अनेकों विवाह के बारे में बताया।
इस दौरान परीक्षित मुन्नी दीक्षित व रामप्रकाश दीक्षित सहित हजारों कि संख्या में श्रोतागण भावविभोर होकर कथा का रसपान करते रहे
Author: samachar
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