संजय सिंह राठौर की रिपोर्ट
सूरत के एक मां-बाप उस दिन अपनी जिंदगी का आखिरी खत लिख रहे थे। वो खत भले ही कनाडा में रहने वाले उनके बेटे के नाम था। लेकिन उस खत का पैगाम हर मां-बाप के नाम था। और इसीलिए ज़रूरी था कि वो इस आखिरी खत में हर झूठ से पर्दा हटा दें। और उन्होंने वहीं किया। ये कहानी हर मां-बाप के लिए जानना ज़रूरी है।
सुसाइड नोट बन गया वसीयत
उस अर्थी या जनाज़े को पूरे शहर भर का भी कांधा मिल जाए, तो भी तब तक उसकी आत्मा या रूह को सुकून नहीं मिलता, जब तक उन कांधों में उनके अपने बच्चों के कांधे भी शामिल ना हों। कहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा बोझ बुजुर्ग बाप के कांधे पर जवान बेटे की अर्थी होती है। लेकिन उसे क्या कहेंगे, जब बुजुर्ग बाप की अर्थी पर जवान बेटे का कांधा ही ना हो! कांधा हो भी तो फिर उसे क्या कहिएगा जब ख़ुद बुजुर्ग मां-बाप अपनी मौत से पहले ही ये ऐलान कर दें कि उन्हें अपनी अर्थी या जनाज़े पर अपने बच्चों के कांधे नहीं चाहिए। सोचिए न, वो कैसे और किस कदर मजबूर मां बाप होंगे, जो मौत से गले लगाने से पहले सुसाइड नोट को वसीयत बना कर ये वसीयत करते होंगे कि जब वो मर जाएं, तो उनके बच्चे उनके अंतिम संस्कार में शामिल ना हों। उनके अंतिम संस्कार पर उतने ही पैसे खर्च किए जाएं जिसमें आख़िरी रस्में इजाजत देती हैं।
विदेश जाकर भूल जाते हैं रिश्ते नाते
अजीब इत्तेफाक है कि इसी हफ्ते इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन ने विश्व प्रवासियों पर अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अपने-अपने देशों में प्रवासियों की भेजी कमाई के मामले में भारत पूरी दुनिया में अव्वल नंबर पर है। 2024 में जारी 2022 की इस रिपोर्ट के मुताबिक इस एक साल में प्रवासी भारतीयों ने सबसे ज्यादा 111 अरब डॉलर भारत भेजे। कितनी खुशी की बात है ना कि विदेश जाकर भी बच्चे अपने मां-बाप, भाई बहन को पैसे भेज रहे हैं। पर अफसोस सिर्फ पैसे ही भेज रहे हैं। नौकरी, तरक्की, दौलत, स्टेटस और अपनी फैमिली यानी बस अपनी पत्नी और बच्चे इन सबने मिल कर बाकी सारे रिश्ते नाते और जज्बातों को निगल लिया है।
मां-बाप के लिए औलाद के पास वक्त नहीं!
घर से पहले ही दूर जा चुके ऐसे बच्चे सचमुच इतने दूर हो चुके हैं कि अब उनके पास अपने बुजुर्ग मां बाप की अर्थियों को कांधा या उनका अंतिम संस्कार करने तक के लिए वक़्त नहीं है। क्या करें? नौकरी ही ऐसी है। विदेशों में नौकरी करना कोई आसान थोड़ी होता है! बड़ी मुश्किल से तो नौकरी मिली है। अंतिम संस्कार के लिए छुट्टी भी नहीं मिलेगी। एक काम करो किसी एनजीओ-वेनजीओ से अंतिम संस्कार करवा दो। जो खर्चा आएगा, हम भिजवा देंगे। कभी मुंबई से, कभी दिल्ली से, कभी कानपुर से, कभी आगरा से तो कभी किसी नए शहर से अक्सर अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन जैसे देशों में रहने वाले कामयाब बच्चों के अपने बुजुर्ग मां बाप की मौत की खबर सुनने के बाद कुछ ऐसे ही रिएक्शन होते हैं।
गेडिया दंपत्ति की दुखभरी दास्तान
ये 66 साल के चुन्नी भाई गेडिया और 64 साल की मुक्ताबेन गेडिया हैं। चार मई की रात दोनों ने खुदकुशी कर ली। अपने ही कमरे में पंखे से झूल कर। पर खुदकुशी करने से पहले पूरी तसल्ली से पांच पन्नों का एक खत लिखा। दोनों जैसे ही मरे ये खत सुसाइड नोट बन गया। इन दोनों का भी एक बेटा है पीयूष। इन्हीं मां-बाप ने क्या-क्या तकलीफें उठा कर किस किस से कर्ज लेकर चार साल पहले इस उम्मीद से अपने बेटे को कनाडा भेजा कि वो वहां कमाएगा और फिर सारे कर्ज उतार देगा। पर अफसोस. बाकी कर्ज तो छोड़िए ये तो अपने बूढ़े मां-बाप के अंतिम संस्कार का कर्ज भी अब कभी नहीं उतार पाएगा। उतार भी नहीं सकता क्योंकि खुद मां -बाप ने अपने आखिरी खत में उससे वो कर्ज उतारने का हक भी छीन लिया।
बड़े बेटे पीयूष ने डुबो दिए लाखों रुपये
चुन्नी भाई और मुक्ताबेन की चिता जल कर भी बुझ गई। पर बेटा कनाडा से नहीं लौटा। पर हां, कनाडा में रहते-रहते उसने अपने मां-बाप के लिए ये इंतजाम जरूर कर दिया था कि वो अब खुद ही मौत को गले लगा लें।
चुन्नीभाई सूरत के अपने घर में अपनी पत्नी मुक्ताबेन के साथ रहा करते थे। उनके दो बेटे हैं, बड़ा बेटा पीयूष. छोटा बेटा संजय। जब तक उम्र थी और जिस्म ने साथ दिया चुन्नी भाई ने पूरे घर को संभाला। बच्चों को अच्छे स्कूल कॉलेज में पढ़ाया। बड़ा होकर बेटे ने बिजनेस करना चाहा, तो पिता ने सारी पूंजी लगा दी। पर बेटे पीयूष ने सारे पैसे डुबो दिए। वो खुद कर्ज में आ गया।
कर्ज चुकाए बिना कनाडा चला गया पीयूष
चुन्नी लाल ने अपनी पत्नी के सारे गहने और जितने कैश थे सब पीयूष को दे दिए। इस पर भी कर्ज नहीं उतरा, तो खुद चुन्नी लाल ने अपने जानने वालों से ब्याज पर 35 लाख रुपये कर्ज लिए और पीयूष को दे दिए। कर्ज उतारे बिना चार साल पहले पीयूष कनाडा चला गया. वो ऐसा कनाडा गया कि फिर पलट कर कभी अपने मां-बाप को फोन तक नहीं किया। मां-बाप फोन करते करते थक गए। पर उसने फोन नहीं उठाया। पीयूष की बीवी पायल और उन दोनों का एक बेटा है। कनाडा जाने से पहले वो अपनी पत्नी पायल और बेटे के साथ अपने मां-बाप का घर छोड़कर सूरत में ही एक दूसरे घर में रहने लगा था। इस साल के शुरू में कुछ दिनों के लिए पीयूष सूरत आया। पर अपने मां-बाप से मिलने घर नहीं गया। चुन्नी लाल को जब ये पता चला तो उन्हें गहरा सदमा लगा।
गेडिया दंपत्ति ने दे दी जान
उन पर करीब 40 लाख रुपये का कर्ज था। सारे पैसे पीयूष के लिए उधार लिए थे। कर्ज देने वाले शरीफ लोग थे। शायद उन्हें भी चुन्नी लाल की मजबूरियों की जानकारी थी। पर चुन्नीलाल खुद्दार भी थे। वो कर्जदारों से नजरें नहीं मिला पाते थे। बेटे की बेरुखी ने आखिरकार उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया और फिर अपनी जीवन साथी मुक्ताबेन के साथ मिल कर उन्होंने आखिरी फैसला लिया। फैसला… औलाद की बेरुखी के चलते कर्ज में डूबी जिंदगी को वक्त से पहले विराम देने का। इसी फैसले के साथ चार मई की रात दोनों ने अपनी कहानी खत्म कर ली।
आखिरी वक्त तक सताती रही छोटे बेटे की चिंता
इत्तेफाक से जिस कमरे में दोनों मौत को गले लगाने जा रहे थे, उस कमरे के ठीक बराबर वाले कमरे में उनका छोटा बेटा और पीयूष का भाई संजय अपनी बीवी के साथ बेखबर सो रहा था। एक बेटे की वजह से चुन्नीलाल अपनी बीवी के साथ मौत को गले लगा रहे थे, तो दूसरी तरफ दूसरे बेटे संजय के लिए उसी आखिरी खत में अपने एक दोस्त से ये भी कह रहे थे कि तुम संजय का ध्यान रखना। संजय का कोई सहारा नहीं रहेगा अब। पीयूष ने तो संजय को भी छोड़ दिया।
खत में पीयूष की पत्नी पायल का भी जिक्र
पीयूष के अलावा चुन्नीलाल ने पीयूष की पत्नी और अपनी बहू पायल का भी खत में जिक्र किया। वो लिखते हैं कि हमारी कोई बेटी नहीं थी। लेकिन हमने तुम्हें अपनी बेटी ही समझा था। तुम बड़े घर और ख़ानदान की बेटी हो। फिर परवरिश में कैसी कमी रह गई? इस खत में पायल के हाथों अपनी और अपनी बीवी के अपमान का भी उन्होंने जिक्र किया है।
मां-बाप के लिए सबक
अपने इस खत में सभी के लिए कुछ न कुछ लिखने के बाद चुन्नीभाई ने खत के आखिरी में तीन चार लाइनों में जो कुछ लिखा है, उसे हर मां-बाप और बच्चों को पढ़ना चाहिए। मां-बाप को इसलिए कि बच्चों के लिए अपनी पूरी जमा पूंजी दांव पर न लगाएं और बच्चों के लिए इसलिए कि एक दिन वो भी बूढ़े होंगे और उनके भी बच्चे जवान।
क्या फायदा… ऐसी तरक्की और दौलत की कि सबकुछ कमा कर भी आप इतने गरीब हो जाएं कि अपने-आप का अंतिम संस्कार तक ना कर सकें। चुन्नीलाल ने खत में आखिर में यही लिखा है कि पीयूष यानी उनका अपना बेटा उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होगा। ना ही उसके पैसे से उनका अंतिम संस्कार होगा। (साभार)
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."