हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
तमाम प्रयासों के बावजूद छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या से निपटना चुनौती बना हुआ है। थोड़े-थोड़े समय पर वहां नक्सली सक्रिय हो उठते और सुरक्षाबलों को चुनौती देते रहते हैं। अब तक वे बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों, राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की हत्या कर चुके हैं। अभियान चला कर सुरक्षाबलों ने भी अनेक नक्सलियों को मौत के घाट उतारा है। लगातार उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जाती है।उसी का नतीजा है कि बीजापुर में मुठभेड़ के दौरान दस नक्सली मारे गए। यह निस्संदेह सुरक्षाबलों की बड़ी कामयाबी कही जा सकती है कि नक्सलियों को योजनाएं अंजाम देने से पहले ही मार गिराया गया। मगर वहां किस तरह नक्सली नासूर को पूरी तरह समाप्त किया जा सकेगा, इसका दावा करना मुश्किल बना हुआ है। केंद्र और राज्य सरकार छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से पार पाने के लिए कठोर से कठोर दमन का रास्ता आजमा चुकी हैं, पर उनका मनोबल तोड़ पाने में विफल ही रही हैं।
दरअसल, छत्तीसगढ़ में आदिवासी समूहों को लगता रहा है कि सरकारें उनके संसाधनों पर पूंजीपतियों को कब्जा दिलाने का प्रयास करती हैं। जबकि सरकार का तर्क रहा है कि विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने और आदिवासी समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए औद्योगिक इकाइयों का विस्तार जरूरी है। इसे लेकर शुरू में सरकार और नक्सली नेताओं के साथ बातचीत के प्रयास भी हुए, पर उनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया। फिर सरकार ने आदिवासियों के भीतर से ही नक्सलियों के खिलाफ विद्रोह और दमन की रणनीति बनाई, पर वह भी कामयाब नहीं रही। उससे खून-खराबा जरूर कुछ अधिक बढ़ गया था।
लंबे समय से अत्याधुनिक सूचना प्रणाली, हेलीकाप्टर आदि के जरिए उन पर नकेल कसने की कोशिश की जा रही है। नक्सली समूहों को मिलने वाली वित्तीय मदद, साजो-सामान आदि की पहुंच रोकने और स्थानीय लोगों से उनकी दूरी बढ़ाने के भी प्रयास होते रहे हैं, पर इस दिशा में कोई उल्लेखनीय कामयाबी नहीं मिल पाई है। जब तक इसका कोई व्यावहारिक उपाय नहीं निकाला जाता, इस समस्या पर काबू पाना कठिन बना रहेगा।
Author: samachar
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