पूनम कौशल की रिपोर्ट
‘मेरा नाम गीतिका है। 14 साल की थी, तब बुआ ने मेरी शादी करवा दी। बचपन में हुई इस शादी से मैं कभी खुश नहीं रही। कम उम्र में ही मैं चार बेटों की मां बन गई। पति रोज पिटाई करता था। लात-घूंसों से मारता था। जब अत्याचार बर्दाश्त होने की मेरी शक्ति खत्म होने लगी, तब मैंने उसे छोड़ने का फैसला लिया।
एक दिन बच्चों समेत घर छोड़कर दिल्ली आ गई। दिल्ली पहुंचकर कुछ दिन एक फैक्ट्री में काम किया। इस काम से मैं घर खर्च नहीं उठा पा रही थी। फिर किसी ने मुझे सेक्स वर्कर के जॉब के बारे में बताया। उसने कहा कि इसमें अच्छा पैसा है। मैंने फौरन फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और इस पेशे में आ गई।’
गीतिका दिल्ली के जीबी रोड पर सेक्स वर्कर हैं। यही मेरी उसने मुलाकात होती है।
दोपहर का वक्त है, मैं एक गैर सरकारी संगठन के कुछ लोगों के साथ जीबी रोड पर पहुंचती हूं। यहां पहुंचते ही मैंने मोबाइल से कुछ वीडियो बनाना शुरू किया। चाय की दुकान पर खड़े कुछ लड़कों ने तुरंत यह खबर कोठे तक पहुंचा दी कि मीडिया के लोग आए हैं।
मुझे फौरन कोठों की तरफ आगे बढ़ने से रोक दिया गया। अचानक से दलालों और महिलाओं की भीड़ इकट्ठा होने लगी। उन सबका रवैया आक्रामक हो गया।
हालात ज्यादा न बिगड़ जाएं इसलिए हम लोग वहां से निकलकर कमला मार्केट थाने पहुंच जाते हैं। शाम को कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मैं फिर जीबी रोड की तरफ जाती हूं। पुलिस को देखकर एक बार फिर हलचल मच जाती है।
मैं अंधेरी और पतली सीढ़ियों से चढ़ते हुए एक कोठे की तरफ बढ़ती हूं। ऊपर से गिरते-पड़ते कुछ लड़के उतरते हैं। उन्हें लगता है पुलिस ने रेड किया है। मैं उनसे कहती हूं कोई रेड नहीं हैं, हम बस यहां का हाल देखने आए हैं। वो कुछ नहीं सुनते और डर से भाग जाते हैं।
काफी मशक्कत के बाद यहां काम कर रही कुछ लड़कियां बात करने के लिए तैयार होती हैं। एक ने अजीब से लहजे में मुझे टोक दिया- अभी आज का धंधा शुरू ही हुआ था कि आप आ गईं।
मैं उनसे वादा करती हूं कि ज्यादा वक्त खराब नहीं करूंगी। कम से कम समय में कहानी सुनने की कोशिश करूंगी।
सबसे पहले गीतिका से मेरी मुलाकात होती है। 24 साल की गीतिका अपने पति और मायके वालों को छोड़कर यहां रह रही हैं। कहती हैं, ‘लोगों के लिए यह जगह नर्क होगी। मेरे लिए खुली हवा में जीने की आजादी है। अपने मन का पहनने और खाने का सुख। बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकालने की उम्मीद।’
मैं पूछती हूं- आप तो फैक्ट्री में नौकरी कर रही थी। उसे छोड़ने का फैसला गलत नहीं लगता? गीतिका कहने लगी- ‘जब घर छोड़कर जब दिल्ली आ रही थी, तब एक बात मेरे दिमाग में क्लियर थी कि पति की मार अब नहीं खानी। रोज की गाली-गलौज से नए शहर में झूठे बर्तन साफ करना है। यहां स्थिति मेरे सोच के विपरीत थी। किराये के घर में रह रही थी। वेतन बहुत कम था। मैं अपने बच्चों के लिए कपड़े तक नहीं खरीद पाती थी।
कई बार हमें भूखा सोना पड़ता था। फिर मैंने अपनी मर्जी से सेक्स वर्क शुरू किया। अब मैं कम से कम 25 हजार रुपए महीना कमाती हूं। ये पैसा मेरे परिवार को पालने के लिए इस समय काफी है।’
अगर आपको अच्छी नौकरी मिल जाए तब क्या ये काम छोड़ देंगी? गीतिका कहती हैं, ‘सेक्स वर्क से बाहर निकलने का सवाल ही नहीं उठता। इस काम को करने का मुझे कोई अफसोस नहीं। अगर मैं अब निकलना भी चाहूं तो सोसाइटी मुझे जीने नहीं देगी। वैसे भी एक मां का फर्ज बच्चों को पालना है। वो उसका पेट भरने के लिए कोई भी कदम उठा सकती है। मैं एक मां हूं, अपनी जिम्मेदारी निभा रही हूं।’
आपकी उम्र अभी 24 साल है। क्या पति से अलग होने के बाद दूसरी शादी करने का ख्याल कभी मन में आया? गीतिका दोनों हाथ उठाकार उंगलियां हिलाते हुए तपाक से कहती हैं, ‘कभी नहीं। शादी के बारे में कभी सोचूंगी नहीं। आपको बता चुकी हूं कि पहली शादी में ही पति ने मेरी जिंदगी जहन्नुम बना दी थी।’
मैं दूसरी शादी के बारे में अगर सोच भी लूं तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि वो पहले पति से बुरा नहीं होगा। अगर वो पहले पति से भी गिरा हुआ निकला तो मैं क्या करूंगी। मेरा मर्दों से पूरी तरह भरोसा उठ गया है।’
इस कोठे पर हर तरह के मर्द आते हैं, लेकिन गीतिका को कभी किसी से भी भावनात्मक लगाव नहीं हुआ। वो सेक्स वर्क को सिर्फ एक काम की तरह देखती हैं। कहती हैं, ‘मुझे अब किसी से कभी भावनात्मक लगाव नहीं होगा। प्यार क्या होता है यह मैं नहीं जानती और कभी जानना भी नहीं चाहती।’
उन्हें अब इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। वो जोर देकर कहती हैं कि एक औरत को सिर्फ खुद पर निर्भर होना चाहिए। हालात जैसे भी हों, औरत को ऐसा होना चाहिए कि वो अपने दम पर जी सके। उसे कमाना चाहिए। उसे कुछ भी करना पड़े, लेकिन कभी किसी आदमी की मार न खाए। अत्याचार औरत को भीतर से तोड़ देता है।’
गीतिका कहती हैं, ‘अगर मुझे पति की मार से बचाया गया होता, अपने ही परिवार के लोगों ने मेरी मदद की होती तो मैं घर से क्यों निकलती? मुझे पीटने वाले हाथ तो थे, लेकिन मुझे बचाने के लिए उठने वाला कोई हाथ नहीं था।’
अब गीतिका का तलाक हो गया है और बच्चों को पालने के लिए उन्हें पति से कोई खर्चा नहीं मिलता। उन्होंने कभी किसी से किसी तरह की मदद नहीं मांगी। उन्हें अब लगता है कि उनका जीवन इसी अंधेरे कोठे में खत्म हो जाएगा।
शर्मिना मूलरूप से कोलकाता की हैं। वो 2018 में 22 साल की उम्र में इस कोठे पर पहुंची थी। उनके बच्चे भी हैं और मां हैं, पिता की मौत हो गई है।
शर्मिना भी यहां अपनी मर्जी से आई हैं। वो कहती हैं, ‘अम्मी-अब्बू और बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर थी। घर की मजबूरियां मुझे कोलकाता से दिल्ली ले आईं। कोलकाता में ये काम नहीं कर सकती थी, परिवार का पेट पालने के लिए शहर बदलना पड़ा।’
मैंने शर्मीना से पूछा कोलकाता हो या दिल्ली इस काम को तो बुरा ही मानते हैं।
शर्मीना कहती हैं, ‘मेरा सपना अपने बच्चों के लिए घर बनाना है। यह काम सेक्स वर्क से पूरा हो जाएगा, इस बात का मुझे यकीन है। यहां मुझ पर कोई रोक टोक नहीं है। पेट पालने के लिए कुछ तो करना ही था, यह काम ही सही।’
मैंने उनसे कहा- आप कोई दूसरी नौकरी भी तो कर सकती थी।
शर्मिना कहती हैं, ‘मैंने नौकरी भी की थी। 12 हजार रुपए वेतन मिलता था। ऑफिस में कुछ लोग ऐसे भी थे जिनकी नीयत सही नहीं थी। मैं उनके झांसे में नहीं आ रही थी इसलिए वो मुझे बदनाम कर रहे थे।
दूसरी तरफ कम उम्र में दहलीज से बाहर कमाने जाने की वजह से मोहल्ले के लोग कई तरह के सवाल उठा रहे थे। उन्हें लगता था कि मैं घर से बाहर कोई गलत काम करने जाती हूं। ऑफिस में मेरा किसी के साथ अफेयर है। मैं इतना बदनाम हो ही गई थी कि घर वालों के लिए बाहर निकलना मुश्किल हो गया था।
यह सब देखकर मुझे दुख से ज्यादा चिढ़ होती थी। चिढ़ ऐसी बढ़ गई कि एक दिन ऐसे ही ख्याल आया कि अब सेक्स वर्क ही शुरू कर देती हूं। कम से कम अपने बच्चों के लिए एक घर तो बना पाऊंगी। ’
शर्मिना खुलकर बात करती हैं। मैं पूछती हूं कि क्या कभी वापस लौटना है? वो कहती हैं, ‘एक दिन तो घर लौटना ही पड़ेगा, लेकिन अभी नहीं। यह उम्र कमाने की है, बच्चों को अच्छा जीवन देने की है। ऐसे में कोई कॉम्प्रोमाइज अपने काम से वो नहीं कर सकती।’
रीता 30 साल की हैं और 2020 से कोठे पर काम कर रही हैं। रीता की कहानी गीतिका जैसी ही है। उनका पति शराबी था और रोज उसे मारता-पीटता था। इस जिंदगी से परेशान होकर उन्होंने सेक्स वर्कर बनने का रास्ता चुना।
रीता कहती हैं, ‘मेरी सात साल की बेटी है। उसके सिवा मुझे इस दुनिया में किसी से कोई मतलब नहीं है। मुझे उसे पालना है और इसलिए मैं यह काम कर रही हूं। आगे भी यही काम करूंगी। इस काम में पैसा भी है, इससे बेटी का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।’
क्या आपके घर वालों को पता है कि आप क्या करती हैं?
रीता का जवाब होता है- ‘नहीं।’
कुछ सोचकर कहती हैं, ‘परिवार को लगता है कि दिल्ली में मैं कोई नौकरी करती हूं। बेटी को मैंने हॉस्टल में डाल दिया है। उसे भी यही पता है कि मैं नौकरी करती हूं।’
अब तक कॉन्फिडेंट रीता जैसे ही बेटी के बारे में बात करती हैं, उनकी आवाज कांपने लगती है। चिंता उनके चेहरे पर उभर आती है।
जमीन की तरफ देखती हुई वो बस यही कहती हैं, ‘मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मेरी बेटी को वो करना पड़े जो मैं कर रही हूं। मुझे जो भी करना पड़ेगा, मैं वो सब करूंगी लेकिन अपनी बेटी को एक अच्छी जिंदगी दूंगी।’
करीब पैंतीस साल की डिंपल कहती हैं, ‘मैंने कोई पढ़ाई नहीं की। आदमी दारू पी-पीकर मर गया। जब जिंदा था तब भी मुझे पति का कोई सुख नहीं था। दारू पीकर मुझे मारना उसके लिए रोज का काम था।
दो लड़कियां थीं, उनका पेट पालना था। जब ये काम शुरू किया तब अफसोस होता था लेकिन अब नहीं होता। मैं बस ये चाहती हूं कि मेरी बेटियों की जिंदगी बेहतर हो। मैं पढ़ा-लिखाकर उनकी शादी करूंगी।’
इसी कोठे पर मेरी मुलाकात एक और लड़की सपना से होती है। सपना कहती हैं कि वो यहां बात नहीं करेंगी। अगले दिन दिल्ली के एक पार्क में मैं उनसे मिलती हूं।
सपना मुस्कुराते हुए मेरे पास आती हैं और सवाल करती हैं- आखिर आप पत्रकारों को सेक्स वर्करों में इतनी दिलचस्पी क्यों होती है।
मैं मुस्कुरा देती हूं।
सपना गुटखा थूकते हुए कहती हैं, ‘कोठे पर काम करने वाली हम सब लड़कियों की कहानी एक जैसी ही है। कोई यहां अपनी मर्जी से नहीं आता। शुरू में सबको बुरा लगता है, फिर ये काम ही जिंदगी बन जाता है।’
कभी बाहर निकलने की नहीं सोची?
सपना कहती हैं, ‘मैं क्या बहुत सारी लड़कियां यहां से बाहर निकलने का सोचती हैं तो उनके सामने एक ही सवाल होता है- समाज में कौन उन्हें स्वीकार करेगा।
आप यहां कैसे और क्यों आईं?
सपना कहती हैं, ‘मेरा बाप शराबी था। छोटी थी तब से बात-बात पर मुझे मारा-पीटा गया। मेरी मां की मौत हो गई थी। उसके बाद जिंदगी दूभर हो गई। मैं घर से बाहर निकलकर आजाद जिंदगी जीना चाहती थी। छह साल पहले मेरी एक दोस्त मुझे कोठे पर लेकर आई। मैं तब से यही काम कर रही हूं। सच बताऊं अभी तक तो इस काम को करने का अफसोस नहीं हुआ है।’
आपको यह जिंदगी बेहतर लगती है?
वो झटसे कहती हैं, ‘बिल्कुल। मुझे लगता है कि उस बचपन से ये जिंदगी कई गुना ज्यादा बेहतर है। यहां मैं खुश हूं। अपना खर्च खुद उठाती हूं। मर्जी से शॉपिंग करती हूं। अपना कमाया पैसा जैसे दिल करता है खर्च करती हूं। सच कहूं तो मुझे कोई अफसोस नहीं है।’
आपने नौकरी क्यों छोड़ी? सपना बोली- ‘फैक्ट्री में कुछ दिन काम किया। वहां भी लोग छेड़खानी करते थे। हर किसी की नजर मेरे जिस्म पर थी। फैक्ट्री में एक बार मेरे साथ जबरदस्ती की कोशिश हुई, मैंने शिकायत की तो किसी ने मेरी बात सुनी नहीं। मेरी समझ में आ गया था कि एक औरत को सिर्फ जिस्म ही समझा जाता है।’
इन महिलाओं से बात करके एहसास होता है कि शादी के कड़वे अनुभवों ने इन्हें भावनात्मक रूप से इतना तोड़ दिया है कि अब इन्हें ये कोठे बाहर की दुनिया से खूबसूरत और आरामदायक लगते हैं। इनका भरोसा पति के रिश्ते से उठ गया है।
इस कोठे की अंधेरी सीढ़ियों को चढ़ते वक्त मेरे मन में कई सवाल थे। कुछ घंटे बिताने और आधा दर्जन महिलाओं से बात करने के बाद जब मैं उतर रही थी, तब मैं एक ही चीज सोच रही थी। वो ये कि ‘काश इन औरतों को अपनी जिंदगी में अच्छे मर्द मिले होते।’ (साभार)
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."