आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: निकाय चुनाव में अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने वाले या उनका समर्थन करने वाले ‘बागियों’ की बीजेपी में वापसी होगी। अप्रैल-मई में इन बागियों को छह साल के लिए बाहर किया गया था, लेकिन प्रदेश संगठन ने इससे पहले इन्हें वापस लेने का फैसला किया है। सोमवार से बीजेपी प्रदेश मुख्यालय में इनकी वापसी की शुरुआत होगी। पहले चरण में अवध क्षेत्र के बागियों को वापस लिया जा रहा है। इसके बाद अलग-अलग क्षेत्रों में सदस्यता दिलवाई जाएगी। निकाय चुनाव के दौरान पूरे प्रदेश में 5,000 से ज्यादा कार्यकर्ता और पदाधिकारी बीजेपी से बाहर किए गए थे।
लखनऊ से होगी शुरुआत
बीजेपी में बागियों की वापसी की शुरुआत लखनऊ से की जाएगी। सोमवार को प्रदेश कार्यालय लखनऊ के उन 35 से ज्यादा बागियों को बुलाया गया है, जिन्होंने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इनमें मैथलीशरण गुप्ता वॉर्ड के पूर्व पार्षद दिलीप श्रीवास्तव, पूर्व कार्यवाहक महापौर सुरेश अवस्थी के अलावा कई पूर्व पार्षद, वार्ड अध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष भी शामिल हैं। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक, अवध क्षेत्र के अध्यक्ष कमलेश मिश्रा की मौजूदगी में इनकी वापसी होगी। पार्टी ने पहले चरण में अवध क्षेत्र के 300 से ज्यादा बागियों को चिह्नित किया है। इनमें तीन पूर्व नगर पालिका चेयरमैन, 14 पूर्व पार्षद के साथ पूर्व मंडल और वॉर्ड अध्यक्ष शामिल हैं।
विपक्षी दलों में सेंधमारी का अभियान आज से
सूत्रों का कहना है कि सोमवार से बीजेपी विपक्षी दलों में सेंधमारी के साथ नए चेहरों की जॉइनिंग का भी अभियान शुरू करने जा रही है। सोमवार को प्रदेश कार्यालय में 1200 लोगों की एक साथ जॉइनिंग होगी। इनमें रिटायर्ड आईपीएस हरीश कुमार के साथ सपा, बसपा और कांग्रेस के पूर्व पार्षद, पदाधिकारी शामिल हैं। इसके बाद हर जिले में जॉइनिंग अभियान चलाया जाएगा। प्रदेश मुख्यालय ने सभी जिलों से इसकी सूची मंगवा ली है। पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों की जॉइनिंग प्रदेश स्तर पर होगी।
घर वापसी के पीछे क्या है रणनीति?
निकाय चुनाव में बाहर किए गए लोगों की बड़े पैमाने पर घर वापसी कराने के पीछे बीजेपी की रणनीति लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए जमीन मजबूत करना है। सू्त्रों का कहना है कि बीजेपी ने बाकायदा एक कमिटी बनाकर बागियों की सूची बनाई थी। कमिटी ने हर जिले में पड़ताल की तो पाया कि कई जिलों में बागी जीत भी गए, पर वे दूसरे दलों में नहीं गए। मूल रूप से वे बीजेपी की विचारधारा वाले कार्यकर्ता ही हैं। अगर वे लोकसभा चुनाव में सक्रिय रहे तो वॉर्ड और मंडल स्तर पर नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। बीजेपी लोकसभा चुनाव में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती, इसलिए इन्हें वापस लेने की रणनीति बनाई गई है।
Author: samachar
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