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November 23, 2024 3:17 am

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गजब पकड़ है शासन, सत्ता और मीडियाकर्मियों पर इन अवैध बालू खनन माफियाओं की

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

बांदा। किसी ने खनन के सम्बन्ध में शायद सच ही कहा है की शासन प्रशासन लाख भला चाहे तो क्या होता है वही होता है जो मंजूरे खनिज एवं पुलिस तथा पत्रकार होता है।

कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है बांदा जनपद के मरौली खण्ड 5,कनवारा,लहुरेटा खदान में ! इन खदान क्षेत्रों में लगने वाले थाना पुलिस के लिये शायद ये खदानें किसी कामधेनु से कम नहीं है । यहां पर इन नदियों में अकूत लाल सोना यानिकि बालू पाये जाने के कारण यहाँ पर विश्वस्त सूत्रों के अनुसार खनिज ,पुलिस , पत्रकार की सिस्टम बाजी के तहत अवैध खनन का करोबार रात दिन जारी रहता है। माफियाओं में अकूत धन कमाने की एक होड़ सी लगी रहती है जिसमें इन्हें तय सीमा एवं तय सिस्टम के तहत खनिज विभाग सहित स्थानीय पुलिस का खुला संरक्षण प्राप्त होता है जिसकी जिम्मेदारी खदान संचालकों द्वारा समय पर पहुंचाने के लिए अपने अपने मुनीमों को बकायदा सौपी जाती है जिसका ख्याल भी मुनीम बखूबी रखते हैं और फिर पूरे महीने भर भीमकाय ट्रकों, डम्फरों एवं डग्गियों द्वारा ओवरलोडिंग का कार्य दिन रात चालू रहता है। फिर किसी की क्या मजाल जो आंख भी उठा कर देख सके।

शासन द्वारा बनाये गये एन० जी० टी० के नियमों की धज्जियां उड़ाते ओवरलोड ट्रक, डग्गियां एवं डम्फर में ठसाठस ओवरलोडिंग कर पुलिस की नाक के नीचे से सीना ठोकते हुये चौबीसों घण्टे बेखौफ निकलते हैं जिन्हें शायद इस बात का गुरुर रहता है की सैंया है कोतवाल तो अब डर काहे का। 

इतना ही नहीं जनपद की सीमा से चंद किमी दूर म०प्र० का हवाला देते हुये उ०प्र०की सीमा क्षेत्र में बड़ी बड़ी हस्तियों के नाम पर चल रहे भारी भरकम पहाड़ जैसे बालू के डम्पों के माध्यम से दिन रात सैकड़ों ओवरलोड डम्पर, ट्रक एवं डग्गियां बिना किसी नापतौल के सरेआम फर्राटा भरते हर समय देखने को मिल जाते हैं जिनसे बालू का परिवहन लगातार जारी रहने के बावजूद भी रात गुजरते ही अगली सुबह फिर यथावत नजर आते हैं। जिससे साफ जाहिर होता है की सारी रात अवैध खनन का कारोबार बदस्तूर जारी रहता है किन्तु यदि नजर नहीं आते तो सिर्फ स्थानीय पुलिस को। क्योंकि चंद कि०मी० बाद ही तो म०प्र० की सीमा में पहुँच जाना है अत: किसी की धरपकड़ का भी खतरा नहीं आखिर क्यों? 

इस जनपद क्षेत्र में सबसे अधिक चलने वाली खदानों में उ०प्र० की सीमा क्षेत्र में मरौली खण्ड 5, कनवारा, रायपुर कोलाहल नरैनी क्षेत्र में लहुरेटा, बार बंद, विलहरका, रेहुंची, मोहनपुर खलारी, मानपुर बरसण्डा, नेढ़ुवा बड़ेछा,महोरछा चंदपुरवा आदि तथा सीमा क्षेत्र से चंद किमी दूर म० प्र० में संचालित भीना घाट, जिगनी, चंदौरा घाट, रामनई घाट,हर्रई घाट तथा नेहरा घाट हैं जिनसे दिन रात अवैध बालू का कारोबार दोनों प्रदेशों की सीमाओं का फायदा उठाते हुये बेखौफ जारी रहता है। 

इतना ही नहीं सूत्र बताते हैं की ग्रामीण क्षेत्रों में बालू पहुंचाने हेतु सिस्टम बाजी के तहत रात्रि में दर्जनों ओवरलोड ट्रेक्टरों एवं डग्गियों के माध्यम से अच्छी खासी रकम वसूलते हुये ग्राहक को इन्ही के संरक्षण में बालू उपलब्ध कराई जाती है!! वैसे अगर देखा जाए तो जनपद की ऐसी कोई बालू खदान नहीं है जहां एनजीटी के नियमों के विपरीत कार्य ना किया जा रहा हो।

अब चाहे मरौली खंड 5 का मामला हो या कनवारा या फिर अन्य खदानों का और इतना ही नहीं जनपद की तहबाजारी की भी वसूली में भी हर जगह गोरखधंधा है और हो भी क्यों ना जब दीपावली की मिठाई के डिब्बे भी तो इन्ही लोगों से प्राप्त कर रहे हैं। वह भी अपने साथियों के सम्मान को गिरवी रख कर। जबकी साथियों को पता भी नहीं चलता कि उनकी कलमें इन अबैध खनन कारोबारियों के यहां गिरवी रख दी गई है क्योंकि यह गहननामा किसी रजिस्टार के आफिस में नहीं लिखा जाता है। यह तो बंद कमरे में होता है। और आगे भी होता रहेगा क्योकि इन सबको उजागर करने वाली कलमों को उनके संगठन के मुखिया ही गिरवी रख रहे हैं तो बता दे पहले उन मुखियाओं को कि पत्रकार किसी की संपत्ति नहीं है कि वह जिसे चाहे जब चाहे किसी के यहां गिरवी रख दें। वह स्वतंत्र था और है और आगे भी रहेगा। इसलिए सबसे पहले उन ठेकेदारों से आग्रह है कि वह अपनी आदतों पर विराम लगाएं। अपने साथ उन पत्रकार साथियों के सम्मान को ठेस न पहुंचाए जो निडर निर्भीक निष्पक्ष लिख रहे हैं उनके इतने व्यसन नहीं है की वह इन अबैध कारोबारियों के फेके टुकडो पर आश्रित है।

हमें सूत्रों से जानकारी मिली है कि एक चमरौडी में रहने वाले ठेकेदार से एक एक पत्रकार को एक हजार से लेकर तीन हजार रुपए प्रति पत्रकार एवं कुछ को दस से बीस हजार रूपए दिए गए हैं। तो इसी तरह लहुरेटा खदान से वितरण हुआ है कुछ ठेकेदारों ने लहुरेटा खदान में फोन लगाया की उससे आकर मिले नहीं अगले दिन उसके खिलाफ दो सौ पत्रकार लिखेंगे यानी संख्या बल का धौंस दिखाया गया है।आज पूरे जनपद में यही हो रहा है। बिपक्ष खामोश है कि उसे खामोशी की कीमत मिलती है कलमकारों की कलमें खामोश हो जाती है कि उन्हें इन भृष्टाचारियों के अबैध कारोबार को उजागर ना करने की कीमत मिलती है। पुलिस, खनिज विभाग खामोश हो जाते कि उन्हें नजराने के साथ सत्ता पक्ष के माननीयों का कोपभाजन का शिकार बनना पड़ता है। सत्ता पक्ष इसलिए खामोश है कि उनके माननीय प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से कहीं ना कहीं इस गड़बड़ घोटाले में सम्मिलित हैं। सो भ्रष्टाचार रूपी इस गंगा में सभी डुबकी लगा रहे हैं जबकि गरीब मजदूर किसान इन अबैध खनन कारोबारियों, माफियाओं की दबंगई के शिकार हो रहे हैं जिनकी सुनने वाला शायद कोई नहीं!!

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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