हिमांशु नौरियाल की रिपोर्ट
देहरादून। पहाड़ में बग्वाल (दीपावली) के ठीक 11 दिन बाद ईगास मनाने की परंपरा है। दरअसल ज्योति पर्व दीपावली का उत्सव इसी दिन पराकाष्ठा को पहुंचता है, इसलिए पर्वों की इस शृंखला को ईगास-बग्वाल नाम दिया गया।
गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में ये पर्व ज्यादा देखने को मिलता है। यह पर्व धीरे-धीरे लुप्त हो जा रहा था लेकिन हाल के समय में लोगों की जागरूकता और सोशल मीडिया की सक्रियता के कारण यह पर्व उत्तराखंड में खासकर गढ़वाल इलाके में फिर से एक बार लोगों के बीच में प्रसिद्ध हो रहा है।
इसके बारे में कई लोकविश्वास, मान्यताएं, किंवदंतिया प्रचलित है. एक मान्यता के अनुसार गढ़वाल में भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना 11 दिन बाद मिली थी। इसलिए यहां पर ग्यारह दिन बाद यह दीवाली मनाई जाती है। रिख बग्वाल मनाए जाने के पीछे भी एक विश्वास यह भी प्रचलित है कि उन इलाकों में राम के अयोध्या लौटने की सूचना एक महीने बाद मिली थी। दूसरी मान्यता के अनुसार दिवाली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी। रिख बग्वाल के बारे में भी यही कहा जाता है कि सेना एक महीने बाद पहुंची और तब बग्वाल मनाई गई और इसके बाद यह परम्परा ही चल पड़ी। ऐसा भी कहा जाता है कि बड़ी दीवाली के अवसर पर किसी क्षेत्र का कोई व्यक्ति भैला बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया लेकिन उस दिन वापस नहीं आया इसलिए ग्रामीणों ने दीपावली नहीं मनाई। ग्यारह दिन बाद जब वो व्यक्ति वापस लौटा तो तब दीपावली मनाई और भैला खेला।
हिंदू परम्पराओं और विश्वासों की बात करें तो इगास बग्वाल की एकादशी को देव प्रबोधनी एकादशी कहा गया है। इसे ग्यारस का त्यौहार और देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। पौराणिक कथा है कि शंखासुर नाम का एक राक्षस था। उसका तीनो लोकों में आतंक था. देवतागण उसके भय से विष्णु के पास गए और राक्षस से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना कीकी। विष्णु ने शंखासुर से युद्ध कियाकिया। युद्ध बड़े लम्बे समय तक चला। अंत में भगवान विष्णु ने शंखासुर को मार डाला। इस लम्बे युद्ध के बाद भगवान विष्णु काफी थक गए थे। क्षीर सागर में चार माह के शयन के बाद कार्तिक शुक्ल की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु निंद्रा से जागे। देवताओं ने इस अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा की। इस कारण इसे देवउठनी एकादशी कहा गया।
मुझे 23 नवंबर 2023 को “समाचार दर्पण” और “राष्ट्रीय गौ रक्षक सेवा” का प्रतिनिधित्व करने और 23 नवंबर 2023 को अमावस्या पर या मुख्यधारा की दिवाली के 11 दिन बाद मनाए जाने वाले “इगास” के इंदिरा नगर कॉलोनी उत्सव में भाग लेने का सम्मान और सौभाग्य मिला।
इस लोक उत्सव को राज्य के कोने-कोने की तरह इंदिरा नगर कॉलोनी के लोगों ने भी बड़े उत्साह, जोश और उत्साह के साथ मनाया। इंद्र नगर में त्योहार “भेलो अग्नि पूजा” के जुलूस और उसके बाद आईटीबीपी से कार्यक्रम स्थल पार्क तक “भेलो मार्च” के साथ मनाया गया।
इसके बाद लोक गायन और लोक नृत्य, नाटक, ढोल दमाऊ, चुटकुले, कविता आदि का आयोजन किया गया। वहाँ कई गढ़वाली और कुमाउनी दुकानें थीं जो मुंह में पानी ला देने वाले पहाड़ी व्यंजन पेश करती थीं।
ऐसा कहा जाता है कि रावण पर विजय के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर 11 दिनों के बाद इस क्षेत्र में पहुंची और उन्होंने इस दिन को “इगास” या “बुधि दिवाली” के रूप में मनाना शुरू कर दिया।
इस आयोजन में उनको “मुख्य अतिथि” कहना उचित नहीं होगा, बल्कि मुख्य “मातृ और ममता की मूर्ति” और देहरादून के लोगों की प्रतिनिधि माननीय “विधायक” श्रीमती सविता कपूर ने समारोह का उद्घाटन किया।
इसके अलावा कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति, राजनीतिक नेता, मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ता और सबसे बढ़कर आम आदमी या देहरादून के निवासी उपस्थित थे। वे सभी परमानंद में झूम रहे थे और हम लगातार लगभग “मंत्रमुग्ध” होने की कगार पर पहुँच गए थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ-साथ मार्च में उपस्थित और भाग लेने वाले महिलाओं की बड़ी ताकत वास्तव में अभूतपूर्व थी और गर्व करने लायक थी।
यहां भाजपा मंडल अध्यक्ष श्री रावत के नेतृत्व वाली “टीम इंदिरा नगर” के विशेष प्रयासों का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा। “टीम इन्दिरा नगर” के सभी सदस्यों ने निस्वार्थ भाव से जोश, उत्साह, जोश के साथ अपने कर्तव्यों का पालन किया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."