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November 22, 2024 9:41 pm

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हम ना माफ करते हैं और ना ही छोड़ते हैं…. खुफिया एजेंटों ने चुन चुन कर लिया बदला…

14 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

भारत में बुधवार रात घड़ी में 8 बज रहे थे और सोशल मीडिया पर अचानक एक खालिस्तानी आतंकी ट्रेंड करने लगा। उसका नाम था गुरपतवंत सिंह पन्नू। मीडिया रिपोर्ट के हवाले से दावा किया जाने लगा कि अमेरिका में एक भीषण सड़क दुर्घटना में पन्नू की मौत हो गई है। हाल में खालिस्तानी टाइगर फोर्स के कमांडर हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या कर दी गई थी। ऐसे में अमेरिका में हुई सड़क दुर्घटना को सोशल मीडिया पर नया ऐंगल दिया जाने लगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की तस्वीरें भी शेयर होने लगीं। कई लोगों ने पन्नू के पुराने भड़काऊ वीडियो के साथ लिखना शुरू कर दिया कि भारत के दुश्मनों का यही हश्र होता है। हालांकि जल्द ही साफ हो गया कि पन्नू अभी जिंदा है और भारत को लेकर कही जा रही बातें सिर्फ अटकलबाजी थी। हालांकि देश के दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए कई मुल्क की एजेंसियां ऐसे ऑपरेशन को अंजाम दे चुकी हैं। इस मामले में अमेरिका और इजरायल काफी आगे हैं।

दरअसल, पिछले दिनों जून में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को रात में कनाडा में गोली मार दी गई। मई में पाकिस्तान में खालिस्तानी नेता परमजीत सिंह पंजवड़ को मार दिया गया था। अलगाववादी इसके लिए भारतीय एजेंसियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हालांकि इसकी असली वजह यह है कि खालिस्तानी संगठन आपस में ही भिड़ गए हैं। पिछले साल 14 जुलाई को वैंकूवर में खालिस्तानी संगठनों से पहले जुड़े रहे रिपुदमन सिंह की हत्या की गई थी। निज्जर को इसके लिए दोषी माना जा रहा था। निज्जर को भारत में भगोड़ा घोषित किया गया था। रिपुदमन ने पिछले साल पीएम मोदी को लेटर लिखकर तारीफ की थी। माना जाता है कि इससे खालिस्तानी भड़क गए। जब पन्नू के एक्सीडेंट की खबर आई तो लोग कई तरह की बातें करने लगे। वे इन घटनाओं की क्रोनोलॉजी जोड़ने लगे।

80-90 के दशक में इजरायल-फिलिस्तीन में तनाव चरम पर था। आए दिन फिलिस्तीन लड़ाके इजरायल को निशाना बनाते थे। तब इजरायल की खतरनाक खुफिया एजेंसी मोसाद एक लिखित नोट भिजवाती थी, ‘हम न भूलते हैं, न माफ करते हैं।’ कुछ ही दिनों में आतंकी भले न मिले पर इजरायली एजेंसी बदला जरूर लेती थी। उसके किसी खास शख्स की हत्या हो जाती थी। आगे चलकर मोसाद को किलिंग मशीन कहा जाने लगा। कहते हैं कि इजरायल के दुश्मन पाताल में छिप जाएं तो भी मोसाद के एजेंट ढूंढकर मार देंगे। इससे पहले 1972 में कुछ ऐसा हुआ था जिसने इजरायल की नई इमेज तैयार की।

जर्मनी के म्यूनिख शहर में ओलंपिक चल रहा था। 6 सितंबर 1972 को फिलिस्तीन के आतंकी संगठन ने इजरायल के कुछ खिलाड़ियों को बंधक बना लिया। इन आतंकियों ने दो इजरायली नागरिकों की हत्या कर दी। बाकी लोगों को छोड़ने के बदले 200 फिलिस्तीन कैदियों को रिहा करने की मांग रखी गई। जर्मनी टेंशन में था। तब गोल्डा मीर इजरायल की पीएम थीं। जर्मन चांसलर के फोन पर उन्होंने जवाब दिया, ‘इजरायल आतंकियों की मांग नहीं मानता, भले ही इसकी कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।’ हुआ भी कुछ ऐसा ही। जर्मन कमांडोज ने रेस्क्यू ऑपरेशन की कोशिश की लेकिन आतंकियों ने सभी 9 इजरायली खिलाड़ियों को मार दिया।

इजरायल ने सीरिया और लेबनान में आतंकियों के ठिकाने तबाह कर दिए गए। कुल 200 लोग मारे गए। म्यूनिख में तीन हमलावरों को जिंदा पकड़ा गया था। अक्टूबर में सीरिया से जर्मनी आती फ्लाइट हाईजैक हो गई। जर्मनी को तीनों हमलावर रिहा करने पड़े। अब म्यूनिख हमले का बदला लेने के लिए करीब 30 लोगों की लिस्ट बनी। मोसाद ने इस ऑपरेशन को नाम दिया- रॉथ ऑफ गॉड। चुन-चुनकर एनकाउंटर होने लगे। 16 अक्टूबर को रोम के होटल में गोलियां चलीं। एक महीने बाद फ्रांस के अपार्टमेंट में छिपे आतंकी हमशारी को पत्रकार का फोन आया। वह बाहर गया तो पीछे से मोसाद के एजेंट घुसे और फोन में बम लगा दिया। हमशारी लौटा और जैसे ही फोन उठाया, धमाका हो गया। मोसाद ने चुन-चुनकर म्यूनिख हमले के गुनहगारों को मारा। बेरुत की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में काम करने वाले प्रोफेसर को भी नहीं छोड़ा गया। लेबनान में छिपे तीन लोगों को मारने के लिए मोसाद के कमांडो लेडीज के कपड़े पहनकर बिल्डिंग में घुसे।

मिस्र में जन्मे इराक के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख याहिया एल मेशाद पेरिस में होटल मीरिडियन के कमरे में मृत पाए गए। पता चला कि कॉल गर्ल के सामने उनकी हत्या हुई। बाद में उसका भी शव मिला। मेशाद की मौत को इराकी न्यूक्लियर प्रोग्राम के लिए बड़ा झटका माना जाता है। किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई लेकिन मीडिया में यह जरूर कहा गया कि फ्रांस को शक है कि इसके पीछे इजरायली इंटेलिजेंस का हाथ है।

9/11 हमले के गुनहगार ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए अमेरिकी नेवी सील कमांडो पाकिस्तान में उतरे थे। रात में इस ऑपरेशन से पहले अमेरिका ने पाकिस्तान के एबटाबाद में पूरे 9 महीनों तक इंटेलिजेंस ऑपरेशन चलाया था। लादेन के ठिकाने के बारे में एक-एक जानकारी जुटाई गई। जब अमेरिकी सेना का हेलिकॉप्टर एबटाबाद में उतरा था, वॉशिंगटन के वॉर रूम में ओबामा और उनकी टीम पल-पल का अपडेट देख रही थी। अमेरिकी एजेंट्स को अगस्त 2010 में तब शक हुआ था जब पता चला कि अल कायदा कूरियर एबटाबाद के एक कंपाउंड में जाता है।

सैटलाइट की तस्वीरों से भी देखा गया कि ओसामा बिन लादेन कंपाउंड में टहल रहा है। कम लोगों तक इस मिशन की जानकारी थी। 2 मई 2011 की रात अमेरिकी हेलिकॉप्टरों में 25 नेवी सील कमांडो अफगानिस्तान से उड़े। 90 मिनट के बाद एबटाबाद में हेलिकॉप्टर उतरा। उस इलाके में सेना के प्लेन अक्सर देखे जाते हैं। ऐसे में किसी को शक भी नहीं हुआ। 40 मिनट तक ऑपरेशन चला। लादेन के सिर पर गोली मारी गई। शव को बैग में पैक करके कमांडो अपने साथ ले गए। उसे दफनाने की जगह समंदर में बहा दिया गया।

दिसंबर 2019 में अमेरिका और ईरान के बीच तनाव चरम पर था। शिया मिलिशिया ने इराक में किरकुक के पास अमेरिकी बेस पर हमला कर एक नागरिक की हत्या कर दी और कई घायल हो गए। अमेरिकी एयरफोर्स ने फौरन मिलिशिया के ठिकानों पर हमले किए। बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर प्रोटेस्ट शुरू हो गए। अमेरिका ने माना कि इसके पीछे ईरान फोर्स है। ट्रंप ने साफ कर दिया कि अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा प्राथमिकता है और उन्हें खरोंच भी आने नहीं देंगे। इराक में शिया मिलिशिया को ट्रेंड करने का इनपुट मिलने पर अमेरिका ईरान से गुस्सा हो गया। ट्रंप ने बदला लेने की ठानी। तीन दिन बाद ईरानी फोर्स के कमांडर कासिम सुलेमानी सीरिया से बगदाद एयरपोर्ट पहुंचे। दो गाड़ियों से उनका काफिला रास्ते में था तभी आसमान से अचानक चार मिसाइलें गिरीं और सब धुआं-धुआं हो गया। सुलेमानी ईरान के सुप्रीम लीडर खमैनी के करीबी थे।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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