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November 22, 2024 9:27 pm

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रामचरितमानस के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने अब पंडे पुजारियों को लिया आड़े हाथ, पढ़िए क्या कहा इन्होंने?

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण के मुद्दे को एक बार फिर गरमाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने एक बार फिर पंडे और पुजारियों को इस कार्य के लिए जिम्मेदार करार दिया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव लगातार धार्मिक मुद्दों को छेड़कर एक अलग माहौल बनाने क प्रयास करते दिख रहे हैं। पिछले दिनों रामचरित मानस के मुद्दे को छेड़ दिया था। इस धार्मिक ग्रंथ को प्रतिबंधित करने की मांग कर डाली थी। यह मुद्दा खासा गरमाया था। अब उन्होंने पंडे और पुजारियों को धर्मांतरण के जिम्मेदार करार दिया है। उन्होंने कहा है कि इसके पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय सिंडिकेट नहीं है। पंडे और पुजारियों की वजह से धर्मांतरण हो रहा है।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि धर्मांतरण के पीछे अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट नहीं है। मंदिरों में बैठे हुए पंडे-पुजारियों और धर्मचारियों का गठजोड़ और सिंडिकेट है। धर्म की दुहाई देकर अपने ही अनुयायियों या धर्मावलंबियों को जातीय आधार पर अपमानित करने, मारने-पीटने और प्रताड़ित करने की बात की जाती है। उन लोगों को अपने ही धर्म के लोगों को नीच और अधम कहने की आदत बन गई है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरोप लगाया कि जातीय अपमान का कड़वा घूंट दिल्ली जगन्नाथ मंदिर में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को भी पीना पड़ा है। दूसरी ओर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी राजस्थान के पुष्कर के ब्रह्म मंदिर में इसी जातीय अपमान का दंश झेलना पड़ा।

सपा के राष्ट्रीय महासचिव ने कहा कि धर्म और जाति के आधार पर जब तक भेदभाव पूर्ण व्यवहार होगा, धर्मांतरण चलता रहेगा। उन्होंने कहा कि 95 फीसदी दलित, आदिवासी और पिछड़े हिंदू अनुयायियों को भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इस कारण धर्मांतरण की स्थिति बनती है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार यदि सही मायने में धर्मांतरण रुकवाना चाहती है तो जाति- धर्म के नाम पर लोगों को अपमानित करना बंद करे। तथाकथित मनगढ़ंत धार्मिक पुस्तकों में उल्लिखित अपमानजनक तथ्यों को संशोधित और प्रतिबंधित कराए। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट पर दोष मढ़ने की जगह मंदिरों में चल रहे पंडे-पुजारियों और धर्माचार्यों के सिंडिकेट को खत्म कराने की मांग की है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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