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23 February 2025 5:40 pm

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मां के बिकते जेवर, बाप की बेबसी को गजल में कहने वाले शायर – मेराज फैजाबादी

55 पाठकों ने अब तक पढा

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट 

हम गजल में तिरा चर्चा नहीं होने देते

तेरी यादों को भी रुस्वा नहीं होने देते।

कुछ हम खुद भी नहीं चाहते शोहरत अपनी

और कुछ लोग भी ऐसा नहीं होने देते।

मुझ को थकने नहीं देता ये जरूरत का पहाड़

मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते।।

मेराज फैजाबादी सिर्फ एक शेर में कितनी आसानी से उस बाप की परेशानी को कह देते हैं जो कुछ देर के लिए काम रोकना चाहता है, अब थोड़ा सुस्ताना चाहता है लेकिन बच्चों की तरफ देख फिर से जुट जाता है। मेराज एक आम इंसान की या कहिए कि हम सब की परेशानियों को इसी तरह जुबान देने वाले शायर हैं। वो लिखते हैं-

हमें पढ़ाओ न रिश्तों की और किताब

पढ़ी है बाप के चेहरों की झुर्रियां हमने।

मेराज फैजाबादी की आज जयंती है। आज ही की तारीख यानी 2 जनवरी को 1941 में वो फैजाबाद में पैदा हुए। करीब 5 दशक उर्दू अदब की सेवा करने वाले मेराज ने रोजमर्रा की दुश्वारियों पर शायरी के लिए एक बेहद खास पहचान बनाई। वो खुद ही लिखते हैं-

झील आंखों को नम होंठों को कमल कहते हैं

हम तो जख्मों की नुमाइश को गजल कहते हैं।

मेराज का चीजों को देखने का अलहदा नजरिया

मेराज फैजाबादी को दूसरों शायरों से जो बात अलग करती है, वो है उनका चीजों को देखने का अलहदा नजरिया। अब जैसे मैकशी और मयकदे की बात करें। ये अरसे से शायरों के फेवरेट टॉपिक रहे हैं लेकिन जब मेराज ने इस ओर देखा तो कुछ यूं लिखा-

बेखुदी में रेत के कितने समंदर पी गया

प्यास भी क्या शय है, मैं घबरा के पत्थर पी गया।

मयकदे में किसने कितनी पी खुदा जाने मगर

मयकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पी गया।।

घर के बिकते जेवर और मेराज फैजाबादी की कलम

आम घर में जरा सी मुश्किल का आना और औरतों के गहने बिकने पर बन आना, हर दूसरे घर की कहानी है। शायरी में माशूक के खूबसूरत झुमकों की बातें खूब मिलेंगी लेकिन मेराज की गजल में नम आंखों से शौहर को अपने जान से प्यारे जेवर गिरवी रखने को सौंपती औरत का दर्द मिलता है।

भीगती आंखों के मंजर नहीं देखे जाते

हम से अब इतने समंदर नहीं देखे जाते

वजादारी तो बुजुर्गों की अमानत है मगर

अब ये बिकते हुए जेवर नहीं देखे जाते।।

मेराज फैजाबादी की शायरी सिर्फ घर की परेशानियों तक नहीं सिमटी है। उन्होंने पूंजीवाद, सांप्रदायिकता जैसे मुद्दों पर भी खूब लिखा है। उदारवाद के बाद आए बदलावों पर तंज करते हुए लिखा उनका शेर खूब मशहूर है-

ऊंची इमारतों से मकान मेरा घिर गया

कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए।

मेराज फैजाबादी की शायरी के इस पहलू को पढ़कर कोई उनको ‘अनरोमांटिक’ शायर समझने की भूल मत कर सकता है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। जब वो रोमांटिक शायरी करते हैं, तब भी उतने ही वजनदार दिखते हैं। उनकी गजल के ये शेर देखिए-

तेरे बारे में जब सोचा नहीं था

मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था

तेरी तस्वीर से करता था बातें

मेरे कमरे में आईना नहीं था।

कैंसर ने हमसे छीन लिया उर्दू शायरी का ये सितारा

दुनियाभर में मुशायरे पढ़ने वाला, ‘नामूश’, ‘थोड़ा सा चंदन’ और ‘बेख्वाब साअते’ जैसे संग्रह लिखने वाला मेराज फैजाबादी नाम का सितारा 2013 में 71 साल की उम्र में शायरी के आसमान को सूना छोड़ गया। कई साल कैंसर से जूझने के बाद उनका शरीर हमें छोड़ गया लेकिन उनके शेर हमेशा के लिए लोगों के बीच रह गए।

सुना है बंद कर लीं उसने आंखें।

कई रातों से वो सोया नहीं था।।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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