दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगले विधानसभा चुनाव से पहले की यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक परीक्षा मानी जा रही है। 20 नवंबर को होने वाले उपचुनावों में 9 विधानसभा सीटों पर मतदान होने वाला है, जो कुल 403 विधानसभा सीटों में से मात्र 9 सीटें हैं, लेकिन इन चुनावों को 2027 के विधानसभा चुनावों के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। ये चुनाव राज्य की राजनीतिक हवा का रुख़ तय करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, खासकर तब, जब भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) जैसे मुख्य राजनीतिक दलों ने इस उपचुनाव में अपने प्रमुख नेताओं को प्रभारी नियुक्त कर दिया है।
कटेहरी: स्वतंत्रदेव सिंह और शिवपाल यादव की प्रतिष्ठा दांव पर
कटेहरी विधानसभा सीट, जो लालजी वर्मा के सांसद बनने के बाद खाली हुई थी, पर सपा ने लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को मैदान में उतारा है। भाजपा ने यहां पूर्व मंत्री धर्मराज निषाद को प्रत्याशी बनाया है, जबकि बसपा ने अमित वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है। इस सीट के चुनाव को दिलचस्प बनाने के लिए भाजपा ने कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को प्रभारी नियुक्त किया है, वहीं सपा ने इस सीट की जिम्मेदारी अपने कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव को सौंपी है। दोनों ही नेता अपनी पार्टी के लिए जीत सुनिश्चित करने के लिए लगातार जनसंपर्क और चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं।
फूलपुर: पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक गठजोड़ की बिसात
फूलपुर विधानसभा सीट पर भाजपा ने दीपक पटेल और सपा ने मुजतबा सिद्दकी को प्रत्याशी घोषित किया है। इस सीट पर एमएसएमई मंत्री राकेश सचान और दयाशंकर सिंह को भाजपा ने प्रभारी नियुक्त किया है। दूसरी ओर, सपा ने इस सीट पर इंद्रजीत सरोज को उतारकर पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) गठजोड़ की रणनीति अपनाई है। इस सीट को भाजपा और सपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है।
खासकर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लिए यह सीट महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि यहां पर पिछड़ा वर्ग का प्रभाव है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस सीट को अपने पीडीए गठजोड़ के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं।
करहल: मुलायम परिवार के लिए नाक का सवाल
करहल विधानसभा सीट, जो अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई, अब यादव परिवार के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा है। भाजपा ने यहां पर धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को प्रत्याशी बनाकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। इस सीट पर सपा और भाजपा के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिल रही है, जहां मुलायम परिवार के कई सदस्य मिलकर प्रचार कर रहे हैं।
कुंदरकी: जातिगत समीकरणों का खेल
कुंदरकी विधानसभा सीट पर भी इस बार जातिगत समीकरणों का खेल है। भाजपा ने रामवीर सिंह को तीसरी बार टिकट दिया है, जबकि सपा ने हाजी मोहम्मद रिजवान को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर भाजपा ने जेपीएस राठौर और जसवंत सैनी को प्रभारी नियुक्त किया है। दूसरी ओर, सपा ने राम अवतार सैनी को जिम्मेदारी दी है। यहाँ पर भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर होने की संभावना है, जहां पर स्थानीय मुद्दे और जातिगत समीकरण निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
सीसामऊ: सुरेश खन्ना बनाम सुनील सिंह साजन
कानपुर की सीसामऊ सीट पर भाजपा ने सुरेश अवस्थी को और सपा ने नसीम सोलंकी को मैदान में उतारा है। यह सीट लंबे समय से भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। इसलिए भाजपा ने यहां सुरेश कुमार खन्ना और नितिन अग्रवाल को जिम्मेदारी सौंपी है। दूसरी ओर, सपा ने इस सीट पर सुनील सिंह साजन और राजेंद्र कुमार को प्रभारी बनाया है।
मझवा: पिछड़ा बनाम दलित गठजोड़ की चुनौती
मीरजापुर की मझवा सीट पर भाजपा ने सुचिस्मिता मौर्य को प्रत्याशी बनाया है, जबकि सपा ने डॉ. ज्योति बिंद को मैदान में उतारा है। बसपा ने ब्राह्मण वोट बैंक को साधने के लिए दीपक तिवारी को टिकट दिया है। इस सीट पर भाजपा ने कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर को और अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल को प्रभारी नियुक्त किया है। यह सीट भाजपा और सपा दोनों के लिए अपनी पिछड़ी-दलित राजनीति को मजबूत करने का अवसर है।
निष्कर्ष: 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी का पड़ाव
यह उपचुनाव केवल 9 सीटों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनावों पर पड़ने की संभावना है। यह चुनाव भाजपा और सपा दोनों के लिए अपनी राजनीतिक रणनीतियों का परीक्षण करने का अवसर है। भाजपा जहां सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है, वहीं सपा अपने पुराने गढ़ को वापस पाने की कोशिश कर रही है।
इस उपचुनाव के नतीजे यह संकेत देंगे कि राज्य की जनता का मन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले क्या रुख़ अख्तियार कर सकता है। यही कारण है कि इस उपचुनाव को एक सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है, जिसका असर अगले विधानसभा चुनावों पर निश्चित रूप से देखने को मिलेगा।