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December 4, 2024 12:37 pm

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समोसा कांड : एक छोटा वाकया, बड़ी राजनीति

129 पाठकों ने अब तक पढा

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

भारत में ‘समोसे’ की चर्चा—यह सुनकर भले ही किसी को हंसी आ जाए, लेकिन मौजूदा समय में यह चर्चा राजनीतिक गलियारों से लेकर आम जनता के बीच जोरों पर है। दिलचस्प बात यह है कि समोसे का जिक्र भारत और अमेरिका दोनों जगह हो रहा है। जहां अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद समोसा कॉकस का बोलबाला है, वहीं भारत में हिमाचल प्रदेश के ‘समोसा कांड’ ने सरकार को हिला कर रख दिया है।

क्या है समोसा कांड?

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जब 21 अक्टूबर को सीआईडी मुख्यालय पहुंचे, तो उनके लिए विशेष तौर पर तीन बॉक्स समोसे और केक मंगवाए गए थे। लेकिन यह सामान मुख्यमंत्री के पास पहुंचने के बजाय सुरक्षाकर्मियों को सर्व कर दिया गया। इसके बाद पूरे मामले पर सीआईडी जांच बिठाई गई, जिसने हिमाचल की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया।

जांच में क्या निकला?

सीआईडी की जांच रिपोर्ट के अनुसार, समोसे और केक मुख्यमंत्री की जगह सीआईडी स्टाफ को परोसे गए थे। यह गलती किस अधिकारी से हुई, इसकी जांच की गई। रिपोर्ट में पाया गया कि एक आईजी रैंक के अधिकारी ने शिमला के एक होटल से समोसे मंगवाए थे, जो सीएम के लिए थे। लेकिन इंस्पेक्टर रैंक की महिला अधिकारी पूजा ने इन्हें किसी अन्य अधिकारी के कमरे में रखवा दिया, और बाद में ये समोसे और केक वहां मौजूद अन्य कर्मचारियों को चाय के साथ परोस दिए गए।

जांच रिपोर्ट की टिप्पणी

सीआईडी की रिपोर्ट में इसे ‘सरकार और सीआईडी विरोधी’ कृत्य बताया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि जिन लोगों ने यह गलती की, उन्होंने ‘सरकार विरोधी’ तरीके से काम किया। एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने यहां तक लिखा कि इन लोगों ने अपने एजेंडे के हिसाब से काम किया।

क्या था सीआईडी का बचाव?

सीआईडी प्रमुख संजीव रंजन ने सफाई दी कि यह पूरी तरह से आंतरिक मामला था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जब कार्यक्रम के बाद मुख्यालय से निकले, तब अधिकारियों ने चाय के दौरान समोसे की बात उठाई। रंजन ने बताया कि इस मामले का अनावश्यक राजनीतिकरण किया जा रहा है।

सरकार और विपक्ष के तर्क-वितर्क

मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार नरेश चौहान ने मामले को ‘गलत प्रचार’ करार दिया। उन्होंने कहा कि इस जांच का आदेश सरकार ने नहीं दिया था, बल्कि यह सीआईडी का आंतरिक मामला था। वहीं, बीजेपी ने इस मौके को भुनाते हुए सरकार पर निशाना साधा। बीजेपी प्रवक्ता रणधीर शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार विकास कार्यों को नजरअंदाज कर मुख्यमंत्री के समोसे की चिंता में लगी है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि समोसा सर्विसिंग में गड़बड़ी को ‘सरकार विरोधी’ कृत्य कहना एक बड़ा शब्द है और यह सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है।

तर्क-वितर्क और वास्तविक मुद्दे

यह समोसा कांड असल में एक छोटे से प्रशासनिक असंतुलन का मामला था, जो हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक बड़े विवाद में तब्दील हो गया। इसमें तर्क यह दिया जा सकता है कि—

1. सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग: अगर मुख्यमंत्री के लिए मंगवाए गए समोसे और केक को सुरक्षाकर्मियों को परोसा गया, तो इसे प्रशासनिक लापरवाही माना जा सकता है। लेकिन इसे ‘सरकार विरोधी’ करार देना क्या सही है?

2. राजनीतिकरण की राजनीति: बीजेपी ने इस मामले को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। यह साफ दिखाता है कि विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है, इसलिए वह समोसे के बहाने सरकार पर हमला कर रहा है।

3. मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि यह जांच समोसे के लिए नहीं, बल्कि कर्मचारियों के गलत व्यवहार के लिए थी।

क्या यह बड़ा मुद्दा है?

हकीकत यह है कि समोसे का यह छोटा सा मामला हिमाचल प्रदेश में राजनैतिक ड्रामा बन गया है। इसे इतना तूल देने का कोई ठोस कारण नहीं है, लेकिन राजनीति में छोटी-छोटी बातें बड़े मुद्दों में तब्दील हो जाती हैं। इस पूरे प्रकरण ने यह सिद्ध कर दिया कि राजनीति में कभी-कभी समोसे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

समोसा कांड ने यह साबित कर दिया कि राजनीति में मुद्दों की कमी हो, तो समोसे भी बड़ा मसला बन सकते हैं। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच चल रहे इस विवाद का असली मकसद जनता का ध्यान भटकाना हो सकता है। आम जनता के लिए, यह एक हास्यास्पद घटना हो सकती है, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए यह सत्ता की लड़ाई का एक और मोर्चा है।

क्या समोसे जैसे मामूली मुद्दे पर जांच बैठाना और इसे तूल देना वाकई जरूरी था? यह सोचने वाली बात है।

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