प्रदीप मिश्रा की रिपोर्ट
मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के चिल्हारी गांव में एक फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है, जिसमें फर्जी मार्कशीट के आधार पर 26 साल से नौकरी कर रहे एक स्कूल के प्रभारी प्रधानाचार्य को कोर्ट ने पांच साल की सजा सुनाई है। आरोपी अखिलेश्वर नाथ द्विवेदी ने फर्जी डिग्रियों के सहारे शिक्षा विभाग में वर्ग-1 के पद पर नियुक्ति पाई थी और लंबे समय तक विभिन्न स्कूलों में सेवाएं दीं। इस धोखाधड़ी का पर्दाफाश होने पर शिक्षा विभाग के अधिकारी भी हैरान रह गए।
26 साल से नौकरी कर रहे थे फर्जी डिग्री पर
आरोपी अखिलेश्वर नाथ द्विवेदी ने वर्ष 1994 से 1996 के बीच बीएससी, बीएड, और एमए की डिग्रियां प्राप्त कीं, जबकि इन डिग्रियों को प्राप्त करने में सामान्यतः छह से सात साल लगते हैं। उन्होंने वर्ष 1998 में शहडोल जिले के हायर सेकंडरी स्कूल मानपुर में अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति पाई। शहडोल से कट कर उमरिया जिला बनने के बाद उन्होंने कई बार अपने ट्रांसफर करवाए और आखिर में प्रभारी प्राचार्य के पद पर पदोन्नति भी हासिल कर ली।
फर्जी डिग्रियों से हासिल की नौकरी
अखिलेश्वर नाथ द्विवेदी ने 1994 में बुंदेलखंड झांसी से बीएससी, 1995 में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से बीएड, और 1996 में उस्मानिया हैदराबाद से एमए की डिग्री हासिल की। इन डिग्रियों पर संदेह होने पर पलझा गांव निवासी गोविंद प्रसाद तिवारी ने 2012 में इस मामले की शिकायत उमरिया जिले के कलेक्टर, डीईओ, और जिला पंचायत के सीईओ को की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने की जांच
जब स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो गोविंद प्रसाद तिवारी ने आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो भोपाल को जांच की मांग करते हुए पत्र लिखा। जांच के दौरान सभी डिग्रियां फर्जी पाई गईं। इस पर इंदवार थाना प्रभारी द्वारा अखिलेश्वर नाथ के खिलाफ मामला दर्ज किया गया और 2015 में यह मामला कोर्ट में पहुंचा।
कोर्ट का फैसला: पांच साल की सजा
नौ साल की कानूनी लड़ाई के बाद जिला अपर सत्र न्यायाधीश सुधीर कुमार चौधरी ने अखिलेश्वर नाथ द्विवेदी को फर्जीवाड़े के मामले में दोषी ठहराते हुए पांच साल की सजा सुनाई। इसके साथ ही उन पर तीन हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में छह महीने की सश्रम कारावास की सजा भी दी जाएगी। इसके अलावा, कोर्ट ने आदेश दिया है कि 26 साल के दौरान उन्हें जो वेतन और अन्य लाभ दिए गए थे, उनकी भी वसूली की जाएगी।
यह मामला शिक्षा विभाग में फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी के एक बड़े उदाहरण के रूप में सामने आया है, जिसने 26 सालों तक किसी की नजर में आए बिना चलता रहा।
Author: Desk
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