दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
एक पुरानी कहावत है कि मुजरिम कितना भी शातिर क्यों न हो, एक गलती जरूर करता है, जो उसकी साजिश को उजागर कर देती है। ऐसी ही एक गलती पूजा खेडकर ने की, जो कुछ समय पहले तक आईएएस की ट्रेनिंग कर रही थी। पूजा का जलवा हर तरफ था। आईएएस मैडम की शान में पीछे खड़े पुलिस वाले, लाल-नीली बत्ती वाली कार, और नंबर प्लेट के ऊपर लिखा “महाराष्ट्र सरकार” देखकर आम लोग सहम जाते थे। लेकिन पूजा को लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ी का इतना शौक था कि वह इसके लिए कुछ दिनों का इंतजार भी नहीं कर सकी।
यही लाल-नीली बत्ती उनकी बत्ती गुल कर गई और अब उन्हें जेल जाने से कोई नहीं रोक सकता। पिछले महीने से पूरे देश में नीट एग्जाम की धांधली को लेकर हंगामा मचा हुआ है। इसी बीच यूपीएससी एग्जाम की धांधली को लेकर भी शोर उठ गया, जिसमें ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर का नाम सामने आया। यूपीएससी की जांच में पता चला कि पूजा ने परीक्षा में चयन के लिए अधिकतम सीमा से भी अधिक बार परीक्षा दी और इसका लाभ उठाया। उसने अपना नाम, पिता और माता का नाम, तस्वीर/हस्ताक्षर, ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर, और पता बदलकर फर्जी पहचान बनाई।
यूपीएससी ने उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का फैसला किया है। थाने में एफआईआर दर्ज कराई जा रही है और सिविल सेवा परीक्षा 2022 के नियमों के तहत उनकी उम्मीदवारी रद्द करने और भविष्य की परीक्षाओं में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
यूपीएससी की जांच से यह साफ हो गया है कि पूजा खेडकर ने आईएएस बनने के लिए तमाम तरह की धोखाधड़ी की। दरअसल, यूपीएससी के एग्जाम में बैठने के लिए अलग-अलग कैटेगरी के तहत उम्मीदवारों को अलग-अलग मौके मिलते हैं। जनरल कैटेगरी के उम्मीदवार 32 साल की उम्र तक कुल छह बार यूपीएससी का एग्जाम दे सकते हैं। ओबीसी कैटेगरी के तहत 35 साल की उम्र तक कुल 9 बार परीक्षा देने की छूट है, जबकि एससी और एसटी कोटा के तहत 37 साल की उम्र तक यूपीएससी की परीक्षा दी जा सकती है।
पूजा खेडकर ने तय सीमा से अधिक बार परीक्षा दी और हर बार नए नाम और नई पहचान का सहारा लिया। यहां तक कि अपने माता-पिता का नाम तक बदल डाला। असली फर्जीवाड़ा यह था कि पूजा ने साल 2022 में यूपीएससी का एग्जाम क्लियर किया और ऑल इंडिया रैंक 841 प्राप्त की। वह ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर और दिव्यांगता के कोटे से परीक्षा में बैठी थी, जिससे उसे आईएएस कैटेगरी में रखा गया।
ट्रेनिंग के लिए पूजा मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी पहुंची और उसे ट्रेनी आईएएस अफसर के तौर पर असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में पुणे कलेक्टरेट ऑफिस में तैनाती दे दी गई। यहां से असली कहानी शुरू हुई। पूजा ने कलेक्टर के ऑफिस इंचार्ज को फोन और व्हाट्सएप मैसेज किया, जिसमें उसने सभी जरूरी व्यवस्थाओं की मांग की, जैसे लाल-नीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी, बंगला, सुरक्षा के लिए कांस्टेबल, आदि। लेकिन उसकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
तय तारीख पर मैडम कलेक्टर ऑफिस पहुंची और कलेक्टर सुहास दिवासे के कमरे पर कब्जा कर लिया। उसने नेम प्लेट बदलकर अपनी नेम प्लेट लगा ली और ऑफिस का सारा फर्नीचर बाहर कर दिया। लेटरहेड से लेकर विजिटिंग कार्ड तक छपवा लिए। जब कलेक्टर साहब लौटे, तो यह देखकर हैरान रह गए। उन्होंने तुरंत मुंबई में बैठे चीफ सेक्रेटरी साहब को इसकी जानकारी दी। जांच के बाद पूजा का ट्रांसफर पुणे से वाशिम कर दिया गया।
मामला यहां खत्म नहीं हुआ। पूजा की मम्मी ने मीडिया को धमकाना शुरू कर दिया, लेकिन मीडिया ने भी उनकी पुरानी तस्वीरें और वीडियो निकाल लीं, जिसमें वे पिस्टल लहराते हुए दिख रही थीं। मां के बाद अब पिता की बारी आई, जो कभी आईएएस अफसर थे और अब करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन चुके थे। चुनाव आयोग को दी गई संपत्ति की जानकारी के बाद उनका भी फर्जीवाड़ा सामने आ गया।
पूजा के सबसे बड़े फर्जीवाड़े का इल्जाम खुद को दिव्यांग बताने का था। उसने यूपीएससी को दिव्यांगता का एक सर्टिफिकेट दिया था, जिसमें बताया गया था कि उसे मानसिक दिक्कत है और उसकी नजरें कमजोर हैं। यूपीएससी ने इसकी जांच एम्स में करानी चाही, लेकिन पूजा हर बार बहाना बनाकर टेस्ट से बचती रही। अंततः कैट ने भी उसकी दिव्यांगता को मानने से इनकार कर दिया।
इसके बावजूद पूजा को महाराष्ट्र कैडर देते हुए पुणे में असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में तैनात कर दिया गया। डीओपीटी ने यह आदेश जारी किया था, जो प्रधानमंत्री के अधीन आता है। अब सवाल उठता है कि पूजा को यह तैनाती कैसे मिली, जब उसकी दिव्यांगता का सबूत नहीं था।
यूपीएससी के आदेश पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पूजा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता और आईटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कर ली है। पूजा का रिजल्ट रद्द होगा और उसके नाम के आगे या पीछे लगा आईएएस का तमगा भी हट जाएगा। इस प्रकार, पूजा खेडकर की लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ी पाने की बेसब्री में की गई एक छोटी सी गलती ने उसे जेल के रास्ते पर ला खड़ा किया। अगर उसने कुछ दिन सब्र कर लिया होता, तो शायद यह सारा फर्जीवाड़ा कभी सामने न आता।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."