संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। बुंदेलखंड के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार रहे जनपद चित्रकूट हमेशा से सुर्खियों में बना रहा है कभी यह ज़िला दस्युओं के खूंखार अपराध व दहशत के लिए जाना जाता था जहां पर पठारी क्षेत्रों के लोग दस्युओं के खौफ के कारण डरी सहमी जिंदगी व्यतीत करते थे लेकिन दस्युओं के खात्मे के बाद आज़ हालात काफ़ी बदल गए हैं l
चित्रकूट ज़िले के बीहड़ों में हमेशा दस्युओं का फ़रमान चलता था जिसके कारण राजनीति में भी दस्युओं का बोलबाला रहा है दस्यु सम्राट जिसे चाहते थे वही सांसद, विधायक, ब्लाक प्रमुख, क्षेत्र पंचायत सदस्य व ग्राम प्रधान चुने जाते थे अगर किसी ने भी दस्युओं के फ़रमान पर ध्यान नहीं दिया तो उसकी लाश गिरा दी जाती थी दस्युओं के फ़रमान का यह वही दौर था जहां पर राजनीति में लाशें गिरती थी l
बसपा सरकार में दस्यु सम्राट शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ के खात्मे के मानो दस्यु सम्राटों की बादशाहत पर ग्रहण लग गया जहां पर बीहड़ों में छिपे हर छोटे बड़े दस्यु सम्राटों व उनके सहयोगियों का सरकार द्वारा अंत कर दिया गया और पहली बार चित्रकूट ज़िला दस्युओं के आतंक से आजाद हो पाया और पठारी क्षेत्रों की जनता बेखौफ होकर रोटी और रोज़गार के लिए स्वतंत्र हो पाई और अपने परिवार के बीच बिना किसी भय के जीवन जीने लगी l
दस्यु सम्राटों के खात्मे के बाद राजनीति पर लाशें गिरनी तो बंद हो गईं लेकिन लाशों पर राजनीति का दौर शुरू हो गया जो वर्तमान समय में लाशों पर हो रही राजनीति चर्चाओं का बाज़ार गर्म कर रही हैं l
ज़िला मुख्यालय के ज़िला चिकित्सालय व चीर घर में लाशें पहुंचने पर नेताओं व समाजसेवियों का जमावड़ा लगता है जो अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए पीडितों का हमदर्द होने का दावा ठोंकते हैं और मृतकों के परिजनों के साथ कभी ज़िला चिकित्सालय तो कभी चीर घर पहुंचते हैं और पोस्टमार्टम होने के बाद मृतक के कफ़न का इंतज़ाम भी नेता जी व समाजसेवी ही करते हैं व मृतक के परिजनों को उनकी कमज़ोरी का एहसास भी दिलाते हैं कभी कभी तो नेताजी व समाजसेवी ऐसे हालात पैदा कर देते हैं कि पुलिस प्रशासन से पीड़ित परिजनों का टकराव करा देते हैं और परिजनों पर मुकदमा दर्ज़ होने के बाद यह नेता जी व समाजसेवी मैदान छोड़ कर भाग खड़े होते हैं l
कई मामलों में यह भी देखने को मिलता है कि अगर कोई विवाहित व अविवाहित घरेलू हिंसा का शिकार होकर या फिर अपनी मर्जी से आत्महत्या जैसी वारदात को अंजाम देती है तो ऐसे मामलों में मानो नेताजी व समाजसेवियों की चांदी हो जाती है जो घर वालों व ससुरालीजनों को फर्जी फंसाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं व पुलिस प्रशासन के ज़िम्मेदार अधिकारियों की कार्यवाही का डर दिखाकर पीड़ित परिजनों को लूटने का काम करते हैं l
कई मामले ऐसे भी देखने को मिले हैं जिसमें घटना व दुर्घटना के शिकार मृतकों के परिजनों को यह नेताजी व समाजसेवी भरोसे में ही टांगे रहते हैं लेकिन उनको सरकार द्वारा दी जा रही सहायता राशि भी नहीं मिल पाती है और कई मामले ऐसे भी होते हैं जिसमें नेताजी व समाजसेवी पीडितों को मिलने वाली सरकारी सहायता राशि में भी अपनी हिस्सेदारी निभाते हुए नज़र आते हैं l
अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए नेताजी व समाजसेवी लाशों पर राजनीति करते हुए नज़र आते हैं…
काश… यही नेताजी व समाजसेवी जिंदा लोगों पर अपनी हमदर्दी दिखाएं और जिंदा लोगों का सहयोग करें तो बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है l
खैर कोई बात नहीं… यह पब्लिक है सब जानती है… आने वाले समय में ऐसे नेताओं व समाजसेवियों को राजनीति चमकाने का अवसर नहीं देगी व ऐसे मौका परस्त नेताओं व समाजसेवियों को सबक सिखाने का काम करेगी l
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."