जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
जीवन कभी-कभी ऐसे पल दिखाता है जो इतिहास बन जाते हैं। कहते हैं कि अंधेरी रात के बाद उजाला जरूर आता है, और मऊ जिले के अमिला बाजार स्थित चूंटीडार गांव की यह कहानी इस कहावत को चरितार्थ करती है।
सन 1975: फूलमती का गायब होना
चूंटीडार गांव की 8 वर्षीय मासूम बच्ची फूलमती अपनी मां के साथ मेले का आनंद लेने गई थी। खुशियों से भरी उस रात का अंत दुःखद हो गया, जब फूलमती अचानक लापता हो गई। उस समय फूलमती इतनी छोटी थी कि उसे अपने पिता का नाम तक याद नहीं था। गांव और परिवार वालों ने उसकी बहुत तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।
फूलमती की नई जिंदगी की शुरुआत
फूलमती ने बताया कि मेले में एक साधुवेशधारी व्यक्ति ने मिठाई का लालच देकर उसे अपने पास बुलाया और फिर उसे मुरादाबाद ले गया। वहां उसने फूलमती को एक व्यक्ति के हाथों बेच दिया। खरीददार ने कुछ समय बाद उससे शादी कर ली। इस शादी से फूलमती को एक बेटा हुआ। लेकिन किस्मत ने फिर करवट ली, और उसके पति का देहांत हो गया।
अपने बेटे के साथ जिंदगी की जंग लड़ती हुई फूलमती किसी तरह एक सरकारी विद्यालय में रसोइया का काम करने लगी। विद्यालय की प्रधानाध्यापिका पूजा मैडम से उसने अपने बचपन की कहानी साझा की।
भूलने के बाद भी याद थी कुछ बातें
फूलमती को अपने गांव के बाहर एक कुएं, गांव के नाम और अपने मामा रामचंद्र का नाम याद था। इन छोटी-छोटी बातों ने उसकी खोई पहचान खोजने में अहम भूमिका निभाई। पूजा मैडम ने इंटरनेट पर चूंटीडार गांव का जिक्र खोजा, जिससे पता चला कि यह गांव अब मऊ जिले का हिस्सा है।
घर वापसी का सफर और भावुक मिलन
फूलमती की कहानी सुनकर विद्यालय प्रशासन और पुलिस सक्रिय हुए। मऊ जिले की पुलिस ने चूंटीडार गांव पहुंचकर वहां के बुजुर्गों और ग्रामीणों से बातचीत की। गांव वालों ने बताया कि 49 साल पहले एक बच्ची के खोने की घटना हुई थी। फूलमती के भाई लालधर, जो उससे दो साल बड़े हैं, ने अपनी बहन को तुरंत पहचान लिया।
भाई-बहन के मिलन का यह दृश्य इतना भावुक था कि वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं। 49 साल बाद, फूलमती ने अपने खोए हुए परिवार और अपनी मिट्टी को पाया।
यह कहानी न केवल परिवार के महत्व को दर्शाती है बल्कि यह भी साबित करती है कि यदि प्रयास और धैर्य हो, तो खोई हुई पहचान भी वापस पाई जा सकती है। फूलमती का जीवन संघर्ष और जीत का प्रतीक है, जो हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।