अनिल अनूप
भारत की ‘आर्थिक आजादी’ के शिल्पकार, लगातार 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे, कई ‘मील-पत्थर’ योजनाओं के सूत्रधार, महान अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह दिवंगत हो गए। उन्होंने 92 साल की भरी-पूरी जिंदगी जी और देश को ‘दूसरी आजादी’ दिलाई, इससे ज्यादा एक जिंदगी में और क्या किया जा सकता था? लिहाजा उनका देहावसान उनकी पार्थिव नियति ही है। भारत आजाद देश था, लेकिन औसत भारतीय के स्वप्न और आर्थिक आयाम अपेक्षाकृत आजाद नहीं थे। हम एक गरीब और कर्जदार देश थे। बहरहाल आज विकासशील देश हैं और ‘विकसित’ बनने का लक्ष्य तय किया है। 1991 के दौर में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मात्र एक अरब डॉलर रह गया था, लिहाजा आयात का घोर संकट था। तत्कालीन चंद्रशेखर सरकार को पेट्रोलियम और उर्वरक के आयात के लिए 40 करोड़ डॉलर जुटाने के लिए 46.91 टन सोना इंग्लैंड और जापान के बैंकों में गिरवी रखना पड़ा था। उस दौर में कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया और उसी के साथ आर्थिक उदारीकरण ने भारत की ‘दूसरी आजादी’ का अध्याय लिखना आरंभ कर दिया। हालांकि डॉ. सिंह के पहले बजट के मसविदे को प्रधानमंत्री राव ने खारिज कर दिया था। उनकी उम्मीदें लीक से हटकर थीं। डॉ. सिंह के सामने आर्थिक चुनौतियां रखी गईं और बहुत थोड़े से वक्त में उन्होंने ऐसा बजट तैयार किया, जिसने भारत के ‘आर्थिक भाग्य’ को ही संकटों और अभावों से मुक्त कर दिया। अर्थव्यवस्था खोल दी गई। विदेशी निवेशकों और कंपनियों के लिए देश के दरवाजे खोल दिए गए। डॉ. सिंह कहा करते थे-भारत किसी से, क्यों डरे? हम विकास के ऐसे चरण में पहुंच चुके हैं, जहां विदेशियों से डरने के बजाय हमें उनका स्वागत करना चाहिए।
हमारे उद्यमी किसी से कमतर नहीं हैं। हमें अपने उद्योगपतियों पर पूरा भरोसा है।’ अंतत: 24 जुलाई, 1991 के उस बजट ने आर्थिक उदारीकरण का जो दौर शुरू किया, उसके दो साल के भीतर ही विदेशी मुद्रा भंडार 10 अरब डॉलर, यानी 10 गुना अधिक, हो गया। लाइसेंस और इंस्पेक्टर राज का दौर समाप्त हुआ और 34 क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का ऑटोमैटिक रूट तैयार कर दिया गया। कंपनियों पर कई पाबंदियां उठा ली गईं। कॉरपोरेट के पूंजीगत मुद्दों पर नियंत्रक खत्म किया गया और सेबी को संवैधानिक शक्तियां दी गईं। सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए आयकर अधिनियम की धारा 80 एचएचसी के तहत कर-छूट की घोषणा भी की गई। वित्त मंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह ने जिन आर्थिक सुधारों का सूत्रपात किया, उन्हें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी निरंतर बनाए रखा, नतीजतन भारत दुनिया की ‘आर्थिक महाशक्ति’ बनता चला गया। उन आर्थिक सुधारों की बुनियाद पर ही आज भारत विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और विदेशी मुद्रा का भंडार 650 अरब डॉलर से अधिक का है। वास्तव में डॉ. मनमोहन सिंह भारत की ‘आर्थिक आजादी’ के शिल्पकार ही नहीं, कोई फरिश्ता थे, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, भारत सरकार में आर्थिक सलाहकार, रिजर्व बैंक के गवर्नर से लेकर प्रधानमंत्री तक की व्यापक जिम्मेदारियां और भूमिकाएं एक ही व्यक्ति नहीं निभा सकता। यकीनन वह एक दुर्लभ शख्सियत थे। प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. सिंह ने कई ‘मील-पत्थर’ योजनाओं को क्रियान्वित किया। उस विरासत और जनवादी सोच को कौन भूल सकता है? प्रधानमंत्री सिंह ने 6-14 साल की उम्र के बच्चों के लिए अनिवार्य, मुफ्त शिक्षा का कानून बनाया। सरकारी पारदर्शिता और जवाबदेही के मद्देनजर ‘सूचना का अधिकार’ कानून बनाया। खाद्य सुरक्षा को कानूनी रूप दिया। साल में कमोबेश 100 दिन के रोजगार की गारंटी वाले ‘मनरेगा’ का कानून लागू किया। उन्हें नमन।