आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
सुबह के 6 बज रहे थे। राजेश (काल्पनिक नाम) भागता हुआ जा रहा था। तभी सुशील ने पीछे से आवाज दी, राजेश तुम्हारी साइकिल कहां है? राजेश ने ऊंची आवाज में कहा कल आ जाएगी। आज ठेकेदार सैलरी देगा। पुरानी वाली साइकिल टूट गई थी। बाल-बच्चों की परवरिश में साइकिल खरीदना मुश्किल हो रहा था। पिछले महीने ओवरटाइम करके कुछ ज्यादा पैसे बनाए हैं तो इस बार नई साइकिल ले लूंगा। भागते हुए राजेश को ये नहीं पता था कि शायद उसकी ये ख्वाहिश पूरी नहीं होने वाली है। क्योंकि विधि को कुछ और ही मंजूर था।
15वीं मंजिल पर काम करने के लिए राजेश लिफ्ट में चढ़कर ऊपर की तरफ बढ़ा ही था कि बीच रास्ते में लिफ्ट की तार टूट गई और धड़ाम!!! राजेश के सारे सपने खत्म हो चुके थे। नीचे गिरी लिफ्ट में उसका बेजान शरीर पड़ा था। दूसरे के सपनों को आकाश तक पहुंचाने वाले राजेश के बाल-बच्चे अब क्या करेंगे? ये तो एक कहानी थी।
लेकिन ग्रेटर नोएडा के आम्रपाली ड्रीम वैली में आज एक ऐसा ही हादसा हुआ है। निर्माणाधीन साइट पर लिफ्ट गिरने से चार मजदूरों की मौत हो गई। मरने वालों की पहचान इस्ताक, अरुण, विपोत मंडल और आरिस के रूप में हुई है। ये सभी बिहार के रहने वाले हैं।
गरीब मरा है, किस बात की फिक्र!!
हजारों किलोमीटर दूर काम की तलाश में आए इन मजदूरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आज उनके काम और जिंदगी का आखिरी दिन होगा। नीचे टूटी हुई लिफ्ट पड़ी थी और ऊपर सैकड़ों की संख्या में लोग खड़ा होकर उन चार बेजान शरीर को मजमा लगाकर देख रहे थे। हां, इन मौतों से उन्हें क्या। ये कोई पैसे वाले या फ्लैट में रहने वाले बड़े लोग थोड़े ही न हैं। कुछ दिन तक अधिकारियों और नेताओं का मजमा लगेगा और फिर धीरे-धीरे सबकुछ अपनी गति से चलने लगेगा। वैसे भी गरीबों की मौत पर भला कौन आंसू बहाता है। थोड़ी बहुत संवेदना मिल जाती है लेकिन उन संवेदनाओं से क्या मरने वालों के परिवार का पेट पलेगा? नहीं कतई नहीं।
लिफ्ट में बिखरे पड़े चप्पल और मौत का मंजर
बहुमंजिला इमारत की जो लिफ्ट टूटी है उसमें मौत का मंजर साफ देखा जा सकता है। इस्ताक, अरुण, विपोत मंडल और आरिस इसी कातिल लिफ्ट में सुबह-सुबह काम करने के लिए पहुंचे थे। लिफ्ट की लोहेदार फर्श पर मजदूरों के चप्पल बिखरे पड़े थे। जमीन पर खून के धब्बे भी दिख रहा हैं। ये डराने वाला मंजर है।
जिन हजारों लोगों के लिए ये मजदूर आशियाना बना रहे थे उनको एक मुकम्मल लिफ्ट तक नसीब नहीं हुई। ये पैसेंजर लिफ्ट थी। लेकिन काम कराने वाली कंपनी ने इसका ठीक रखरखाव तक नहीं किया था। लिफ्ट की मोटर ऊपर फंस गई और नीचे 4 मजदूरों की जान चली गई।
प्रशासन या बिल्डर इन मजदूरों को कुछ पैसे देकर इति श्री कर लेंगे और फिर बात आई-गई हो जाएगी। लेकिन उन 4 परिवारों का क्या होगा जिसके कमाने वाले सदस्य चले गए। उनपर जो बीतेगी उस बारे में तो कोई सोच भी नहीं सकता है। इस हादसे में 5 लोग घायल भी हुए हैं। उनकी हालत भी बेहद गंभीर है। यानी इन मजदूरों के घर वालों का कलेजा भी मुंह को आ चुका होगा। बताया गया है कि 24 घंटे बीतने के बाद ही डॉक्टर इन मजदूरों की हालत के बारे में कुछ बताएंगे। इन मजदूरों के सिर में चोट हैं और बॉडी में कई जगह फ्रैक्चर है।
जान गंवाने की सजा भी मजदूरों को ही!
इतनी बड़ी दुर्घटना होने के बाद नोएडा का प्रशासन घटनास्थल पर पहुंचा। घायलों से मुलाकात की। लेकिन यहां भी मजदूरों और उनकी रोजी-रोटी को झटका लगा है।
प्रशासन ने ड्रीमवैली प्रोजेक्ट साइट को ही सील करने का फैसला किया है। लाउडस्पीकर से बिल्डिंग खाली करने की घोषणा कर दी गई है। लेकिन अब उन सैकड़ों मजदूरों का क्या होगा? उनकी रोजी-रोटी का क्या होगा? ये सभी मजदूर यहीं पर रहे थे। यानी अब उनका आशियाना भी छिन जाएगा। उनके रहने, ठहरने का प्लान तैयार किए बिना प्रशासन उन्हें उनके ठिकाने से भगा रहा है। यानी जान जाए तो मजदूर की। सजा भुगते तो मजदूर। हाय री किस्मत!
ड्रीमवैली से हजारों का ड्रीम टूटा
इस प्रोजेक्ट का नाम ड्रीमवैली है। यानी सपनों की घाटी। इस घाटी को पूरा करने के लिए अपने छिले, घायल और पैर में पानी लगे हाथ-पैर से मजूदर अपने जी-जान से लगे थे। रोज कमाकर कुछ पैसे घर में लगाते थे कुछ माता-पिता को भेजते थे। लेकिन अब प्रशासन के फैसले के बाद सबकुछ छिन गया है। वो तो इस ड्रीमवैली में नहीं रहते लेकिन इस प्रोजेक्ट के जरिए जो कुछ काम पूरा करने का मजदूरों ने सपने संजोए थे वो तो टूट गए। लेकिन इससे किसे फर्क पड़ता है भला। मरा तो गरीब ही है न…
इन मजदूरों का मौत का जिम्मेदार कौन?
जिन चार घरों के चिराग आज बुझ गए हैं, उनकी मौत का जिम्मेदार कौन है? सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि जिस लिफ्ट में हादसा हुआ क्या उसकी देखरेख ठीक तरीके से होती थी। क्या प्रशासन केवल प्रोजेक्ट साइट बंद करके अपनी जिम्मेदारियों ने नहीं भाग रहा है। क्या प्रोजेक्ट बना रही कंपनी को केवल मुआवजा देकर इससे बच सकती है। अरे चार लोगों की मौत हुई है। उन घरों के लोगों के बारे में सोचिए। केवल मुकदमा दर्ज होने से क्या होगा? इन मजदूरों के मौत के जिम्मेदार लोगों को सजा मिलेगी? सबसे बड़ा सवाल तो यही है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."