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November 22, 2024 7:59 pm

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“सूर्य” की तेज से “विज्ञान” को “प्रकाश” देने सूर्य की ओर जानेवाले “आदित्य -एल1” के प्रणेता को जानते हैं?

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मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट 

नई दिल्ली : इसरो ने देश के पहले सूर्ययान आदित्य-L1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। देश के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण राकेट (PSLV) – सी57 (पीएसएलवी-सी57) के साथ रवाना हुआ। इस मौके पर आदित्य-L1 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी ने देश के मशहूर साइंटिस्ट यूआर राव को याद किया। निगार ने कहा कि प्रोफेसर यूआर राव ने ही इस मिशन का बीज बोया था। उडूपी रामचंद्र राव को भारतीय स्पेस टेक्नोलॉजी का ‘जनक’ कहा जाता है। यूआर राव भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से जुड़े थे। राव ने 1984-1994 तक 10 वर्षों तक इसरो के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

सैटेलाइट प्रोग्राम को किया लीड

प्रो. राव ने विक्रम साराभाई की मृत्यु के बाद भारत के उपग्रह कार्यक्रम का नेतृत्व किया। उन्होंने भारत के पहले उपग्रह, ‘आर्यभट्ट’ को लॉन्च करने के लिए युवा वैज्ञानिकों की एक टीम का नेतृत्व किया। प्रोफेसर राव के पास अपने सहयोगियों के साथ आर्यभट्ट उपग्रह की परिकल्पना, डिजाइन, निर्माण और टेस्टिंग करने के लिए केवल 36 महीने थे। प्रोफेसर राव ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने 10 मई 1972 को भारत के उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए यूएसएसआर के साथ बातचीत का नेतृत्व किया था। वह लगभग 200 सैटेलाइट वैज्ञानिकों की टीम में शामिल थे। बाद में, एक इंटरव्यू के दौरान राव ने कहा था कि, हमने एस्बेस्टस-छत वाले शेड में रात-दिन काम किया। वहां, व्यावहारिक रूप से कोई बुनियादी ढांचा नहीं था। सड़क पर कारों से ज्यादा बैलगाड़ियां थीं।

आर्यभट्ट से INSAT तक

प्रो. राव ने फिजिकल रिसर्च लैबोरेट्री, अहमदाबाद में खुद जो एक्स-रे प्रयोग विकसित किया था, वह इस उपग्रह पर था। आर्यभट्ट के बाद, इसरो सैटेलाइट सेंटर, बैंगलोर के पहले निदेशक के रूप में, राव ने प्रयोगात्मक रिमोट सेंसिंग उपग्रहों, भास्कर 1 और 2, रोहिणी डी 2 और एसआरओएसएस श्रृंखला में प्रौद्योगिकी उपग्रहों की कल्पना की। वे भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रहों (आईआरएस) की नींव थे। उन्होंने भारत का पहला प्रायोगिक संचार उपग्रह, एप्पल को सफलतापूर्वक वितरित किया। यह भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (INSAT) सीरीज का अग्रदूत था।

अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष

प्रो. राव का मानना था कि तेजी से विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग जरूरी है। प्रोफेसर राव ने 1972 में भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी की स्थापना की जिम्मेदारी ली। उनके मार्गदर्शन में, 1975 में पहले भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ से शुरुआत की गई। उनके नेतृत्व में संचार, रिमोट सेंसिंग और मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए 18 से अधिक उपग्रह डिजाइन और लॉन्च किए गए। 1984 में अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव के रूप में कार्यभार संभालने के बाद, प्रोफेसर राव ने रॉकेट प्रौद्योगिकी के विकास को गति दी।

क्रायोजेनिक तकनीक पर शुरू किया था काम

इसके परिणामस्वरूप एएसएलवी रॉकेट और ऑपरेटिंग पीएसएलवी लॉन्च वाहन का सफल प्रक्षेपण हुआ। यह 2.0 टन वर्ग का प्रक्षेपण कर सकता है। उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया। प्रोफेसर राव ने 1991 में भूस्थैतिक प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) के विकास और क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी के विकास की शुरुआत की। तीन दशक से भी अधिक समय पहले प्रोफेसर यूआर राव ने भारतीय रॉकेटों के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक पर भी काम शुरू किया था। उस समय भारत क्रायोजेनिक तकनीक के लिए रूस पर बहुत अधिक निर्भर था।

25 यूनिवर्सिटी से डी.एससी

राव ने लगभग 350 साइंटिफिक और टेक्निकल पेपर प्रकाशित किए। इनमें कॉस्मिक किरणें, अंतरग्रहीय भौतिकी, उच्च ऊर्जा खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष अनुप्रयोग और उपग्रह और रॉकेट प्रौद्योगिकी शामिल हैं और कई किताबें लिखीं। उन्होंने 25 विश्वविद्यालयों से डॉक्टर ऑफ साइंस (डी.एससी) की डिग्री प्राप्त की थी।

इसमें यूरोप का सबसे पुराना विश्वविद्यालय, बोलोग्ना विश्वविद्यालय भी शामिल है। प्रोफेसर यू.आर. राव मेक्सिको के ग्वाडलाजारा में प्रतिष्ठित ‘आईएएफ हॉल ऑफ फेम’ में शामिल होने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक बने।

आदित्य L1 लॉन्च: 4 माह, 15 लाख किलोमीटर की दूरी

चंद्रयान-3 की सफल लैंडिग के बाद भारत दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया है। इस सफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिक अब सूर्य को लेकर अहम अध्ययन में जुट गए हैं और इसी को लेकर आदित्य एल1 मिशन शुरू किया गया है। इसके साथ ही इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। आदित्य-L1 का प्रक्षेपण आज सुबह 11:50 बजे किया गया। आदित्य एल1 सूर्य की अदृश्य किरणों और सौर विस्फोट से निकली ऊर्जा के रहस्य सुलझाएगा।

कैसे पहुंचेगा सूर्य के करीब, और क्या-क्या करेगा

प्रारंभिक कक्षा: आदित्य-L1 को तय समय पर सफलता के साथ रवाना किया गया। अंतरिक्ष यान को प्रारंभ में पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा।

पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकालना: अंतरिक्ष यान को प्रणोदन का उपयोग करके L1 बिंदु की ओर बढ़ाया जाएगा. जैसे ही अंतरिक्ष यान लैग्रेंज बिंदु की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकल जाएगा।

क्रूज चरण: पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव को छोड़ने के बाद, मिशन का क्रूज चरण शुरू होगा। इस चरण में अंतरिक्ष यान को उतारने की प्रक्रिया की जाती है।

हेलो ऑर्बिट: मिशन के अंतिम चरण में अंतरिक्ष यान को लैग्रेंज बिंदु (एल1) के चारों ओर एक बड़ी हेलो कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इस तरह से लॉन्चिंग और एल1 बिंदु के पास हेलो कक्षा में अंतरिक्ष यान की स्थापना में करीब चार महीने का वक्त गुजरेगा।

मिशन के उद्देश्य क्या हैं?

भारत का सौर मिशन आदित्य एल-1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट और इसके गर्म होने की प्रक्रिया, तापमान, सौर विस्फोटों और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

मिशन के घटक कौन-कौन से हैं और वो क्या करेंगे?

आदित्य-एल1 सूर्य का गहराई से अध्ययन करने के लिए सात वैज्ञानिक पेलोड का एक सेट ले गया है। विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग यानी सौर कोरोना और सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोटों यानी कोरोनल मास इजेक्शन की गतिशीलता का अध्ययन करेगा।

एसयूआईटी का क्या होगा काम

सोलर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) नामक पेलोड अल्ट्रा-वायलेट (यूवी) के निकट सौर प्रकाशमंडल और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें लेगा। इसके साथ ही SUIT यूवी के नजदीक सौर विकिरण में होने वाले बदलावों को भी मापेगा।

एएसपीईएक्स करेगा हवा और ऊर्जा का अध्ययन

आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स) और प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पीएपीए) पेलोड सौर पवन और शक्तिशाली आयनों के साथ-साथ उनके ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेंगे।

कैसे खुलेगा सूर्य से आने वाली एक्स-रे किरणों का राज?

सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से आने वाली एक्स-रे किरणों का अध्ययन करेंगे‌। इसके साथ मैग्नेटोमीटर पेलोड को L1 बिंदु पर दो ग्रहों के बीच के चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए बनाया गया है।

स्वदेशी तकनीक से तैयार हुए हैं सभी 7 पेलोड

आदित्य-एल1 के सातों विज्ञान पेलोड की खास बात है कि ये देश में विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। ये सभी पेलोड इसरो के विभिन्न केंद्रों के सहयोग से विकसित किए गए हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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