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December 13, 2024 1:27 am

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करीब 35 सालों की सेवा के बाद सेवामुक्त हुए नवनीत सहगल किसी दायरे में नहीं बंधे…पंजाब से आए, यूपी में छाए….

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार के भरोसेमंद अधिकारियों में अपनी पहचान बनाने वाले नवनीत सहगल 31 जुलाई को रिटायर हो गए। 35 सालों की सेवा के दौरान उन्होंने कई मुख्यमंत्री बनते देखे। कुछ प्रशासनिक अधिकारी सरकार के फेवरेट होते हैं तो कुछ को लेकर दलों के भीतर कड़वाहट होती है। एक सरकार के फेवरेट अधिकारी सरकार बदलते ही किनारे कर दिए जाते हैं। लेकिन, नवनीत सहगल इनमें से अलग हैं। उन्होंने कई सरकारों के साथ काम किया और हर बार में वे पावरफुल बने रहे। यही उनकी कामयाबी का राज रहा। उन्हें जो भी विभाग दिया गया, सभी में रिजल्ट देकर दिखाया। यही कारण रहा कि मायावती के शासन में जिस प्रकार से नवनीत सहगल सरकार के करीबी अधिकारियों में गिने गए। उसी प्रकार की स्थिति अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ शासन में भी रही। अभी वे अतिरिक्त मुख्य सचिव, खेल एवं युवा कल्याण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। नवनीत सहगल ऐसे आईएएस अधिकारी रहे, जिन्होंने मायावती से लेकर अखिलेश और योगी आदित्यनाथ तक की कोर टीम में रहकर काम किया। किसी भी नेता ने उनके कार्य पर कभी भी संदेह नहीं जताया।

नवनीत सहगल मूल रूप से पंजाब के फरीदकोट के रहने वाले हैं। उनके पिता की नौकरी हरियाणा में थी। इस कारण प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा यहीं से हुई। अंबाला से दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद वे भिवानी में इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने पहुंचे। वर्ष 1982 में 19 वर्ष की आयु में उन्होंने बीकॉम कंप्लीट कर लिया। वे सिविल सर्विसेज में जाना चाहते थे, लेकिन कम उम्र के कारण यह संभव नहीं था। ऐसे में उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। चंडीगढ़ पहुंचे और चार्टर्ड एकाउंटेंट एंड कंपनी सेक्रेटरीशिप कोर्स शुरू किया। वर्ष 1984 में उन्होंने पहली नौकरी एकाउंटेंट के तौर पर शुरू की। वर्ष 1986 में सीए का कोर्स पूरा किया। वर्ष 1987 में उन्होंने कंपनी सेक्रेटरीशिप का कोर्स भी कंप्लीट कर लिया।

सिविल सर्विसेज ही था लक्ष्य

सिविल सर्विसेज ही नवनीत सहगल का लक्ष्य और सपना था। सीए करने के बाद उन्होंने वर्ष 1986 में इसकी तैयारी शुरू कर दी। साथ ही, वे बड़ी कंपनियों के कंसल्टेंट का काम भी करने लगे। देश में कई नई फैक्ट्रियों की शुरुआत कराई। रेवाड़ी में पहली बार सेरेमिक टाइल्स की फैक्ट्री लगाई गई। देश में पहली बार ठंडा पेय रखने वाले केन बनाने वाली फैक्ट्री एशियन केन की स्थापना के लिए उन्होंने कंसल्टेंट के तौर पर काम किया। नवनीत सहगल ने रुड़की में मल्टी लेयर कोएक्सक्लूडेड फिल्म की फैक्ट्री लगवाई। जर्मन मशीन से पांच परतों वाली फिल्म का निर्माण किया जाने लगा, जिसमें लिक्विड के रूप में रहने वाली चीजों को सुरक्षित रखा जा सकता था। लाइसेंसराज के उस दौर में नवनीत सहगल दिल्ली के उद्योग भवन के गलियारों के चक्कर लगाते थे।

1988 में हुआ सिविल सर्विसेज में चयन

नवनीत सहगल पहली बार वर्ष 1988 में सिविल सेवा परीक्षा में बैठे और चुन लिए गए। उन्हें उत्तर प्रदेश कैडर मिला। प्रशिक्षण के लिए उनकी तैनाती सहारनपुर में की गई। एटा में वर्ष 1990 में उन्हें पहली पोस्टिंग मिली। इसके बाद उन्हें देहरादून एसडीएम के रूप में तैनाती दी गई। हरिद्वार में कुंभ मेला का आयोजन हो रहा था। इस दौरान उन्हें हरिद्वार डेवलपमेंट अथॉरिटी के डिप्टी चेयरमैन के पद पर तैनात किया गया। वर्ष 1993 में यूपी फाइनांसियल कॉरपोरेशन, कानपुर में जीएम के तौर पर पोस्टिंग मिली। वे वर्ष 1996 तक इस पद पर रहे। नवनीत सहगल की पत्नी की नियुक्ति लखनऊ के आर्किटेक्चर कॉलेज में हो गई। इसके बाद वे भी लखनऊ आ गए। गृह विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर तैनाती मिली। छह माह तक वे इस पद पर रहे।

जौनपुर के बनाए गए डीएम

नवनीत सहगल को 1996 में ही जौनपुर का डीएम बनाकर भेज दिया गया। दो साल तक वे इस पद पर रहे। 1998 में एक बार फिर लखनऊ वापसी हुई। सहकारिता विभाग में एडिशनल रजिस्ट्रार बैंकिंग के रूप में उन्होंने छह माह तक सेवा दी। इसके बाद फिर उन्हें गोंडा का डीएम बना कर भेज दिया गया। गोंडा से उन्हें फैजाबाद का डीएम बनाकर भेज दिया गया। यूपी में उस समय कल्याण सिंह की सरकार चल रही थी। नवनीत सहगल इस दौरान अयोध्या में राम जन्मभूमि से जुड़े संतों के करीब आ गए। यूपी में सरकार बदली। रामप्रकाश गुप्ता सीएम बने। नवनीत सहगल की एक बार फिर लखनऊ पहुंचे। स्टेट अरबन डेवलेपमेंट अथारिटी में निदेशक के पद पर तैनाती मिली। वर्ष 2002 में अयोध्या में शिलादान कार्यक्रम को शांतिपूर्वक पूरा कराने के लिए नवनीत सहगल को विशेष रूप से फैजाबाद भेजा गया था।

वर्ष 2002 में बसपा-भाजपा की मिलीजुली सरकार बनने के बाद उस समय की मुख्यमंत्री मायावती ने नवनीत सहगल को लखनऊ का डीएम बनाया। वर्ष 2003 में मायावती की सरकार जाने और बसपा की घोर विरोधी पार्टी सपा की मुलायम सिंह सरकार बनने के बाद भी नवनीत सहगल 8 महीने तक लखनऊ के डीएम पद पर बने रहे। नवनीत सहगल का प्रमोशन हुआ और उन्हें साइंस एंड टेक्नोलाजी विभाग में सचिव पद पर तैनात कर दिया गया। उनके समय में यूपी में बायोटेक्नोलाजी के क्षेत्र में पहली बार बड़े स्तर पर काम शुरू कराया गया। इसी दौरान नवनीत सहगल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए। केंद्र में पंचायती राज निदेशक के पद पर तैनाती मिली। करीब एक साल काम किया। इसके बाद कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे अखिलेश दास के निजी सचिव बनाए गए।

2007 में हुई यूपी वापसी

वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई। केंद्र से पांच आईएएस अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे। इसमें नवनीत सहगल भी शामिल थे। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महज दो साल रहने के कारण आगे उन्हें इसके लिए इम्पैनल्ड नहीं होने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा। मायावती सरकार में नवनीत सहगल पावर कार्पोरेशन, जल निगम, यूपी इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट कार्पोरेशन के चेयरमैन रहे। बिजली के क्षेत्र में इस दौरान कई महत्वपूर्ण कार्य हुआ। देश की सबसे लंबी हाइटेंशन पावर ट्रांसमिशन लाइन अनपरा से उन्नाव तक बिछाई गई। यूपी का सबसे बड़ा 800 केवीए का सब-स्टेशन उन्नाव में स्थापित हुआ।

यूपी में बिजली की उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया गया। नवनीत सहगल ने जब पावर कार्पोरेशन की जिम्मेदारी संभाली थी, उस समय तक प्रदेश में बिजली उत्पादन क्षमता महज 6000 मेगावाट थी। नवनीत सहगल ने यूपी में 35,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य तय किया। इसके लिए टाटा, रिलायंस, जेपी पावर, नैवेली लिग्नाइट कार्पोरेशन, एनटीपीसी की ओर से बिजली घर लगवाने की योजना पर काम किया गया।

हाशिए पर गए, लेकिन अखिलेश ने समझी प्रतिभा

बसपा सरकार में उनके काम को देखते हुए उन्हें मायावती का करीबी माना जाने लगा। वर्ष 2012 में सत्ता बदली और सपा के अखिलेश यादव सीएम बने तो नवनीत सगहल को धर्मार्थ कार्य विभाग दे दिया गया। इसे शंटिंग पोस्टिंग के रूप में देखा गया। लेकिन, नवनीत सहगल ने अपने कार्यों से विभाग को अलग पहचान दे दी। श्रवण यात्रा की शुरुआत उनके समय हुई। उन्होंने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का खाका तैयार किया। कॉरिडोर के लिए आसपास के भवनों को अधिगृहित करने की योजना बनाई गई। अखिलेश ने उनकी प्रतिभा को समझा और यूपी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी की जिम्मेदारी सौंप दी। 2014 में वे यूपीडा के सीईओ बनाए गए। अखिलेश ने ड्रीम प्रोजेक्ट आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे को पूरा कराने का जिम्मा नवनीत सहगल को सौंपा।

नवनीत सहगल के यूपीडा सीईओ बनने तक आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के लिए जमीन खरीद तक नहीं हो पाई थी। केस के जाल में टेंडर प्रक्रिया फंसी थी। कोर्ट के जाल में फंसे एक्सप्रेसवे को बाहर निकालने के लिए नवनीत सहगल ने सुप्रीम कोर्ट से सभी केस वापस कराए। छह माह के भीतर एक्सप्रेसवे के लिए 7500 करोड़ की जमीन खरीद कर ली गई। अखिलेश के ये विश्वासपात्र हो गए। उन्हें प्रमुख सचिव सूचना की भी जिम्मेदारी दे दी गई। इसके बाद नवनीत ने महज दो साल में 302 किलोमीटर लंबा आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे बनाकर दिखा दिया। अखिलेश आज भी इस योजना को अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि करार देते हैं।

सरकार बदली, फिर किनारे नवनीत

वर्ष 2017 में एक बार फिर सरकार बदली। भाजपा ने सपा को सत्ता से बाहर किया। योगी आदित्यनाथ सीएम बने। नवनीत सहगल साइडलाइन हो गए। उन्हें खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया गया। यहां पर भी नवनीत सहगल ने अपने कार्य का जलवा दिखाना शुरू किया। यूपी में खादी के प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए नई नीति लेकर आए। वर्ष 2020 में जब कोरोना की दस्तक हुई और मास्क बनाने की योजना पर काम शुरू हुआ तो नवनीत सहगल ने देखते ही देखते छह लाख मीटर खादी के कपड़ों का इंतजाम करा दिया।

नवनीत सहगल ने कोरोना के संकट काल में एमएसएमई को अलग पहचान दिलाई। यूपी में बंद पड़े उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी दिलाई गई। इसने नवनीत सहगल को सीएम योगी के करीब ला दिया। इसके बाद उन्हें सीएम योगी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट’ यानी ओडीओपी योजना की जिम्मेदारी दी गई। इसे उन्होंने तेजी दी। इस योजना की तारीफ पीएम नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं।

सीएम योगी के लिए बने संकटमोचक

सीएम योगी जब हाथरस कांड में घिर रहे थे, तब नवनीत सहगल को वे सूचना विभाग में लेकर आए। सीएम के करीबी माने जाने वाले अवनीश अवस्थी तब इस विभाग को संभाल रहे थे। मीडिया से उनके संबंध उस स्तर के नहीं थे। पत्रकारों पर केस के मामले सुर्खियों में थे। योगी सरकार की छवि को अलग ही अंदाज में पेश किया जा रहा था। ऐसे में नवनीत सहगल ने सूचना विभाग को संभालने के साथ मीडिया में सरकार की छवि को बेहतर बनाने का कार्य किया। बाद के समय में योगी के एक्शन और सरकार की कार्रवाई भी सुर्खियां बनने लगी। वे योगी के लिए भी ट्रबलशूटर साबित हुए।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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