अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपनी पुरानी स्ट्रैटेजी में बदलाव का बिगुल बजा चुकी है। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील से इसका इशारा मिल गया था। बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उन्होंने पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने के लिए कार्यकर्ताओं से अपील की थी। ये बात जाहिर है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में बीजेपी अपनी जीत को लेकर कॉन्फिडेंट नहीं रहती है। पसमांदा मुसलमानों को जोड़कर अगले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपनी इस कमजोरी को दूर कर लेना चाहती है। लेकिन, सवाल है कैसे? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीजेपी के सबसे लोकप्रिय और फायरब्रांड नेताओं में से एक हैं। वह आज भी बीजेपी की पुरानी पिच पर ही बैटिंग करते दिख रहे हैं। हिंदुओं से जुड़े मसलों पर अपना रुख रखने में वह एक इंच पीछे नहीं हटे हैं। पसमांदा को साधने की बीजेपी की कोशिशों से अलग वह बेबाकी से अपनी राय जाहिर कर देते हैं। ज्ञानवापी मुद्दे पर उनका ताजा बयान इसकी बानगी है। इसे लेकर उन्होंने बेहद आक्रामक रुख अपनाया हुआ है।
बात पिछले साल से शुरू करते हैं। बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकताओं से बड़ी अपील की थी। उनसे पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच बनाने के लिए कहा गया था। बीजेपी वैसे तो पहले से इस कोशिश में जुटी थी। लेकिन, यह पहला मौका था जब साफ तौर पर इस दिशा में इतना खुलकर बोला गया था। पारंपरिक तौर पर मुस्लिम बीजेपी के वोटर नहीं रहे हैं। मुसलमानों को बल्क में वोट देने के लिए जाना जाता है। वे स्ट्रैटेजिक वोटिंग करते हैं। यानी जो दल बीजेपी के खिलाफ सबसे कद्दावर दिखता है वे उसे बढ़चढ़कर मतदान करते हैं। यही कारण है कि बीजेपी मुस्लिम बहुल इलाकों में जीत का दम नहीं भर पाती है। बीजेपी ने इस स्थिति को बदलने के लिए ही पसमांदा मुस्लिमों को अपने साथ खड़ा करने की कवायद शुरू की है। हालांकि, मुस्लिमों को साथ लाना बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल है।
कट्टर हिंदू पार्टी के तौर पर रही है पहचान
बीजेपी की पहचान कट्टर हिंदू पार्टी के तौर पर रही है। उसने हिंदुओं के मसले पर कभी रुख नरम नहीं रखा। यही उसके तेजी से उभरने की वजह भी बना। उसके तमाम फायरब्रांड नेता उसी परिपाटि को आज भी पकड़े हुए हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी उनमें शामिल हैं। योगी दूसरे बीजेपी नेताओं की तरह नहीं हैं। उनकी खुद की अलग पहचान है। अपने आक्रामक रुख के कारण उनकी ऐसी छवि बनी है। दोबारा उन्होंने ऐसा कुछ कहा है जो दिखाता है कि योगी बीजेपी की पुरानी पिच पर ही बैटिंग कर रहे हैं। पसमांदा मुसलमानों को साधने की कोशिशों के बीच योगी आदित्यनाथ का यह बयान कई मायने में अहम है।
यह प्रतिक्रिया योगी ने ज्ञानवापी मामले में दी है। बिना लाग-लपेट उन्होंने कहा है कि ज्ञानवापी को मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा। स्पष्ट शब्दों में उन्होंने कह दिया है कि मुस्लिम समाज से ऐतिहासिक गलती हुई है। इसके समाधान के लिए मुस्लिम समाज को आगे आना चाहिए। ज्ञानवापी अगर मस्जिद है तो वहां त्रिशूल क्या कर रहा था? ज्ञानवापी के अंदर देवी-देवताओं की मूर्तियां कैसे पहुंच गईं? क्या ये प्रतिमाएं हिंदुओं ने रख दी हैं? ये सवाल खड़े करते हुए यूपी के सीएम बोले हैं कि ज्ञानवापी की दीवारें चीख-चीखकर गवाही दे रही हैं।
योगी की बेबाक प्रतिक्रिया से बीजेपी में बढ़ेगी कंफ्यूजन
योगी की प्रतिक्रिया पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की बीजेपी की कोशिशों को झटका दे सकता है। यह बीजेपी में एक तरह के कंफ्यूजन की ओर भी इशारा करता है। यह उलझन नए और पुराने नजरिये को लेकर है। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने सोची-समझी रणनीति के तहत पसमांदा मुसलमानों को लुभाने की कोशिश शुरू की है। ये मुसलमान दलित और पिछड़े माने जाते हैं। सरकारी नौकरियों में काफी समय से यह समुदाय रिजर्वेशन की मांग करता रहा है। कई राज्य सरकारों ने पसमांदा मुसलमानों को कोटा दिया भी है।
कुल वोटों में मुस्लिम 15 फीसदी माने जाते हैं। अगर 10वां हिस्सा भी बीजेपी को वोट देता है तो यह कुल वोट का 1.5 फीसदी होगा। देखने में आया है कि बीजेपी के कई उम्मीदवार चुनाव सिर्फ 1 फीसदी से भी कम मार्जिन से हारे गए हैं। लिहाजा, यह स्ट्रैटिजी बीजेपी के लिए बेहद खास है। माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले चुनाव में बीजेपी ज्यादा पसमांदा मुसलमानों को टिकट दे सकती है। हालांकि, चुनौती यही है कि क्या उसके सभी नेता ‘सफलता’ की पुरानी पिच को पीछे छोड़ पाएंगे। फिलहाल, दिख तो नहीं रहा है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."