अरमान अली की रिपोर्ट
देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा बचपन से ही उनके दिलो-दिमाग में बसा हुआ था। हालात ने उनका साथ नहीं दिया, परिवार भी उसकी इच्छाओं के लिए कुछ न कर पाया, लेकिन बावजूद इसके उसने उस सपने को मरने नहीं दिया और बन गई देश की जांबाज पुलिस ऑफिसर। ऐसी पुलिस ऑफिसर जिनकी गोली ने न जाने कितने ही आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया।
देश की जांबाज पुलिस ऑफिसर शाहिदा परवीन की कहानी
ये कहानी है जम्मू कश्मीर की लेडी सिंघम शाहिदा परवीन की। हमारे देश में कई फेमस एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हुए, लेकिन इस वीर महिला के निशाने पर दूसरे अधिकारियों की तरह अपराधी नहीं बल्कि खतरनाक आतंकी रहे। हर रोज जिंदगी और मौत से मुठभेड़ करती इस जांबाज ऑफिसर की कहानी बेहद दिलचस्प है। एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार में जन्म हुआ शाहिदा का। छह भाई बहनों में शाहिदा सबसे छोटी थी, लेकिन जब 4 साल की हुई तो पिता का साया सिर से उठ गया। पढ़ाई-लिखाई हुई, लेकिन जैसे ही शाहिदा बड़ी हुई नौकरी का दबाव बढ़ने लगा।
टीचर की नौकरी छोड़कर पुलिस में हुईं भर्ती
परिवार वालों के कहने पर टीचर की नौकरी के लिए आवेदन भी कर दिया, लेकिन शाहिदा का सपना तो कुछ और था। शाहिदा शुरू से ही पुलिस ऑफिसर बनकर देश की सेवा करना चाहती थीं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में निर्दोषों को आतंकियों का निशाना बनते अपने सामने देखा था और आतंकियों के लिए यही नफरत उनका जुनून बन चुकी थी। शाहिदा को टीचर की नौकरी मिल गई, लेकिन उनका मन कभी उसमें नहीं लगा। परिवार वालों से चोरी छुपे पुलिस में भर्ती के लिए शाहिदा ने फॉर्म भर दिया और परीक्षा दी।
पहले पुंछ और राजौरी में हुई पोस्टिंग
शाहिदा इस परीक्षा में पास भी हो गईं और फिर उन्होंने टीचर की नौकरी छोड़कर जम्मू कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर जॉइनिंग की। शाहिदा की मां ने हमेशा अपनी बेटी का साथ दिया। शाहिदा का बचपन का सपना पूरा हो रहा था, लेकिन चैलेंज यहां भी काफी थे। शुरुआती दौर में शाहिदा राजौरी और पुंछ जिलों में पोस्टेड रहीं। उस दौर में पहले उन्हें आतंकी ऑपरेशन्स के लिए नहीं भेजा जाता था। उनका काम होता था जानकारियां इकट्ठी करना और अपने साथी पुलिस ऑफिसर्स को देना, लेकिन बाद में शाहिदा ने खुद आतंकियों के ऑपरेशन्स में जाना शुरू किया।
कई सफल ऑपरेशन्स कर आतंकियों की मार गिराया
शाहिदा ने खुद बताया था कि एक बार उन्हें उनके सीनियर ऑफिसर ने ये तक कह दिया था कि एनकाउंटर करना महिलाओं का काम नहीं है और इसके बाद ही उन्होंने आतंकियों से मुठभेड़ का काम शुरू किया। इसके बाद तो शाहिदा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक कई सफल ऑपरेशन्स को अंजाम देती गईं। राजौरी, पुंछ में उन्होंने कई आतंकवादियों को मार गिराया। एक साल में ही उन्होंने कई मुठभेड़ों को अंजाम दिया जिसके बाद उनका ऑउट ऑफ द टर्न जाकर प्रमोशन भी हुआ और वो सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर बन गईं।
बहादुरी के लिए राष्ट्रपति से पदक भी मिल चुका है
शाहिदा परवीन को उनकी बहादुरी के लिए राष्टपति से पुलिस पदक भी मिल चुका है। फिलहाल वो डीसीपी पद पर तैनात हैं, लेकिन मकसद आज भी वही है देश के सेवा, आतंकियों का खात्मा। शाहिदा परवीन एक टेलीविजन प्रोग्राम में शामिल हुई थी जहां उन्होंने अपने बारे में पूरे देश को बताया था।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."