अनिल अनूप के साथ टिक्कू आपचे
शायर कासिफ इंदौरी की मृत्यु जहरीली शराब पीने के कारण हुई थी। उनका शेर कुछ इस तरह है- ‘सरासर गलत है मुझ पर इल्जामे बलानोशी, जिस कदर आंसू पिए हैं, उससे कम पी है शराब’। यह संभव है कि कमजोर पड़ती हुई स्मृति के कारण शब्द आगे-पीछे हो गए हों, परंतु आशय स्पष्ट है। यह सारा प्रकरण खाकसार की फिल्म ‘शायद’ का एक हिस्सा बना। वर्तमान दौर के सितारे शराब नहीं पीते। जिम जाकर जिस्म की मांसपेशियों को मजबूत बनाना उनका नशा है। अमिया चक्रवर्ती की फिल्म ‘दाग’ में दिलीप कुमार ने लतियल शराबी की भूमिका अभिनीत की थी। देव आनंद ने ‘शराबी’ नामक फिल्म में अभिनय किया और राज कपूर ने ‘मैं नशे में हूं’ में अभिनय किया। अगले दौर के धर्मेंद्र शराब पीना पसंद करते रहे। उनके समकालीन मनोज कुमार ने सरेआम शराब नहीं पी, क्योंकि वे अपनी भारत कुमार छवि की रक्षा करना चाहते थे।
राजेंद्र कुमार कभी-कभी थोड़ी सी पीते थे, परंतु ‘संगम’ के बनते समय उन्हें इसमें आनंद आने लगा था। अगली पीढ़ी के राजेश खन्ना, संजीव कुमार, ऋषि कपूर शौकीन रहे हैं। राकेश रोशन और प्रेम चोपड़ा ने हमेशा पीने को संतुलित रखा। वे बहके, परंतु लड़खड़ाए नहीं। जितेंद्र शौकीन रहे और क्षमता भी अच्छी खासी थी, परंतु अपनी पुत्री एकता के आग्रह पर उन्होंने तौबा कर ली।
नरगिस, नूतन और मधुबाला शराब से दूर रहीं, परंतु मीना कुमारी हमेशा ही पीती रहीं। मीना कुमारी ‘नाज’ के नाम से शायरी भी करती थीं। धर्मेंद्र भी शायरी करते हैं। संगत इस तरह भी उजागर होती है। धर्मेंद्र से अंतरंगता के दौर में वे खुलेआम पीने लगीं। यह सत्य नहीं है कि ‘साहब बीवी और गुलाम’ की छोटी बहू पात्र को अभिनीत करते समय उन्होंने पीना शुरू किया था। उनकी पार्श्व गायिका गीता दत्त इसका बहुत शौक रखती थीं। दोनों की ही मृत्यु ‘सिरोसिस ऑफ लिवर’ नामक बीमारी के कारण हुई।
मीना कुमारी का शेर- ‘सब लोग ही प्यासे रह जाएं, पैमाने कुछ इस तरह छलक, आंख ने कसम दी आंसू को, गालों पर हर दम यूं न छलक’। संगीतकार शंकर और गीतकार हसरत ने कभी नहीं पी, परंतु जयकिशन और शैलेंद्र शौकीन रहे।
संगीतकार सी. रामचंद्र और भगवान दादा अतिरेक कर जाते थे। नीरज और निदा फाजली भी शौकीन रहे। हरिवंशराय बच्चन ने शराब पर खूब लिखा है, परंतु उन्हें तौबा किए अरसा गुजर गया था। प्रकाश मेहरा की फिल्म के एक गीत का आशय था कि अगर शराब में नशा होता तो नाचती बोतल। इसी आशय को जुदा अंदाज में मेहमूद अभिनीत फिल्म में यूं अभिव्यक्त किया है- ‘मुत्थू कोड़ी कवारी हड़ा, जो होता नशा तो नाचता दारू का घड़ा’। शहरी लोग बोतल में शराब रखते हैं। ग्रामीण लोग घड़े में शराब रखते हैं।
बस्तर की जनजातियां सल्फी पीती हैं। एक वृक्ष के फल से सल्फी बनती है और वृक्ष ही परिवार का पालन-पोषण करता है। दरअसल यह भरम है कि महंगी शराब उतना नुकसान नहीं करती जितनी सस्ती शराब। स्कॉटलैंड की शराब लकड़ी के बैरल में रखते हैं और वह लकड़ी शराब सोंखती नहीं। छह वर्ष तक रखी शराब को रेड लेबल कहते हैं। बारह वर्ष तक संजोई हुई शराब को ब्लैक लेबल कहते हैं। निदा फाजली ने ‘शायद’ फिल्म के लिए गीत लिखा- ‘दिनभर धूप का पर्वत काटा, शाम को पीने निकले हम, जिन गलियों में मौत छिपी थी, उनमें जीने निकले हम’।
भारतीय सिनेमा में कई कॉमेडियन ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से दर्शकों को खूब हंसाया. इनमें से एक कॉमेडियन केष्टो मुखर्जी (Keshto Mukherjee) भी थे जो गुजरे ज़माने की तकरीबन हर दूसरी फिल्म में नज़र आकर दर्शकों को अपनी कॉमेडी से हंसाकर चले जाते हैं और दर्शक उनसे अभिभूत हुए बिना रह नहीं पाते थे।
आपने उन्हें फिल्मों में देखा होगा तो आप जानते होंगे कि केष्टो ज्यादातर फिल्मों में केवल शराबी के किरदार में ही नजर आते थे। अपने 30 साल लंबे फ़िल्मी करियर में उन्होंने तकरीबन 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इनमें से ज्यादा फिल्मों में वह केवल शराबी के रोल में ही दिखाई दिए। वैसे आपको बता दें कि केष्टो की एक्टिंग देखकर आपको भले ही लगे कि वह असल में शराब पिए होंगे लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था। परदे पर शराबी के किरदार में पॉपुलैरिटी बटोरने वाले केष्टो मुखर्जी असल ज़िंदगी में शराबी नहीं थे और ना ही कभी शराब को हाथ लगाते थे। केष्टो मुखर्जी का जन्म 7 अगस्त 1925 को कोलकाता बंगाल में हुआ था।
उन्होंने पहली बार फिल्म मां और ममता में शराबी की भूमिका निभाकर सबका ध्यान खींचा था। यह फिल्म 1970 में रिलीज हुई थी। इसके बाद वह बॉम्बे टू गोवा, पड़ोसन , चुपके-चुपके आदि कई फिल्मों में भी नज़र आए। केष्टो की चर्चित फिल्मों में ज़ंजीर, आप की कसम, शोले जैसी सुपरहिट फिल्मों के नाम भी शामिल हैं। केष्टो मुखर्जी का निधन 2 मार्च 1982 को 56 साल की उम्र में हो गया था। केष्टो मुखर्जी को उनकी बेहतरीन एक्टिंग के लिए सिनेमाप्रेमी हमेशा याद रखेंगे।
कैस्टो मुखर्जी का चेहरा देख हंस पड़ते थे दर्शकगुजरे जमाने के कॉमेडियन कैस्टो तकरीबन हर दूसरी फिल्म में नजर आते थे और पर्दे पर उनके आते ही उनका चेहरा देख दर्शक अपनी हंसी को रोक नहीं पाते थे। शुरुआती दौर में वो नुक्कड़ नाटकों और रंगमंच में कलाकारी करते कैस्टो की रुझान फिल्मों की तरफ बढ़ा और वह बंबई (मुंबई) निकल आए।
बिमल रॉय से जब हुआ था कैस्टो का सामना
काम के सिलसिले में जब कैस्टो बंबई में भटक रहे थे, तब उनकी मुलाकात महान निर्देशक बिमल रॉय से हुई, जिन्होंने परिणीता, बिराज बहु, मधुमती, सुजाता, परख, बंदिनी जैसी कई फिल्में बनाईं। कैस्टो उनके सामने खड़े हो गए. उन्होंने कैस्टो को ऊपर से नीचे तक देखा और पूछा- क्या है? तब कैस्टो ने उनसे कहा, ‘साहब मेरे लायक कोई काम है तो बता दीजिए’।
कैस्टो ने कुत्ते की आवाज निकालकर दिया था ऑडिशन
कैस्टो मुखर्जी की ये बात सुनकर बिमल दा बोले अभी तो कुछ नहीं है, फिर कभी आना, लेकिन काम के लिए परेशान कैस्टो वहां से हिले नहीं और टक टकी लगाए लगातार बिमल रॉय को देखते रहे। कैस्टो को देख उन्हें बेहद गु्स्सा आया, उन्होंने गुस्से में कहा कि अभी एक कुत्ते की जरुरत है, क्या तुम भौक सकते हो? कैस्टो काम के नाम पर कुछ भी कर सकते थे, उन्होंने तुरंत इसके लिए हामी भरी और बोले, हां मैं कर सकता हूं। एक बार मौका देकर देखिए। थोड़ी ही देर में उन्होंने कुत्ते की आवाज निकाली और बिमल दा ने उन्हें फिल्म में काम दे दिया।
This great alcoholic actor, who gained popularity in the role of a drunkard on screen, never drank alcohol.
-Anil Anup
Poet Kasif Indori died due to drinking poisonous liquor. His lion is something like this – ‘It is absolutely wrong to blame me, the amount of tears I have drunk, I have drunk less alcohol’. It is possible that the words have been mixed up due to a lapse of memory, but the intent is clear. This whole episode became a part of Khaksar’s film Shayad. Today’s stars do not drink alcohol. Strengthening the muscles of the body by going to the gym is their addiction. Dilip Kumar played the role of Latial Sharabi in Amiya Chakraborty’s film Daag. Dev Anand acted in a film called ‘Sharabi’ and Raj Kapoor acted in ‘Main Nashe Mein Hoon’. Dharmendra of the next era preferred to drink alcohol. His contemporary Manoj Kumar did not drink in public because he wanted to protect his Bharat Kumar image.
Rajendra Kumar used to drink a little sometimes, but he started enjoying it during the making of ‘Sangam’. The next generation Rajesh Khanna, Sanjeev Kumar, Rishi Kapoor have been fond of. Rakesh Roshan and Prem Chopra always kept the drinking in check. They faltered, but did not falter. Jitendra remained fond and had a lot of potential, but on the insistence of his daughter Ekta, he repented.
Nargis, Nutan and Madhubala stayed away from alcohol, but Meena Kumari always drank. Meena Kumari also used to do poetry under the name of ‘Naz’. Dharmendra also does poetry. Compatibility is also exposed in this way. During her intimacy with Dharmendra, she started drinking openly. It is not true that she started drinking while playing the younger daughter-in-law character of ‘Sahib Biwi Aur Ghulam’. His playback singer Geeta Dutt was very fond of it. Both of them died due to a disease called ‘cirrhosis of liver’.
Meena Kumari’s lion- ‘Everyone should remain thirsty, the scale spilled like this, the eye swore to the tears, every time it did not spill on the cheeks’. Music composer Shankar and lyricist Hasrat never drank, but Jaikishan and Shailendra remained fond.
Musicians C. Ramchandra and Bhagwan Dada used to go to extremes. Neeraj and Nida Fazli were also fond of it. Harivanshrai Bachchan has written a lot on alcohol, but a long time has passed since he repented. The meaning of a song in Prakash Mehra’s film was that if there was intoxication in alcohol, then the dancing bottle. This intention has been expressed in a different way in the film starring Mehmood – ‘Muthu Kodi Kavari Hada, Jo Hota Nasha To Nachata Daru Ka Ghada’. Urban people keep liquor in bottles. The villagers keep liquor in pitchers.
The tribes of Bastar drink sulphi. Sulfi is made from the fruit of a tree and the tree itself sustains the family. Actually it is an illusion that expensive liquor does not harm as much as cheap liquor. Scottish wine is kept in wooden barrels and that wood does not soak the wine. Wine kept for six years is called Red Label. A wine aged for twelve years is called Black Label. Nida Fazli wrote the song for the film ‘Shayad’ – ‘Dinbhar dhoop ka parvat ka kata, sham ko peene nikale hum, in the streets where death was hidden, we lived in them’.
Many comedians in Indian cinema made the audience laugh a lot with their excellent acting. One of them was comedian Keshto Mukherjee, who appeared in almost every other film of yesteryears and left the audience laughing with his comedy and the audience could not help but be overwhelmed by him.
If you have seen him in films, then you would know that Kesto was seen only in the role of a drunkard in most of the films. In his 30-year-long film career, he acted in more than 90 films, but the interesting thing is that in most of these films he appeared only in the role of an alcoholic. By the way, let us tell you that seeing Keshto’s acting, you may feel that he must have actually drunk alcohol, but it was not so at all. Keshto Mukherjee, who gained popularity in the role of an alcoholic on screen, was not an alcoholic in real life and never used to touch alcohol. Keshto Mukherjee was born on 7 August 1925 in Kolkata, Bengal.
He first caught everyone’s attention by playing the role of a drunkard in the film Maa Aur Mamta. This film was released in 1970. After this he also appeared in many films like Bombay to Goa, Padosan, Chupke Chupke etc. Popular films of Keshto also include the names of superhit films like Zanjeer, Aap Ki Kasam, Sholay. Keshto Mukherjee died on 2 March 1982 at the age of 56. Cinematographers will always remember Keshto Mukherjee for his excellent acting.
The audience used to laugh seeing Casto Mukherjee’s face. Comedian Casto used to appear in almost every other film and the audience could not stop laughing seeing his face as soon as he appeared on the screen. In the early days, while performing in street plays and theatre, Casto’s trend moved towards films and he came out to Bombay (Mumbai).
When Casto was confronted with Bimal Roy
When Casto was wandering in Bombay for work, he met the great director Bimal Roy, who made many films like Parineeta, Biraj Bahu, Madhumati, Sujata, Parakh, Bandini. Casto stood before him. He looked Casto up and down and asked – what is it? Then Casto said to him, ‘Sir, if there is any work worth me, then tell me’.
Casto auditioned by making a dog’s voice
After listening to Casto Mukherjee’s words, Bimal da said that there is nothing at present, he will come again sometime, but Casto, worried about work, did not move from there and continued to look at Bimal Roy with tuk-tukki. Seeing Casto, he got very angry, he said angrily that a dog is needed now, can you bark? Casto could do anything in the name of work, he immediately agreed and said, yes I can. Give it a chance and see. Within a short time, he made the sound of a dog and Bimal Da gave him a job in the film.
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."