मुरारी पासवान की रिपोर्ट
लातेहारः ‘बूढ़ा पहाड़’ की सुनसान वादियों में एक बार फिर नई सुबह की उम्मीदें जगी है। करीब तीन दशक तक माओवादियों के कब्जे में रहने वाले ‘बूढ़ा पहाड़’ की तस्वीर अब बदलने लगी है। कुछ महीने पहले तक यहां कोई नहीं आता था। दम तोड़ते सपने, आखिरी सांसें गिनती उम्मीदें और दिन के उजाले में भी पसरा सन्नाटा बूढ़ा पहाड़ में बसे लोगों की नियति बन चुकी थी।
उज्ज्वला योजना की प्रसिद्धि के बीच जलावन के लिए लकड़ियां बेचने कोसो दूर जाती कुपोषित बुजुर्ग महिलाओं की तस्वीर अब भी विचलित करती हैं। सड़े पानी में मछलियां ढूंढते छोटे-छोटे बच्चे सरकार की ‘हर बच्चे को निःशुल्क शिक्षा’ योजना की सच्चाई बताते हैं।
दिन भर पेड़ की छांव में ताश के पत्ते में उलझे युवा सरकार के ‘हर व्यक्ति को रोजगार’ के दावे की पोल खोलते नजर आते हैं। खेतों में दौड़ती-भागती बच्चियों के लिए किशोरावस्था में पहुंचने के साथ ही मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं।
बूढ़ा पहाड़ की सच्चाई को बताना भी मुश्किल
झारखंड और छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित लातेहार जिले के बूढ़ा पहाड़ आप पहुंचेंगे, तो आप खुद को कोसते नजर आएंगे, कि आखिर ऐसे इलाके में जाने का दुर्भाग्यपूर्ण मौका क्यों मिला? ऐसे इलाके में नहीं जाना ही दिलो-दिमाग के लिए ठीक होता। ये किसी दूसरी दुनिया या दूसरे ग्रह की बात नहीं हैं।
अपने ही राज्य के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक बूढ़ा पहाड़ की ये सच्चाई हैं। आप यदि बूढ़ा पहाड़ में कुछ घंटे वक्त गुजार कर आते हैं और आपने जो देखा है, उसे नहीं बताना भी अपराध की श्रेणी में आएगा। देश के सबसे पिछड़े जिलों से एक लातेहार के पिछड़ेपन की ऐसी तस्वीर आंखों के सामने से हटेगी नहीं, जिसे लिखना भी लगभग नामुमिकन हैं। यही कारण है कि जब 30 साल बाद बूढ़ा पर सीएम हेमंत सोरेन अपने पूरे पुलिस-प्रशासनिक महकमे के साथ पहुंचे, तो वे भी चौंक गए। हेमंत सोरेन ने खुद कहा- बूढ़ा पहाड़ के लोगों के लिए झारखंड की राजधानी रांची पहुंचना भी मुश्किल है।
100 करोड़ की योजनाओं से ग्रामीणों को मिल रही मदद
करीब तीन दशकों तक माओवादियों के लिए ‘सेफ जोन’ रहे बूढ़ा पहाड़ के लिए राज्य सरकार की ओर से लगभग 100 करोड़ की लागत से कई योजनाएं शुरू की गई। बूढ़ा पहाड़ विकास परियोजना के तहत ग्रामीणों को मिनी ट्रैक्टर, पंपसेट, बीज, कृषि उपकरण और राशन किट मिलेंगे। इसके अलावा तालाबों का जीर्णोद्वार, तालाब निर्माण, गाय और बकरी पालन समेत 100 से अधिक योजनाओं का लाभ उपलब्ध कराया जा रहा हैं।
30 सालों तक जीवन में ठहराव के बाद तेज हुई आर्थिक गतिविधियां
बूढ़ा पहाड़ की तलहटी में बसे नवाडीह, चरहु और तिसिया समेत कई ऐसे गांव थे, जहां 30 सालों में लोगों का जीवन ठहर सा गया था। माओवादियों ने पूरे इलाके को इस तरह से अपनी गिरफ्त में ले लिया था, जहां उनकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था। खौफ का ऐसा मंजर था कि सरकारी अधिकारी-कर्मचारी तो दूर सुरक्षाबल के जवान भी इलाके में नहीं जाते थे।
बूढ़ा पहाड़ में रहने वाले एक पूरी युवा पीढ़ी की जिन्दगी तबाह हो गई। 30 साल पहले जिन युवाओं ने अपने घर-परिवार के लिए सपना देखा था, वे सारे सपने चकनाचूर हो गए। बुजुर्ग बिना इलाज के लिए दुनिया छोड़ कर चले गए। बच्चों को प्राथमिक शिक्षा भी ठीक से नहीं मिल पाई। लेकिन अब इलाके की सूरत बदलने लगी है।
सजने लगा बाजार, जनजीवन हो रहा सामान्य
बूढ़ा पहाड़ इलाके में बसे विभिन्न गांवों में अब बाजार सजने लगे हैं। सुरक्षाबलों की मौजूदगी के कारण माओवादियों का खौफ खत्म होने लगा है। सुरक्षाकर्मी भी बुनियादी जरूरतों के सामान की खरीदारी गांव के छोटे-छोटे दुकानों से करने लगे हैं। सामानों की बिक्री बढ़ने से गांव के लोगों को आर्थिक मदद भी मिलने लगी है। सुरक्षा बलों के कैंप में दूध, दही, सब्जी और अन्य सामान गांव से पहुंच रहे हैं। जबकि सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलने के कारण खेती-किसान और पशुपालन की मदद से भी ग्रामीण आत्मनिर्भर बन रहे हैं। वहीं तालाब, डोभा और सड़क निर्माण समेत अन्य योजनाओं के कारण स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार भी मिल रहा है। जिसके कारण पूरे इलाके में आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं।
लातेहार के एसपी अंजनी अंजन के नेतृत्व में श्रमदान कर बूढ़ा पहाड़ के गांवों तक पहुंचने के लिए 3 पुलिया का निर्माण किया गया। कच्ची सड़क की भी मरम्मत की गई। अब ग्रामीण आसानी से साईकिल अथवा मोटरसाईकिल से आवागमन करने लगे है।जबकि सड़क पहले से बेहतर होने के कारण ग्रामीण दुकानदार जरूरत के सामान भाड़े के वाहन से गांव तक ले जाने लगे हैं।
माओवादियों के अर्थतंत्र को भी लगा तगड़ा झटका
माओवादियों ने करीब 30 वर्षों तक बूढ़ा पहाड़ पर कब्जा बनाए रखा। बूढ़ा पहाड़ इलाके से ही माओवादी छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड के विभिन्न इलाकों में नक्सली वारदात को अंजाम देते थे, फिर सुरक्षित ठिकानों में छुप जाते थे। वहीं इस पूरे इलाके में बीड़ी पत्ता का कारोबार करने वाले ठेकेदारों से भी हर साल करोड़ों रुपए की रंगदारी वसूलते थे। इलाके में जो भी सरकारी योजनाएं चलती थी, उसका एक हिस्सा माओवादियों के पास चला जाता था। लेकिन अब बूढ़ा पहाड़ इलाके से माओवादियों का कब्जा समाप्त हो चुका हैं, इससे उनके अर्थतंत्र को भी तगड़ा झटका लगा है। सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई के अलावा पैसे के अभाव में संगठन अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।
सुबह की शुरुआत आईईडी ब्लास्ट से नहीं, स्कूल जाने वाले बच्चों की चहचहाहट
बूढ़ा पहाड़ की सुबह कभी आईईडी ब्लास्ट और गोलियां की तड़तड़ाहट से शुरू होती थी, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। अब बूढ़ा पहाड़ के विभिन्न गांवों में सुबह की शुरुआत स्कूल जाने वाले बच्चों की चहचहाहट से होती है।
बूढ़ा पहाड़ के कुछ गांवों में रहने वाले बच्चे सीआरपीएफ की 172वीं बटालियन में भी पहुंच कर पढ़ाई कर रहे हैं। सीआरपीएफ की ओर से बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा के साथ खेलकूद की भी व्यवस्था की गई है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."