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November 1, 2024 10:01 pm

प्रकृति के विनाश से गुस्साए आज हिंसक हो रहे जंगली जानवर, कौन जिम्मेदार. ‌‌…..

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आत्माराम त्रिपाठी 

आज कुदरत की अनमोल धरोहरों की अनदेखी से ना तो जंगलों का विनाश रुका और ना ही नदी, नालों, पहाड़ों का विनाश आज रेगिस्तान में तब्दील होते हरे-भरे जंगल छलनी होते पहाड़ तथा नदियों का भीमकाय मशीनों द्वारा नदियों का गर्भ चीरकर बेखौफ हो रही रेत निकासी ने एक तरह से पूरे प्राकृतिक ढांचे का भूगोल ही बदल दिया है किन्तु शायद इसी का दुष्परिणाम है कि जहां आज अधिकतर वनचरों के हमले तेज हो रहे हैं वहीं प्रकृति भी जब तब किसी ना किसी रूप में अपना रौद्र रूप धारण कर सभी को प्रभावित करती नजर आती है। लोगों द्वारा बड़े पैमाने नष्ट किये जा रहे बृक्षों के चलते बीरान पड़े जंगलों में विचरण करने वाले जंगली जानवर  आश्रय के अभाव एवं पेट की आग बुझाने के लिये।

 अब बीच शहर और घनी आबादी में बेखौफ घूमते   दिखाई देते हैं और मौका लगते ही पालतू जानवरों और इंसानों पर जानलेवा हमला करने से भी नहीं चूकते।

मगर हम हैं कि इसके कारणों एवं इनके स्वजनों के स्वभाव को समझ कर भी अंजान बने रहते हैं देश का कोई ऐसा हिस्सा नहीं जहां कभी ना कभी कोई जंगली पशु आक्रोशित होकर हिंसक ना हुआ हो जिसके कारण

तेंदुआ, भालू, हाथियों के झुंड जंगली, सूअर , लोमड़ी, बायसन जैसे जंगली पशुओं द्वारा रिहायशी इलाकों में घुसकर तबाही मचाने की घटनाएं आम हो गई हैं। आज ऐसी घटनाओं के पीछे जंगली पशुओं का बदला हुआ व्यवहार है इसी में वह तमाम सवाल सामने खड़े हैं जिनको या तो हम नजरअंदाज कर देते हैं या फिर जान कर भी अंजान बने रहते हैं।

हाल की कुछ घटनाओं को ही देखें तो आलम यह है कि हिंसक वनचर तमाम सुरक्षा व्यवस्थाओं के बावजूद अदालत की चौखट तक पहुंच जाते हैं ज्ञात हो कि इसी फरवरी में गाजियाबाद जिला अदालत में शाम 4:00 बजे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में एक तेंदुआ घुसा और वकील एवं सिपाहियों सहित दस लोगों को घायल कर दिया जिसके चलते लोगों ने दरवाजे बंद कर खुद को कमरे में कैद कर लिया था।

अक्सर तेंदुए ,हाथी, भालू भी तबाही मचाते दिख जाते हैं कुछ महीने पहले जयपुर के स्कूल के शौचालय में घुसे तेंदुए ने जबरदस्त भय का माहौल बना दिया था ऐसे हिंसक वनचरों को कभी किसी के ड्राइंग रूम में बेडरूम या रसोई तक में घुस जाने की घटनाएं चिंताजनक है आबादी के बीच इंसानों पर हमला और पालतू जानवरों को निवाला बनाने की दर्दनाक तस्वीरें भी बेहद डरावनी और चिंता पैदा करने वाली होती हैं कभी खेलते बच्चों पर हमला तो कभी राह से गुजरते लोगों को राउंड डालने की घटनाएं अब आम सी हैं।

आलम यह है कि क्या शहर क्या गांव हर कहीं खौफनाक जंगली जानवरों की घुसपैठ बढ़ी है इसके पीछे की सच्चाई यही है कि मानव बस्तियों के ताबड़तोड़ निर्माण या विकास के चलते बहुत बड़े जंगली क्षेत्र अब इंसानी रिहाइशी बन गए हैं जो कभी वन्य जानवरों के स्वच्छंद विचरण तथा शिकार और जीवन यापन की जगह थे वह जगह है आज अवैध भूमि कब्जा करने वाले माफियाओं के चंगुल में कहें या फिर उनके अबैध कब्जे में आ चुकी है और आज वहां इंसानी बस्तियां बन गई हैं कमोबेश यही स्थिति पूरे देश के जंगलों की है जिसके आंकड़े अलग अलग हो सकते हैं किंतु वन एवं पहाड़ों का विकास के नाम पर विनाश जारी है।

आज जब एक इंसान दूसरे इंसान के घर में अवैध कब्जा करने की कोशिश करता है तो वहां स्थिति भयावह हो जाती है तब हम यह क्यों नहीं विचार करते की जब हम किसी और के घर पर कब्जा करेंगे तो वह भला चुप क्यों बैठेंगे? यही स्थिति वनचरों और इंसानों के बीच की है इंसानों ने जब वनों पर कब्जा किया तो इंसानी करामात से क्रोधित और भूख प्यास से भटकते बनचरों ने इंसानों, पशु, एवं पक्षियों पर हमला बोल पेट भरने का जुगाड़ शुरू कर दिया। अत:जब तक हम इस खाई को पाट नहीं देते  आखिर कब तक अपने गुम आसियानों को तलाशने के लिए भटकते वनचरो  जिन्हें हम अपने स्वार्थवश इंसानी बस्तियों के सुख चैन छीनते हिंसक पशु कहते हैं उनसे कैसे निपटा जाएगा? एक ओर जंगली पशुओं को बचाने की कवायद होती है तो दूसरी ओर इनके उजड़ते  आशियानों पर बेफिक्री भी दिखती है ।

सच तो यह है कि इसी दोहरी मानसिकता के चलते जहां हम विलुप्त होते वन्य प्राणियों के साथ इंसाफ नहीं कर पा रहे हैं वही खुद अपना और अपनी भावी पीढ़ी के लिए बिगड़ते पर्यावरणीय 

असुंतलन को लेकर कागजी  चिंताओं से आगे की सोच भी नहीं पाते हैं।

इसे ऐसे भी समझना होगा कि जंगली पशुओं की तेजी से घटती संख्या के बावजूद यह इंसानों के लिए जानलेवा मुसीबत बने हुए हैं जिसकी वजह इनकी खत्म होती रिहाइश है। भोजन की तलाश में वनचर जंगलो से दूर उन पुराने ठौर पर आ धमकता हैं जो कभी इनका चारागाह था जबकिअब यह जगह इंसानी तरक्की की नई पहचान है वन में विचरण करने वाले जंगली जानवरों की जबरदस्त याददाश्त होती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे को स्थानांतरित करते हैं। इसी से नई आबादी को पुराने रास्ते और ठौर ठिकाने याद रहते हैं मौजूदा सच्चाई यह है कि इनकी पुश्तैनी जगहों पर हमने कब्जा कर लिया है और यह है कि पीढ़ी दर पीढ़ी विशेष गंध चिन्ह पहचान के जरिए पहचान स्थानांतरित करते रहते हैं यही इनके घनी बस्तियों में घुस आने का कड़वा सच है हमने जंगलों का विनाश किया है जिससे जंगलों की संख्या बेतहाशा घटी है इसी कारण बंदर, सांभर, हिरण, जंगली कुत्ते, सियार, नीलगाय भी उन इंसानी कथित बस्तियों में अक्सर धावा बोलने लगे जहां कभी खुद आबाद थे हमने अपना विकास तो किया लेकिन पशुओं के प्राकृतिक आशियानों को छीनना भी शुरू कर दिया जिसका प्रतिफल जंगली जानवरों के विरोध के रूप में हिंसक होकर सामने आना तय है और यही कटु सत्य भी है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."