रश्मि प्रभा की रिपोर्ट
उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर से दिल दहला देने वाली घटना सामने आयी है। यहां मुफलिसी और बीमारी से तंग आकर दंपती ने बीते रोज जिंदगी की जंग हारकर मौत को गले लगा लिया। डॉक्टर इंद्रेश शर्मा ने मौत को गले लगाने से पहले अपने बेटे के साथ लूडो खेला और उसमें जीत गए, लेकिन जिंदगी से हारकर मौत को गले लगा लिया।
उत्तराखंड के जनपद उधम सिंह नगर के काशीपुर में एक निजी हॉस्पिटल में इमरजेंसी चिकित्सक के तौर पर तैनात सर्जन डॉ. इंद्रेश शर्मा ने दो दिन पूर्व रात्रि में पत्नी वर्षा शर्मा की कैंसर की बीमारी और मुफलिसी के चलते मौत को गले लगा लिया। दिल को झकझोर देने वाली चिकित्सक की मुफलिसी भरी इस पीड़ा को जिसने भी उनके जिंदा बचे बेटे से सुना वह हक्का-बक्का रह गया।
कैंसर के इलाज बुरी तरह तोड़ा
मृतक डॉ. इंद्रेश शर्मा अपनी पत्नी वर्षा शर्मा के 6 से 7 साल से कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित होने के चलते महंगे इलाज से टूट गए थे। इसके बाद लॉकडाउन ने उन्हें इतना तोड़ दिया कि उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई भी बंद कर दी। डॉक्टर इंद्रेश के परिवार ने बेइंतहा दर्द झेला और जान देकर सिस्टम की पोल खोल दी।
मृतक डॉक्टर के जिंदा बचे बेटे ईशान के मुताबिक पापा इंद्रेश उसे एक डॉक्टर बनाना चाहते थे और उसे हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दिया करते थे। उस रात का जिक्र करते हुए बेटे ने बताया कि वह मम्मी और पापा की बातचीत के बीच में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया करता था।
पापा के साथ खेला लूडो
ईशान के मुताबिक पापा उस शाम को हॉस्पिटल से घर आए तथा रोजाना की तरह आराम करने के बाद सब लोगों ने एक साथ खाना खाया और फिर आपने उसके साथ लूडो खेला जिसमें पापा जीत गए और वह लूडो के गेम में हार गया। लूडो के गेम में जीतने के बावजूद भी डॉक्टर इंद्रेश जिंदगी का खेल हार गए।
पापा ने उसे बताया कि यह इंजेक्शन है और यह आज सभी को लगाने हैं। अपने पापा के ऊपर उसे पूरा भरोसा था। पापा से पहला इंजेक्शन खुद को लगाने के लिए कहने के बाद डॉ शर्मा की आंखें भी डबडबा गईं, लेकिन हमेशा अपने ईशान के हीरो रहे पापा ने दुनिया छोड़ने से पहले अपने बेटे की ये इच्छा भी पूरी की। इस बार पहला मौका था, जब उन्होंने अपने लाडले से धोखा किया।
खुद और पत्नी को लगाया जहर का इंजेक्शन
ईशान को पापा से शिकायत थी कि उन्होंने खुद और मां को जहरीला इंजेक्शन लगाया और उसे सामान्य इंजेक्शन लगाकर इस दुनिया में छोड़ गए। वर्षा शर्मा के कैंसर से लड़ते-लड़ते डॉ. इंद्रेश शर्मा का परिवार बीते 12 साल में आर्थिक और मानसिक रूप से भले ही बुरी तरह टूट चुका था लेकिन पारिवारिक रूप से जबरदस्त जुड़ाव था। वर्षा का इलाज वह स्वयं कर रहे थे। पूरा परिवार एक-दूसरे इतना प्यार करता था कि मौत भी उन्हें अलग करने की नहीं सोच सकती थी।
घर का माहौल सामान्य था। यही वजह रही कि कोई हकीकत को भांप भी नहीं पाया। डॉ शर्मा ने इंजेक्शन बेटे को लगा दिया। कुछ देर बाद ईशान सो गया। इसके बाद वह सुबह उठा। ईशान के मुताबिक जब वह सुबह उठा तो उसने सबसे पहले मम्मी को उठाया जब उसकी मम्मी वर्षा नहीं होती तब उसने उनकी पल्स चेक की तो पल्स मशीन में सीधी लाइन आ रही थी और सांस भी नहीं चल रही थी। जिसके बाद उसने अपने पापा को चेक किया उनकी आंखें खुली हुई थी लेकिन सांस नहीं चल रही थी। इसके बाद उसने अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को फोन कर और जानकारी देकर बताया।
डॉक्टर बनाना चाहते थे पिता
जिंदा बचे बेटे ने बताया कि उसने अपने पापा से जिद कर कहा था कि आप और मम्मी जहां भी जाओगे मुझे आपके साथ ही चलना है। पापा उसको सदा मोटिवेट करते थे कि हमेशा जरूरतमंदों की मदद करनी है और वह भी अपने पापा की तरह ही डॉक्टर बनना चाहता था। मूल रूप से देहरादून निवासी डॉ. इंद्रेश शर्मा करीब 10-12 साल पहले पत्नी वर्षा, बेटी देवांशी और बेटे ईशान के साथ काशीपुर आ गए थे।
वर्तमान में वह सैनिक कॉलोनी में परिवार के साथ किराये के मकान में रह रहे थे और चामुंडा मंदिर के पास स्थित एक निजी अस्पताल में इमरजेंसी मेडिकल अफसर थे। पत्नी वर्षा पिछले काफी समय से कैंसर से पीड़ित थीं। वह लगातार पत्नी का इलाज करा रहे थे, लेकिन कोई फायदा तो नहीं हुआ बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई।
लॉकडाउन ने खत्म किया सबकुछ
बताया जा रहा है कि पत्नी के इलाज के लिए उन्होंने कई लोगों से कर्ज भी लिया था। वहीं पत्नी को वह अपना ब्लड भी देने लगे। काफी बार ब्लड देने के कारण वह भी बीमार रहने लगे। बची हुई कसर 2020 में आई कोरोना वैश्विक महामारी ने पूरी कर दी। आर्थिक स्थिति ऐसी बिगड़ी कि वर्ष 2020 में उन्होंने इकलौते बेटे ईशान की पढ़ाई भी छुड़वा दी। आर्थिक स्थिति से बेटा भी वाकिफ था, इसलिये उसने भी कभी स्कूल जाने की जिद नहीं की। धीरे-धीरे डॉक्टर शर्मा तनाव में रहने लगे और उन्होंने यह आत्मघाती कदम उठा लिया। परिवार की इस मजबूरी के चलते इकलौता बेटा ईशान चार साल से बिना पढ़ाई के घर बैठा है।
बेटी देवांशी ने बताया कि इसी साल जनवरी में उसकी शादी जसपुर निवासी मयंक से हुई थी। उसके मुताबिक कल सुबह उसने मम्मी के नंबर पर फोन किया तो मम्मी दुनिया छोड़कर जा चुकी थी इसलिए उन्होंने फोन नहीं उठाया तो उसने अपने भाई ईशान के नंबर पर फोन किया और कहा कि वह आज आने वाली है और सबको बता देना। थोड़ी देर बाद ईशान ने फोन कर घटना के बारे में बताया। घटना का जिक्र सुनते ही देवांशी के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह रोती बिलखती अपने मायके आ पहुंची। उसने बताया कि मम्मी 10 से 11 वर्षों से कैंसर और किडनी की बीमारी से ग्रसित थी। देवांशी के मुताबिक आर्थिक तंगी के चलते महंगा इलाज न करा पाने की वजह से उनके पापा उनकी मम्मी का इलाज स्वयं ही कर रहे थे।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."