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November 23, 2024 3:25 am

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नटवरलाल का खेला आपका दिमाग घुमा देगा ; बाघ संरक्षित 200 करोड़ रुपये की सरकारी भूमि ही बेच डाली

18 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

बहराइच: मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवर लाल तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनके पदचिह्नों पर चलने वालों की कमी नहीं है। ऐसे ही कुछ नटवर लालों ने कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से वर्षों पहले बाघ संरक्षित क्षेत्र की भूमि को अपने नाम कराकर बेच दिया, जिसकी कीमत 200 करोड़ आंकी गई है। जिसको निरस्त कराने का मुकदमा वन विभाग लड़ता रहा है। वन विभाग और राजस्व विभाग ने जब दस्तावेजों को खंगाला तो पता चला कि इसमें काफी फर्जीवाड़ा हुआ है। वर्षों बाद जब मुकदमे ने तेज़ी पकड़ी तो आरोपी अपना दावा वापस करने की बात करने लगे, लेकिन वन विभाग पीछे नहीं हटा और उसने नए सिरे से 14/4/23 को 8 लोगों के खिलाफ आपराधिक मामलों के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा दी है।

1965 में मुन्ना सब्बरवाल ने चकबन्दी कागजों में हेरफेर करके हरिहरपुर, लालपुर, परगना धर्मापुर और वन रेंज निशानगाढ़ा की 16 एकड़ की भूमि अपने नाम करा ली और दूसरे दिन ही उसको बजरिए बैनामा बेच भी दिया। यह जमीन भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 20 एवं वन जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 18 व 38वी से तहत बाघ संरक्षित क्षेत्र का कोर क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट है। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 20 के तहत 342 एकड़ जमीन नोटिफाइड है, जिसमें बहुमूल्य राजकीय संपत्ति के रूप में लगे वर्षों पुराने वृक्षों, जिसकी कीमत 200 करोड़ बताई जा रही है और कुल जमीन लगभग 83 बीघा है।

8 लोगों पर दर्ज हुआ मुकदमा

विक्रेताओं द्वारा जाली और फर्जी एवं कूट रचित तरीके से बहुमूल्य संपत्ति सरकारी कागजों में हेराफेरी कर हासिल की गई थी। इसके सम्बन्ध में उच्च न्यायालय में वाद विचाराधीन है, लेकिन मुकदमों के अत्यधिक भार के कारण मामले का निस्तारण नहीं हो पाया था, लेकिन जब कतर्नियाघाट नए प्रभागीय वनाधिकारी आकाशदीप बधावन आए तो उन्होंने इस मुकदमे को समझने की कोशिश की और इस पूरे प्रकरण को ज़िला अधिकारी डॉ. दिनेश चन्द्र के सामने भी पेश किया। जब जिलाधिकारी ने हस्तक्षेप किया और दस्तावेजों को खंगाला गया तो कमियां सामने आईं, जिसके तहत 8 लोंगों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ।

इन पर दर्ज हुआ मुकदमा

इस मामले में निशानगाढ़ा रेंज के वन दारोगा इसरार हुसैन ने सुजौली थाने में राजा राम सेठी पुत्र राम आसरे सेठी, निवासी कोठी नम्बर-1, एमपी रोड, लखनऊ, रमेश सेठी पुत्र राम आसरे सेठी, पता तदैव, राजेन्द्र सेठी पता तदैव, सर्वजीत सिंह पुत्र बलवेंद्र सिंह, निवासी-धानपुर, राम पुर, हरभजन कौर पत्नि बलवेंद्र सिंह निवासी तदैव, राम आसरे सेठी निवासी, सुजौली बहराइच, अलवीना पुत्री सरदार अली, निवासी-कूचा चालान दिल्ली और अमित चौहान पुत्र अशोक कुमार, निवासी-पीतमपुरा, सरस्वती विहार, नार्थ दिल्ली इन सभी आठो लोंगों के नाम फर्जी तरीके से वन भूमि में दर्ज कराए गए। लिहाज़ा सभी के खिलाफ 420 सहित आधा दर्जन धाराओं में उपरोक्त वन दारोगा द्वारा मुकदमा दर्ज कराया गया है।

उच्च न्यायालय में अपर महाधिवक्ता आरके सिंह और स्टैंडिंग काउंसिल कृष्णा सिंह वन विभाग की तरफ से अपना पक्ष रख रहे हैं। ज्ञात हो कि इन्हीं दोनों लोगों ने अभी कुछ दिन पहले ऐसे ही एक मामले में लखनऊ वन विभाग को एक मुकदमा जितवाया है, जो भूमि भी लगभग पांच सौ करोड़ की है।

सजा मिले

प्रभागीय वनाधिकारी आकाशदीप बधावन ने बताया कि ज़िला अधिकारी के भरसक प्रयास से यह सफलता सम्भव हो पाई है। उन्होंने यह भी बताया कि आरोपी वन भूमि से अपना दावा छोड़ना चाहते हैं, लेकिन मैं अब चाहता हूं कि सिर्फ उनका नाम न खारिज हो, बल्कि इस कुकृत्य के लिए उन्हें दण्ड भी मिले। उन्होंने कहा कि भूमि या उस पर लगे वृक्षों की कोई कीमत हो ही नहीं सकती। वह अनमोल है, जंगल से हमें जो आक्सीजन का स्तर मिलता है, वह कभी भी पैसों से नहीं तौला जा सकता। खुशी की बात यह कि इस भूमि पर कभी भी आरोपियों का कब्ज़ा नहीं रहा। हमेशा यहां पर कब्ज़ा वन विभाग का ही कब्ज़ा था, इसलिए वॄक्ष फलते-फूलते रहे।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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