मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इन दिनों राजनीतिक चर्चा तीसरे मोर्चे की हो रही है। लोकसभा चुनाव 2024 की आहट के साथ ही राजनीतिक माहौल गर्मा रहा है। सवाल यह है कि यूपी की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को रोकने की कोशिश किस तरह से की जाएगी। लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन हुआ था। इस दौरान सपा और बसपा किसी भी खेमे में नहीं दिखी थी। उस समय चुनाव के बाद भाजपा विरोधी किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनने की बात तब कही गई थी। वर्ष 2019 के बाद 5 सालों में चीजें काफी बदल गई है। सपा और बसपा के रास्ते अलग हो चुके हैं। अखिलेश यादव तीसरे मोर्चे के साथ जाने की बात कर रहे हैं। वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती अपनी अलग ही राजनीतिक हवा बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। इन सबके बीच बिहार की राजनीति से निकलकर केंद्र में अपना दखल बढ़ाने की कोशिश कर रहे नीतीश कुमार दिल्ली में हलचल बढ़ाए हुए हैं। दिल्ली में बढ़ी हलचल लखनऊ तक महसूस की जा रही है। ऐसे में चर्चा यह हो रही है कि अखिलेश और मायावती क्या तीसरे मोर्चे को बना पाने में कामयाब होंगे? अगर हुए तो दोनों तीसरे मोर्चे में कहां खड़े दिखाई देंगे? दरअसल, यूपी में नगर निकाय चुनाव होने वाले हैं। इसमें तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने प्रभाव के आधार पर चुनावी मैदान में उतरने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
अखिलेश यादव कर रहे अलग ही राजनीति
समाजवादी पार्टी अपनी अलग ही राजनीतिक लाइन पकड़ती दिख रही है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पिछले दिनों कई राजनीतिक नेताओं के साथ मुलाकात की है। इसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से लेकर नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक से उनकी मुलाकात हो चुकी है। हालांकि, वे अब तक 2024 के आम चुनाव को लेकर पार्टी की रणनीति को स्पष्ट तौर पर रखते नहीं दिख रहे हैं। अखिलेश ने इतना तो साफ कर दिया है कि वह कांग्रेस के साथ एक बार फिर प्रदेश में गठबंधन में नहीं जा रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि यूपी में तीसरे मोर्चे की सूरत क्या होगी? अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव 2022 के दौरान ममता बनर्जी से मदद ली थी। इसके बाद से वह ममता बनर्जी खेमे में खड़े दिखते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी हुए ममता बनर्जी के साथ खड़े दिखाई दिए। कई मौकों पर वे केंद्रीय राजनीति में मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद शरद पवार, ममता बनर्जी और केसीआर के स्तर पर लिए जाने वाले निर्णयों के साथ जाने की बात कर चुके हैं। लेकिन, यूपी में इसका असर कितना पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प होने वाला है।
मायावती की लाइन भी स्पष्ट नहीं
तीसरे मोर्चे को लेकर मायावती की लाइन भी स्पष्ट नहीं दिख रही है। बसपा सुप्रीमो की ओर से पिछले दिनों तीसरे मोर्चे को लेकर जब सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा कि इसके लीडरशिप पर चर्चा होनी चाहिए। मायावती को तीसरे मोर्चे का लीडर बनाए जाने की पेशकश की गई थी। बसपा हमेशा मायावती को पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करती दिख रही है। इसके जरिए बसपा की प्लानिंग उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते दखल के बीच अपनी राजनीतिक स्थिति को बरकरार रखने की है। बसपा जानती है कि यूपी की राजनीति में जब तक पीएम मोदी के सामने में उस स्तर का चेहरा नहीं रखा जाएगा, तब तक वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाबी नहीं मिलेगी। ऐसे में बसपा तीसरे मोर्चे या यूपीए के साथ जाने को लेकर स्पष्ट तौर पर अपना पक्ष नहीं रख रही है।
नीतीश के नेतृत्व पर भी सवाल
यूपी की पॉलिटिक्स में नीतीश के चेहरे को अधिक तबज्जो मिलती नहीं दिख रही हे। लेकिन, नीतीश कुमार को पटना से दिल्ली की यात्रा करनी है तो यूपी में उन्हें एक्सप्रेसवे पर फर्राटे भरने जैसी यात्रा करनी होगी। इसके लिए अखिलेश यादव या मायावती का साथ तो कम से कम चाहिए। नीतीश कुमार पिछले दिनों कांग्रेस नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। देश में एक महागठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यूपी में उन्हें उस स्तर का रिस्पांस नहीं मिल रहा है। पिछले दिनों अखिलेश यादव ने नीतीश कुमार के गठबंधन बनाने के प्रयासों का जिक्र किया था, लेकिन वे किसी ऐसे गठबंधन का हिस्सा बनने से बचने की कोशिश करते दिख रहे हैं, जहां उन्हें कम सीटों पर चुनावी मैदान में उतरना पड़े।
वर्ष 2017 में कांग्रेस और 2019 में बसपा गठबंधन के कारण प्रदेश के सपा कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष जैसी स्थिति बनी थी। 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अखिलेश इस प्रकार कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे। वहीं, मायावती भी कांग्रेस से दूरी बनाती दिख रही हैं। यूपी में वे अपने अलावा किसी और नेतृत्व को स्वीकार करेंगी, इससे बसपा के नेता सीधे इनकार कर रहे हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस के साथ नीतीश का गठबंधन बनता है तो फिर यूपी में दोनों ही दल यूपीए के हिस्से के रूप में जोर-आजमाइश करते दिखेंगे।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."