कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती ने ऐलान कर दिया कि अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन को वह यूपी नगर निकाय चुनाव में प्रयागराज से मेयर प्रत्याशी के तौर पर उतारने नहीं जा रहीं। मायावती ने साफ कर दिया है कि शाइस्ता परवीन ही नहीं अतीक अहमद के परिवार का कोई दूसरा सदस्य बसपा की तरफ से प्रयागराज में मेयर प्रत्याशी नहीं बनाया जाएगा। हालांकि बसपा सुप्रीमो टिकट भले ही न दे रही हों लेकिन शाइस्ता परवीन अभी भी पार्टी की सदस्य हैं और मायावती का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद ही जो जांच सामने आएगी उसके आधार पर उनकी सदस्यता पर फैसला लिया जाएगा।
दिलचस्प ये रहा कि मायावती ने इस ऐलान से कुछ ही घंटे पहले अपने दो कद्दावर नेताओं राज किशाेर सिंह और उनके भाई बृज किशोर सिंह को अनुशासनहीनता के चलते निष्कासित कर दिया। दरअसल दोनों नेता अयोध्या में महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे के स्वागत में शामिल हुए थे। रविवार को शिंदे, फड़णवीस के साथ ही महाराष्ट्र के मंत्री भी रामलला के दर्शन करने आए हुए थे। बस्ती के बसपा जिलाध्यक्ष जयहिंद गौतम ने लेटर जारी करते हुए राज किशोर सिंह और बृज किशोर सिंह को निष्कासित किए जाने की कार्रवाई की है। बसपा ने अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से दोनों नेताओं के खिलाफ ऐक्शन लिया है। 2019 में दोनों ने सपा छोड़कर कांग्रेस और फिर एक साल बाद बसपा का दामन थाम लिया था।
याद कीजिए एक वो भी दौर था, जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने मछलीशहर से बसपा सांसद रहे उमाकांत यादव को बुलाकर अपने ही बंगले के बाहर से गिरफ्तार करा दिया था। उमाकांत यादव पर आजमगढ़ में एक महिला की जमीन कब्जाने का आरोप लगा था। लोअर कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया। इसके बाद वह फरार हो गए। इसी दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अपने आवास पर उन्हें बुलवाया। जैसे ही उमाकांत यादव बंगले के बाहर पहुंचे यहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
तो शाइस्ता परवीन मामले में मायावती ‘सॉफ्ट’ क्यों नजर आ रही हैं। ऐसा क्यों है कि फरार इनामी होने के बाद भी अभी तक शाइस्ता के खिलाफ बस टिकट काटने का ही फैसला लिया गया है। सदस्यता रद करने की बात पर बहनजी को उसकी गिरफ्तारी का इंतजार क्यों है?
आपको बता दें कुछ समय पहले ही तय हुआ था कि शाइस्ता परवीन प्रयागराज से बसपा की मेयर प्रत्याशी होंगी। लेकिन इसके बाद प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड हो गया, जिसमें माफिया अतीक अहमद, शाइस्ता परवीन, भाई अशरफ, बेटा असद नामजद आरोपी हैं। शाइस्ता केस दर्ज होने के बाद से ही फरार चल रही हैं, उन पर इनाम की धनराशि बढ़ाकर 50 हजार की जा चुकी है। केस दर्ज होने के बाद से ही मायावती से सवाल पूछे जा रहे थे कहा था, “प्रयागराज में राजू पाल की वर्षाे पहले हुई हत्या के मुकदमे का अहम गवाह अधिवक्ता उमेश पाल व उनके गनर की हत्या के मामले में अतीक अहमद के लड़के एवं उनकी पत्नी के ऊपर एफआईआर दर्ज किये जाने की भी सूचना प्रकाशित हुई है।.बीएसपी ने इसका गम्भीरता से संज्ञान लेते हुये यह निर्णय लिया है कि इस मामले की चल रही जांच में, इनके दोषी साबित होते ही फिर शाइस्ता परवीन, पत्नी अतीक अहमद को पार्टी से जरूर निष्कासित कर दिया जायेगा।”
इसके साथ ही मायावती ने ये भी कहा था कि अतीक अहमद समाजवादी पार्टी का ही प्रोडक्ट है, जिस पार्टी से वह एमपी व एमएलए आदि भी रहा है तथा अब राजू पाल की पत्नी भी बीएसपी से सपा में चली गयी है, जिस पार्टी को वह मुख्य दोषी ठहराती थी। अतः इसकी आड़ में कोई भी राजनीति करना ठीक नहीं। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही, यह भी विदित है कि किसी भी अपराध की सजा, बीएसपी द्वारा, उनके परिवार व समाज के किसी भी निर्दाेष व्यक्ति को नहीं दी जाती है, किन्तु यह भी सच है कि पार्टी किसी भी जाति व धर्म के आपराधिक तत्व को बढ़ावा भी नहीं देती है।
आज की प्रेस कांफ्रेंस मायावती ने दूसरा अहम बयान उन्होंने मुसलमानों को लेकर दिया। उन्होंने ने कहा कि भाजपा, आरएसएस पसमांदा मुस्लिम समाज का राग अलाप रहे हैं, जबकि भाजपा सरकार में मुस्लिम उतना ही असुरक्षित महसूस करते हैं, जितना कांग्रेस में करते थे। भाजपा, कांग्रेस, सपा की गलत नीतियों के कारण मुस्लिम और दलित पसमांदा बना हुआ है।
लखनऊ के सत्ता के गलियारे में शाइस्ता परवीन और पसमांदा मुद्दे को जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल 2014 लोकसभा चुनाव में शून्य पर आ खड़े होने के बाद से ही बसपा सुप्रीमो मायावती अपना खोया वोट बैंक वापस हासिल करने की जद्दोजहद कर रही हैं। 2017 में पार्टी का विधानसभा चुनाव में बुरा हाल रहा। इसके बाद 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा ने भले ही 10 सीटें जीतीं लेकिन इस जीत में सपा के साथ गठबंधन का ज्यादा योगदान माना गया। फिर पिछले साल 2022 के विधानसभा चुनाव नतीजों में सिर्फ एक सीट की जीत ने साफ कर दिया कि बसपा अपने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। यही कारण था कि चुनाव नतीजों के बाद मायावती ने सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण पॉलिटिक्स को पीछे छोड़ दिया। क्योंकि बसपा को ब्राह्मण वोट मिला नहीं, मुस्लिम वोटर ने ज्यादातर समाजवादी पार्टी पर विश्वास जताया और पार्टी का आधार माने जाने वाले दलित वोट बैंक भी समय के साथ भाजपा ने सेंध लगा दी है।
पार्टी अब वापस दलित मुस्लिम पॉलिटिक्स पर जोर लगा रही है। इसके अलावा गैर यादव ओबीसी जातियों को जोड़ने पर भी उसका जोर है। पश्चिम यूपी से लेकर पूर्वांचल तक बसपा मुस्लिम वोट बैंक को वापस जोड़ने में लगी हुई है। वह बार-बार मुस्लिम समाज को एहसास कराने कोशिश में हैं कि अगर उनका कोई सबसे बड़ा हितैषी है तो वह सिर्फ बसपा ही है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."