अनिल अनूप के साथ राकेश सूद और दुर्गा प्रसाद शुक्ला की खास रिपोर्ट
पूरी पंजाब पुलिस अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) को तलाश रही है, लेकिन वो पुलिस की पकड़ से बाहर है। कहा जा रहा है कि उसने अपना हुलिया बदल लिया है। तो क्या वो अब नीली पगड़ी में नहीं है। वो नीली पगड़ी जो याद दिलाती थी भिंडरावाले के खौफ का। पंजाब में अमृपाल सिंह के आतंक और उसके अंदाज ने एक नाम सालों बाद फिर सामने ला दिया था और वो था जरनैल सिंह भिंडरावाले का। माना तो ये भी जा रहा है कि अमृतपाल सिंह जानबूझकर भिंडरावाले के अंदाज में नजर आता है ताकि उसे वही पहचान मिल सके जो सालों पहले पंजाब को जलाने वाले भिंडरावाले (Bhindrawale) की थी।
जरनैल सिंह भिंडरावाले की पूरी कहानी
साल 1970 में शुरू हुई थी खालिस्तान की मांग। दरअसल पंजाब में आजादी के बाद से ही काफी असंतोष था। पंजाब में अकाली दल एक बड़ी राजनैतिक पार्टी थी। वो शुरू से पंजाब को अलग राज्य के रूप में मांग कर रहे थे। वही दूसरी तरफ पंजाब में एक गुट ऐसा भी था जो अलग राज्य ना चाहकर खालिस्तान के रूप में भारत से अलग एक देश बनाना चाहता था। यहां तक की सत्तर के दशक में विदेशों में बसे कुछ सिख नेताओं ने खालिस्तान का एलान कर दिया था। विदेशों से उन्होंने खालिस्तान की मुद्रा भी जारी कर दी थी। हालांकि पंजाब की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी अकाली दल इस बात से सहमत नहीं थी और इसलिए ये मामला वहीं थम गया।
1982 में भिंडरावाले ने किया खालिस्तान का समर्थन
करीब 12 साल बाद यानी 1982 में खालिस्तान की मांग की आवाजें देश में भी उठने लगीं। दरअसल ये आवाज उठाई थी भिंडरावाले ने। भिंडरावाले का असली नाम जरनैल सिंह था। जरनैल का जन्म पंजाब के रोडे गांव में 2 जून 1947 को हुआ था। साल 1977 में भिंडरावाले को सिखों की धर्म प्रचार की प्रमुख शाखा दमदमी टकसाल का मुखिया चुना गया। ये पंजाब धर्म की पॉवरफुल पोजिशन मानी जाती है। दमदमी टकसाल का चीफ बनने के बाद ही जरनैल सिंह को भिंडरावाले नाम मिला।
भिंडरावाले को था सिखों का बड़ा समर्थन
उस दौर में पंजाब में सिख दो समुदायों में बटे हुए थे एक टकसाल और दूसरे निरंकारी। दोनों गुटों में काफी विरोध था। भिंडरावाले ने एक तरफ अपने संगठन को धार्मिक रूप से मजबूत कर रहा था दूसरी तरफ वो राजनैतिक पार्टी अकाली दल के विरोध में भी खड़ा हो रहा था। अस्सी के दशक के शुरुआती सालों में ही भिंडरावाले सिखों के मजबूत नेता के रूप में अपनी जगह बना ली थी और फिर उसने शुरूआत कर दी थी खालिस्तान की मांग की।
80 के दशक में पंजाब में हुई हिंसक घटनाएं
80 के दशक की शुरुआत में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगीं। पंजाब में भिंडरावाले का प्रभाव बढ़ रहा था। 1980 में भिंडरावाले और उनके समर्थकों पर निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह की हत्या का आरोप लगे। इसके बाद पंजाब केसरी अखबार के मालिक लाला जगत नारायण की हत्या के आरोप भी जरनैल सिंह भिंडरावाले पर लगे। इन दोनों घटनाओं के बाद भिंडरावाले को गिरफ्तार किया गया तो पूरे पंजाब में प्रदर्शन होने लगे। पंजाब में बड़ी संख्या में सिख भिंडरावाले के साथ थे। सरकार को दवाब में उसे छोड़ना पड़ा। बस यहीं से शुरूआत हुई उसके ताकतवर बनने की। भिंडरावाले ने खुलकर खालिस्तान की मांग शुरू कर दी थी।
भिंडरावाले ने गोल्डन टेंपल को बनाया अपना घर
पंजाब में हिंदी भाषी लोगों के ऊपर हमले होने लगे। पंजाब रोडवेज की बस में घुसकर कई हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया। साल 1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजी ए एस अटवाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। ये साफ था कि भिंडरावाले के कहने पर ही पंजाब में ये हिंसक आंदोलन हो रहे थे। भिंडरावाले ने अमृतसर के गोल्डन टेंपल को ही अपना घर बना लिया था। वो सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त से अपने विचार रखता था। पंजाब पूरी तरह से जल रहा था और भिंडरावाले को गिरफ्तार करना नामुकिन होता जा रहा था। भिंडरावाले और उसके समर्थकों ने खालिस्तान के एलान की पूरी तैयारी कर ली थी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार में हुई भिंडरावाले की मौत
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेश ब्लू स्टार लॉन्च किया। जून, 1984 पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया। विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर जाने के आदेश दे दिए गए। पंजाब में लोगों का आना जाना बंद हो गया। मकसद था भिंडरावाले के खालिस्तान के प्लान को रोकना। ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत शुरूआती दिनों में 300 से ज्यादा लोगों की जानें गई। सेना ने गोल्डन टेंपल को चारों तरफ से घेर लिया। गोली-बारी शुरू हुई। भिंडरावाले अपने समर्थकों के साथ अंदर था। दो दिन बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरावाले की मौत हो गई और खालिस्तान की मांग वहीं खत्म हो गई।
सिखों के बड़े नेता के रूप में उभरा था भिंडरावाले
ऑपरेशन ब्लू स्टार को उस वक्त सफल माना गया। हालांकि बाद में ब्लू स्टार ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कत्ल की वजह बना। दरअसल सिखों में ब्लू स्टार को लेकर खासी नाराजगी थी। भिंडरावाले उस वक्त सिखों का बड़ा नेता बनकर उभरा था और अब वही कोशिश कर रहा है अमृतपाल सिंह।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."