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November 22, 2024 11:56 am

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लाइक और क्लिक से शुरू हुई कथित पत्रकारिता ; महान बनने के चक्कर में बुरे फंसे यूट्यूबर “मनीष कश्यप”

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट 

हाल के दिनों में सोशल मीडिया के जरिए समाचार परोसने की प्रवृत्ति बढ़ी है। जिसको देखो, दो चार ग्राफिक्स तैयार कर समाचार प्रस्तुत करने लगता है। फेसबुक पर समाचार चैनलों के अलावा मीडिया को मजाक बनाकर खबर परोसने वालों की बाढ़ सी आ गई है। आजाद मैदान में हर कोई बाजी मार लेना चाहता है। यहां कोई रेगुलेशन नहीं है। व्यूज, क्लिक, लाइक और शेयर की इस दुनिया में सब लोग शहंशाह हैं। जिसको देखो वहीं समाचार दे रहा है। पत्रकारिता और उसके मानदंडों का कोई ख्याल नहीं। बस व्यूज और क्लिक चाहिए। वो भी मिलियन में। इस मिलियन के खेल का मास्टर माइंड रहा मनीष कश्यप। 15 से 16 यूट्यूब चैनल। लाखों में कमाई। मिलियन में व्यूज। क्या बोलना है। किससे बोलना है। कैसे बोलना है। उससे कोई दरकार और सरोकार नहीं। बस वीडियो अपलोड कर देना है। मनीष कश्यप कथित तमिलनाडु हिंसा को लेकर फर्जी वीडियो बनाने के आरोप में कानून के शिकंजे में हैं। कल तक मनीष कश्यप को प्रमोट करने वाले। मनीष के हाथों टी शर्ट और गमछा लेकर फोटो खींचने वाले गायब हैं। ‘सच तक’ यूट्यूब चैनल के जरिए मायानगरी में दस्तक देने पहुंच चुके मनीष कश्यप के कथित समर्थक फिलहाल गायब हैं।

कथित तमिलनाडु हिंसा में फर्जी वीडियो बनाने के आरोप में जेल पहुंच मनीष कश्यप की कहानी में कई टर्न एंड ट्विस्ट हैं। मनीष कश्यप को लेकर बिहार बंद का ऐलान किया गया। भूमिहार एकता मंच के अलावा मनीष कश्यप समर्थकों ने बिहार बंद का आह्वान किया। खबर मिली कि मनीष कश्यप के समर्थन में बिहार बंद का उतना नहीं लेकिन आंशिक असर जरूर देखा गया। मनीष कश्यप के रिश्तेदारों की ओर से मिल रही जानकारी के मुताबिक ये लड़का बचपन से ही शरारती रहा। मनीष कश्यप पश्चिम चंपारण के महनवा डुमरी गाव का रहने वाला है। बूढ़ी गंडक व कोहड़ा नदी से घिरा मनीष का गांव अति-पिछड़ा और मुस्लिम बहुल है। गांव में अच्छे-खासे सवर्ण भी है। गांव और आस-पास का इलाका पूरी तरह बाढ़ ग्रस्त है। आज की तारीख में आने-जाने के लिए पक्की सड़कें बनी हैं। बिजली की सुविधा है।

बचपन में भाग गया था मनीष

मनीष कश्यप के कई दूर के रिश्तेदारों ने सोशल मीडिया पर ये शेयर किया है कि मनीष कश्यप ने बचपन में एक बड़ा कठोर फैसला लिया था। मनीष कश्यप बचपन में अपने घर से कुछ वर्षों के लिए गायब हो गया था। इस दौरान उसका कहीं भी अता-पता नहीं चला था। घरवाले पूरी तरह परेशान रहे थे। उन्होंने मनीष कश्यप की काफी खोजबीन की लेकिन पता नहीं चला। रिश्तेदारों की मानें, तो मनीष कश्यप इन भागे हुए वर्षों में कहां रहा और किसके संपर्क में रहा। किसी को पता नहीं चला। मनीष कश्यप के गायब होने की कहानी बहुत लोगों को पता नहीं है। मनीष कश्यप इस दौरान किसी के संपर्क में नहीं रहता था। बाद के दिनों में वो खुद ही घर लौट कर आ गया। उसके बाद मनीष कश्यप ने विद्यार्थी परिषद का नेतृत्व करते हुए छात्र आंदोलन में सक्रिय हो गया। उसके ऊपर कई मुकदमे हुए और वो पहले भी जेल गया।

परदादा रहे स्वतंत्रता सेनानी

मनीष कश्यप के एक रिश्तेदार ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है कि कश्यप ने कोरोना के दौरान मास्क का वितरण किया। सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता रहा। मनीष के परदादा स्वतंत्रता सेनानी थे। दादा स्व. सागर तिवारी फौजी थे। पिता भी फौजी हैं। मनीष कश्यप के व्यवहार में ही क्रांति की झलक मिलती है। मुखर और किसी गलत चीज का विद्रोह करता रहा है। बचपन में उसने सरस्वती शिशु मंदिर से पढ़ाई की। बाद के दिनों में सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने लगा। रिश्तेदार बताते हैं कि देखते ही देखते सोशल मीडिया पर उसके फॉलोअर बढ़ने लगे। अचानक वो ‘सच तक’ न्यूज आईडी के साथ मार्केट में दिखने लगा। रिश्तेदारों ने ये भी कहा है कि उसकी जल्दीबाजी और सत्ता के खिलाफ बड़बोलापन उसे ले डूबा। रिश्तेदारों ने कहा कि तमिलनाडु कथित हिंसा मामले में फर्जी वीडियो बनाने की बात उसने पुलिस के सामने स्वीकार की है। अब देखना होगा कि उसे क्या सजा मिलती है।

‘बद अच्छा बदनाम बुरा’

रिश्तेदार कहते हैं कि वो कहा गया है न कि उसका उतना नाम हुआ, जो जितना बदनाम हुआ। मनीष कश्यप ने नाम तो कमाया लेकिन पत्रकार नहीं बन पाया। रिश्तेदारों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि वे लोग उसे पत्रकार नहीं मानते। पत्रकार नहीं मानने की कई वजहें हैं। युवाओं को आकर्षित करने की क्षमता पत्रकारिता नहीं कुछ और होती है। वो किसी अलग राह पर चल रहा था। उसकी गिरफ्तारी के बाद कुछ समर्थक हंगामा कर रहे हैं। मनीष जिस रास्ते पर चल रहा था वो रास्ता उसके लिए ठीक नहीं था। मनीष कश्यप को संभलकर बोलना और अपना काम करना चाहिए था।

गिरफ्तार है मनीष कश्यप

मनीष कश्यप का जन्म 9 मार्च, 1991 को बिहार के ज़िला पश्चिम चंपारण में हुआ। मनीष कश्यप का असली नाम त्रिपुरारी कुमार तिवारी है और वो खु़द को ‘सन ऑफ़ बिहार’ कहता है। वो सच तक न्यूज़ नाम से यूट्यूब चैनल चलाता है। न्यूज़ चैनल पर 6.49 मिलियन से ज़्यादा सब्सक्राइबर्स हैं। सरेंडर से पहले भी सच तक न्यूज़ चैनल से दो वीडियोज़ अपलोड किए गए थे। 2020 में बिहार की चनपटिया विधानसभा सीट से कश्यप ने निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था। बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप के खिलापञ बिहार में 14 और तमिलनाडु में 13 केस दर्ज किए गए हैं। आर्थिक अपराध इकाई के बार-बार निर्देश देने के बावजूद कश्यप छिपता फिर रहा था। इसके बाद गुरुवार को वारंट जारी किया गया और पुलिस ने रेड मारना शुरू किया। बिहार पुलिस ने मनीष कश्यप के तीनों बैंक अकाउंट फ़्रीज़ कर दिए हैं। खातों में कुल 42.11 लाख रुपये जमा थे। मनीष कश्यप का ट्विटर अकाउंट ब्लॉक कर दिया गया है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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