Explore

Search
Close this search box.

Search

November 22, 2024 8:07 pm

लेटेस्ट न्यूज़

‘हमका नाहीं जानत हो का बे, चकिया के हैं…’ एक समय में यह डायलॉग खौफ की गवाही थी

16 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

जी हां, माफिया डॉन का अपना एक इलाका होता है। मुंबई का डोंगरी कभी दाऊद इब्राहिम के नाम से जाना जाता था। आज जब उमेश पाल हत्याकांड के चलते प्रयागराज सुर्खियों में है तो अतीक अहमद के चकिया मोहल्ले का जिक्र हो रहा है। कहां है चकिया, कैसा है यह इलाका जहां अतीक अहमद का सिक्का चलता था। मुस्लिम बाहुल्य इस इलाके में एक समय लोग जाने से डरते थे। इसे गलियों का मोहल्ला समझिए। अगर आपको पहले से पता नहीं तो आप अंदर घुसकर भ्रमित हो जाएंगे। अतीक का पुश्तैनी मकान थोड़ी दूर पर कसरिया इलाके में था। यह ग्रामीण क्षेत्र हुआ करता था। बाद में अतीक का कुनबा चकिया में आकर बस गया। बाद में चकिया, करेली, खुल्दाबाद जैसे इलाके अतीक का मोहल्ला कहे जाने लगे। यहां एकतरफा वोटिंग अतीक के लिए होती थी या वही जीतता था जिस पर ‘भाई’ का हाथ होता था। बूथ कैप्चरिंग भी होती तो 2-4 पुलिसवाले गलियों में घुसने से पहले 100 बार सोचते थे।

रौबदार मूछें, सिर पर सफेद गमछा

हां, चकिया के तांगे वाले के लड़के की यही पहचान हुआ करती थी। 1962 में उसका जन्म हुआ। पिता इलाहाबाद की सड़कों पर तांगा चलाते थे। घर की गरीबी देख अतीक के मन में कुछ और महत्वाकांक्षा हिलोरे मारने लगी। वह जल्दी से अमीर बनने और नाम कमाने के सपने देखने लगा। पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता था। 10वीं में फेल हुआ तो रास्ता बदल दिया। उस समय इलाके में चांद बाबा का नाम था। उसके मन में प्रयागराज का नया डॉन बनने की तमन्ना जाग उठी। उसका गैंग बढ़ने लगा। शहर में रंगदारी वसूली जाने लगी। 17 साल की उम्र में ही अतीक पर हत्या का आरोप लगे। चांद बाबा और अतीक के गैंग में झगड़ा शुरू हो चुका था। इलाहाबाद के नए गैंगस्टर का नाम बढ़ रहा था और चर्चा में आ रहा था रेलवे स्टेशन के पास का इलाका चकिया। अगले 10 साल में वह अपराध की दुनिया का दाऊद बन गया। 80 से ज्यादा केस दर्ज हो चुके थे। शहर में उसकी तूती बोलती थी, नाम लखनऊ तक सुना जाता था लेकिन अभी अतीक को कुछ और करना था।

चांद बाबा की चमक छीन जगमगाया अतीक

अतीक को चकिया से निकलकर सत्ता में पहुंचना था। वह समझ रहा था कि पैसे के साथ पावर सियासत से ही मिल सकती है। और 1989 में अतीक ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा। चांद बाबा सामने थे लेकिन जीत हासिल कर माफिया अतीक अब नेताजी बन चुका था। कुछ समय बाद ही बीच बाजार चांद बाबा की हत्या कर दी गई। बताते हैं कि इस हत्याकांड के बाद नेता खुद ही इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने से मना कर देते थे। तीन बार उसने निर्दलीय चुनाव जीता। 1996 में सपा के टिकट पर विधायक बने और फिर क्राइम का ग्राफ बढ़ गया। करोड़ों रुपये जुटाने वाले चकिया के माफिया को महंगी गाड़ियों का शौक था। 2004 में उसने अपना दल के टिकट पर फूलपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा। अपनी परंपरागत सीट उसने भाई अशरफ को दी लेकिन वह हार गया। जीतने वाले बसपा नेता राजू पाल की कुछ ही महीने में हत्या कर दी गई। तब राजू के काफिले पर अतीक के गुर्गों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की थी। आज की पीढ़ी ने वही मंजर पिछले दिनों उमेश पाल हत्याकांड में देखा। 10 दिन पहले ही राजू पाल का मर्डर हुआ था।

गलियां हैं भूलभुलैया

एक बार फिर चकिया चर्चा में आ गया। भूलभुलैया वाला रास्तों से बुलडोजर गुजरा तो अतीक के पतन पर मुहर लग गई। चुन-चुनकर उसके करीबियों पर बुलडोजर चलेगा, एनकाउंटर होंगे… चकिया के इस माफिया को मिट्टी में मिलाने की बात तो खुद सीएम योगी आदित्यनाथ कर चुके हैं। एक समय था जब चकिया के लोग खुद को अतीक से जोड़ते थे। लेकिन आज माहौल बदल चुका है। हिंदू-मुस्लिम सभी वहां रहते हैं और धीरे-धीरे माफिया के प्रभाव से लोग दूर होते गए। ऐसे समय में प्रयागराज के पत्रकार शिवपूजन सिंह याद करते हैं, ‘पूजा पाल का दूसरा चुनाव था। खबर मिली कि चकिया में बूथ कैप्चरिंग हो रही है। तब 2-4 पुलिसवाले इस इलाके में जाने से घबराते थे। प्रशासन हिचक रहा था। ऐसे में पूजा खुद राइफल लेकर बूथ पर पहुंच गईं। गड़बड़ी रुक गई थी।’ ऐसा कई बार हुआ जब चकिया अतीक अहमद के कारण चर्चा में रहता।

आज भी याद है सफेद सूमो

एक दौर था जब अतीक अहमद का काफिला प्रयागराज के किसी चौराहे से गुजरता था तो ट्रैफिक रुक जाता था। जो जहां होता, वहीं से धड़ाधड़ गुजरती सफेद टाटा सूमो देखने लगता। दो दशक पहले का वो सीन आज भी लोगों को याद है। सफेद गाड़ी के काले शीशी से झांकती दो नली लोगों को खौफ से भर देती थी। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि अतीक उस समय जनप्रतिनिधि थे। बाद के वर्षों में लोग खुलकर कहने भी लगे कि बताइए जब दो नली (बंदूक) दिख जाएगी तो आम लोग तो नेताजी के पास जाने से ही घबराएगा। हालांकि जातिगत समीकरणों को साधते हुए ऐसे कैंडिडेट उस समय जीतते आ रहे थे। आज वही अतीक अहमद को एनकाउंटर का डर सता रहा है। उसने प्रयागराज गोलीकांड में गवाह की हत्या के मामले में खुद को साबरमती जेल से शिफ्ट किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है। अतीक अहमद लगातार पांच बार विधायक और एक बार सांसद रहा है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़