जगरनाथ यादव
फाल्गुन की रसीली हवा, प्रेम से ओत फाल्गुनी तान, बूढ़े दिलों में भी यौवना का संचार कर देती थी। सम्बन्धों में विलायक मधुर रिश्ते फाल्गुन के होली में खट्टी मीठी बातों का विलेय, परिवार और समाज के ताने-बाने के विलयन में मिठास भर देना होली की खासियत होती थी।आज अहं और स्वयंमेव के तिरोभाव ने एक ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां रिश्तों के रंग अब आपस में मिलने को तैयार नहीं हैं।जब तक सम्बन्धों के रंग मिले न,तब तक होली के रंग फीके होते हैं।
यौवन की तरूणाई और ढलते उम्र में भी रस घोलती भावना के सम्मिलन का महापर्व होली, अपनत्व में ऊर्जा का संचार कर देती है।
एक जमाना था कि होली पूर्व संध्या पर बुजुर्ग नौजवानों की टोली एक साथ ढोलक की मीठी थाप पर राग की मीठी तान से आह्लादित और उमंगों से सराबोर जन होलिका के साथ, आपसी खटास और रिश्तों की जानी अनजानी गलतियों के गिले शिकवे वह कड़वाहट को दहन कर प्रेम व भाईचारे की गांठ मजबूत कर देते थे। सुबह से ही होली के रंग गुलाल बूढ़े तनों में भी जवानी का संचार कर देते थे। पुरूष व महिलाओं की टोली गली मुहल्ले में रसीले रिश्तों में रंग भर देती थी। क्या वो दिन थे ….?
अब भागमभाग मची ज़िन्दगी और एको अहं दूजो नास्ति,की भावना,कद और कदम की ऊंची नीची खाई, आज रिश्तों के प्रेम रस को निगलने पर आमादा है। रिश्तों को निभाने तक की भी फुर्सत नहीं है किसी जन के पास।हम परिवार और समाज के बन्धनों में होते हुए भी निर्बन्ध हो गए हैं।अब सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ के बंधन ही रह गए हैं। अपनों के बीच रहकर भी अपनों से ताल नहीं है।
वो दिन भी कितने प्यारे थे, वो पल भी कितने न्यारे थे, रिश्ते और प्रेम एक-दुजे पर वाले थे, क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम् हमारे थे। कहां गए वो दिन………..?
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."