दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
रामचरितमानस को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है। एक ओर स्वामी प्रसाद मौर्या लगातार इसको लेकर बयानबाजी कर रहे, तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के कई सवर्ण नेताओं ने उनका विरोध शुरू कर दिया। जिससे नाराज हाईकमान ने गुरुवार को रोली तिवारी और ऋचा सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद से विपक्षी दल सपा पर सवर्ण विरोधी होने का आरोप लगा रहे। वहीं दूसरी ओर सपा की पूर्व नेता पंखुड़ी पाठक का बयान भी इस मुद्दे पर सामने आया है। उन्होंने रोली तिवारी के निष्कासन पर लगातार 6 ट्वीट किए।
पंखुड़ी ने ट्विटर पर लिखा कि 2017 में सपा के चुनाव हारने के बाद मेरे ऊपर जातिवादी हमले शुरू हो गए थे। 2018 में मैंने इसी कारण से सामाजवादी पार्टी छोड़ी और बताया भी कि ये पार्टी ब्राह्मण और महिला विरोधी है। तब सपा के कई ‘ सवर्ण’ नेताओं ने अपने बॉस के सामने नंबर बनाने के लिए मेरा विरोध किया या शांत रहे। मुझ पर जातिवादी और महिला विरोधी हमले करने वाली लंपटों की सेना में कुछ महिलाएं भी शामिल थीं, जो मेरे पार्टी से जाने को अपने लिए अवसर के रूप में देखती थीं। उसमें ये महिला (रोली) भी शामिल थीं, जिसे उस समय शायद अपने ‘ब्राह्मण’ होने का एहसास नहीं था और ये भी जातिवादी ट्रोलिंग करती थी।
2017 में सपा के चुनाव हारने के बाद मेरे ऊपर जातिवादी हमले शुरू हो गए थे।
2018 में मैंने इसी कारण से सामाजवादी पार्टी छोड़ी और बताया भी कि यह पार्टी ब्राह्मण व महिला विरोधी है।
तब सपा के कई ' सवर्ण' नेताओं ने अपने बॉस के सामने नंबर बनाने के लिए मेरा विरोध किया या शांत रहे।
(1/6) pic.twitter.com/xpXmQldkpC— Pankhuri Pathak पंखुड़ी पाठक پنکھڑی (@pankhuripathak) February 17, 2023
पंखुड़ी ने आगे लिखा कि मेरे पार्टी छोड़ते ही सपा के ब्राह्मण और महिला विरोधी होने पर चर्चा होने लगी तो आनन-फानन में इस महिला को प्रवक्ता बना दिया गया। उसी की एक खबर इन्होंने तब शेयर करी थी जिसमें लिखा है कि ‘पंखुड़ी पाठक का विरोध करने वाली रोली तिवारी को बड़ी जिम्मेदारी’। अन्य गालीबाज महिलाओं को भी सपा में पद दिए गए।
उनके मुताबिक सपा में कुछ ‘सवर्ण’ नेता हैं जिनकी विचारधारा सिर्फ अवसरवाद है। वो अपने समाज के लिए गाली सुनकर भी सत्ता के लोभ में सपा में बने रहते हैं जब कि सब जानते हैं कि सपा की राजनीति सिर्फ सवर्ण विरोध (और अब हिंदू धर्म विरोध) पर आधारित है जो कि एक बार फिर साबित हो चुका है। गुरुवार को पार्टी से निकाली गईं दो में से एक महिला भी इसी सवर्ण विरोधी राजनीति का हिस्सा थीं। प्रवक्ता पद से हटाए जाने के बाद वह चर्चा में आने के लिए ‘ब्राह्मणों’ की राजनीति करने लगी लेकिन इनका इतिहास देखेंगे तो सब स्पष्ट हो जाएगा। सपा में अन्य सवर्ण नेताओं का भी यही हश्र होना तय है।
‘कर्मों का फल इसी जन्म में’
पंखुड़ी ने अंत में लिखा कि बहुत दिनों से लोग मुझे टैग कर रहे थे पर मैंने कुछ बोलना उचित नहीं समझा, लेकिन आज किसी ने यह स्क्रीनशॉट भेजा तो लगा कि लोगों को सच जानने का अधिकार है। एक बार पूरा पढ़िएगा और समझिएगा । अपने कर्मों का फल इसी जीवन में मिलता है। इससे ज्यादा इस विषय पर और कुछ नहीं कहूंगी।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."