मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
लखनऊ: जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव 2024 करीब आते जा रहे हैं। पार्टियां अपनी सियासी तलवारों को धार देने में जुट गई हैं। यूपी की प्रमुख विपक्षी समाजवादी पार्टी भी तेजी से काम करती दिख रही है। हर चुनाव से पहले कुछ नया प्रयोग करने वाले पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इस बार भी एक और नया राजनीतिक प्रयोग करते दिख रहे हैं। समाजवादी पार्टी को इस रणनीति का लाभ मिलेगा या नहीं ये तो चुनाव परिणाम ही बताएगा। लेकिन अखिलेश तेजी से अपनी रणनीति पर काम करते दिख रहे हैं। इस नए प्रयोग में वह मुसलमानों को अपना मानकर चल रहे हैं, जिसने 2022 विधानसभा चुनाव में करीब-करीब एकमुश्त सपोर्ट किया। वहीं दूसरी तरफ वह पार्टी का बेस वोट बैंक यादवों के साथ पूरा पिछड़ा वोटबैंक और दलितों को भी जोड़ने पर पूरा जोर लगा रहे हैं। इस जाति की सियासत में अखिलेश साॅफ्ट हिंदुत्व की छवि भी खड़ी करने की कोशिश में दिख रहे हैं। आइए समझते हैं कैसे?
पिछले कुछ दिनों की प्रमुख घटनाओं पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी की स्थिति स्पष्ट होने में मदद मिलेगी। शुरुआत स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरित मानस पर दिए गए बयान से। पहले ये बयान बिहार के मंत्री की तरफ से आया बाद में स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसे आगे बढ़ा दिया। स्वामी का बयान आया तो शुरू में ऐसा लगा कि सपा शायद इसके लिए तैयार नहीं थी। फौरन पार्टी की तरफ से इस बयान से किनारा करने की कोशिश हुई। लेकिन इसके बाद अखिलेश यादव का ‘शूद्र’ बयान आया, जिसके बाद साफ हो गया कि ये पार्टी की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।
हालांकि समाजवादी पार्टी में ही एक धड़ा स्वामी के बयान से नाराज दिखा और विरोध शुरू हो गया लेकिन इस धड़े की आवाज ज्यादा तेज नहीं सुनाई दी। अखिलेश यादव जातीय जनगणना का मुद्दा उठा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ वह काशी दौरे पर गए और यहां उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन किया। अखिलेश यादव के इस कदम को लखनऊ के सियासी गलियारों में ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ से जोड़कर देखा गया। माना गया कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा इस समय सबसे ज्यादा मजबूत है लिहाजा अखिलेश इस रास्ते विरोधियों को कोई मौका नहीं देना चाहते।
इसके बाद अखिलेश यादव ने गाजीपुर से लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान का आगाज भी किया। बता दें यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में गाजीपुर जिले की सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी गठबंधन ने कब्जा जमाया है। हालांकि यहां की दो सीटें सुभासपा ने भी जीती हैं, जो अब सपा के साथ नहीं है। बहरहाल, गाजीपुर से अखिलेश ने चुनाव अभियान का आगाज करते हुए संदेश देने की कोशिश की कि पूर्वांचल में वह अपनी पूरी ताकत झोंकेंगे। बता दें पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में अखिलेश की सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया था और सिर्फ 5 सीटें ही जीत सकी थी। उसमें से भी आजमगढ़ और रामपुर की सीट सपा गंवा चुकी है।
बहरहाल, इस बीच लखनऊ के ताज होटल में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और अयोध्या में हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास के बीच हाथापाई सामने आ गई। मामले में दोनों पक्षों की तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। लेकिन अखिलेश यादव या समाजवादी पार्टी की तरफ से इस मुद्दे पर सीधे-सीधे कुछ नहीं कहा गया। साफ लगा कि अखिलेश यादव स्वामी के साथ तो हैं लेकिन पार्टी और खुद किसी विवाद में पड़ने से बच रहे हैं।
अब इसी क्रम में अखिलेश यादव के दो और एक्शन चर्चा में आ गए हैं। दरअसल समाजवादी पार्टी ने अपनी दो प्रमुख सवर्ण महिला नेताओं रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह को समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया है। खास बात ये थी कि ये दोनों ही नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयानों का विरोध कर रही थीं। इन दोनों ही नेताओं ने सपा पर आरोप लगाया कि बिना उनसे कोई जवाब मांगे एकतरफा कार्रवाई कर दी गई।
वहीं गुरुवार को ही अखिलेश यादव का एक और निर्देश भी सामने आया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देशानुसार सभी कार्यकर्ताओं, पार्टी नेताओं, पदाधिकारियों तथा टी.वी. पैनलिस्ट को यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि समाजवादी पार्टी डॉ लोहिया के आदर्शों से प्रेरणा लेकर लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद में आस्था रखती है।
समाजवादी पार्टी का उद्देश्य जनसामान्य को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर पार्टी की नीति और कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाना है। सत्तारूढ़ दल लगातार बुनियादी मुद्दों से भटकाने का काम करता है। हमें उनके बहकावे में नहीं आना है। इसलिए सभी को साम्प्रदायिक मुद्दों पर बहस से परहेज करना चाहिए। हमें राजनीतिक चर्चा और बुनियादी सवालों पर ही अपना पूरा ध्यान रखना है। धार्मिक मुद्दा संवेदनशील मुद्दा है। हमें अनायास उससे सम्बन्धित बहसों में नहीं उलझना चाहिए।
ये घटनाक्रम साफ इशारा कर रहे हैं कि अखिलेश यादव जाति की राजनीति करना चाहते हैं, यादवों के साथ पिछड़ी जातियों और दलितों को भी साथ लाना चाहते हैं लेकिन हाथ जलाना नहीं चाहते। वह खुद को आस्थावान भी दिखाकर बीजेपी की हिंदुत्व पिच के बगल में खड़े होकर ‘सॉफ्ट पिच’ पर खेल सजाना चाहते हैं। आंकड़ों के अनुसार यूपी में ओबीसी वोट बैंक के साथ दलितों, मुस्लिमों को जोड़ दें तो सीधे-सीधे आंकड़ा 80 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। जाहिर है समाजवादी पार्टी को अपनी अपर कास्ट महिला नेताओं रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह को बाहर का रास्ता दिखाने में कोई झिझक नहीं हुई।
Author: samachar
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