अंजनी कुमार त्रिपाठी और दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
सूर्यदेव की लालिमा फूटते ही हजारों की तादाद में एक साथ अर्घ्य दे रहे व्रती मन को मोह रहे थे। इसके साथ खुशियों की जबरदस्त आतिशबाजी ने माहौल को खुशनुमना बना दिया। व्रतियों ने प्रसाद का पारण किया तो उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने एवं प्रसाद पाने की लोगों में होड़ मच गई। इसके साथ ही चहुंओर से उठ रहे छठी मैया के जयकारे से जिला गुंजायमान हो उठा।
भोर से ही व्रती महिलाएं परिवार के सदस्यों के साथ नदी घाटों पर पहुंचीं। नदी के जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया और विधिवत पूजन-अर्चन किया। इसी के साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत का समापन हुआ। इस दौरान प्रयागराज के संगम समेत गंगा और यमुना के घाटों पर हजारों की संख्या में भीड़ जुटी।
यूं तो नदी, तालाब, पोखर किनारे का सन्नाटा आधी रात बाद से ही छंटने लगा था। लेकिन तड़के चार बजे घरों से महिलाओं, युवतियों, पुरुषों, बच्चों का रेला गीत गाते निकला तो माहौल भक्तिमय हो उठा। एक स्वर में छठी मैया के गीत ‘कांच ही बांस क बहंगिया बहंगी लचकत जाए, हाेईं ना बलम जी कहरिया, बहंगी घाटे पहुंचाए… गीत कानों को प्रिय लग रहे थे।
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लोक पर्व से जुड़े इस तरह के गीतों ने ग्रामीण क्षेत्रों को भक्ति के रंग में डुबो दिया। व्रति पानी में खड़े होकर कुछ इस तरह इत्मीनान से सूर्यदेव के उगने का इंतजार कर रहे थे, जैसे उन्हें कोई जल्दबाजी ही न हो। जबकि घाट किनारे ठंड भी कम सितम नहीं ढा रहा था, लेकिन व्रतियों के चट्टानी इरादों के सामने उसकी एक न चली। इसके साथ ही इंतजार खत्म हुआ और सूर्यदेव की लालिमा नजर आते ही व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर सुख-समृद्धि की कामना की। छठ मइया के गीत से पूजा घाट गूंज रहे थे।
पुत्र, परिवार और कुल की कुशलता की कामना : त्याग, विश्वास, सुख व समृद्धि के महापर्व डाला छठ पर नदियों के तट पर सोमवार की भोर में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर गंगा-यमुना व संगम तट पर निर्जला व्रत रखने वाली हजारों महिलाएं परिवार के सदस्यों के साथ पहुंचीं। घाट पर स्वयं के चिह्नित स्थान पर गन्ने के मंडप बनाकर विधि-विधान से पूजन किया। सुहागिन महिलाओं ने एक-दूसरे को सौभाग्य के प्रतीक सिंदूर लगाया। व्रती महिलाओं ने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया और पुत्र, परिवार और कुल की कुशलता के लिए कामना की। वहीं कल रविवार की शाम को अस्त होते सूर्य को भी अर्घ्य दिया था।
छठ मइया के गीतों से गूंज उठे गंगा-यमुना घाट : सूर्य को अर्घ्य देने के लिए प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम समेत दारागंज, मीरापुर, कीडगंज, गऊघाट, बलुआघाट, अरैल, फाफामऊ, झूंसी, रसूलाबाद, तेलियरगंज के गंगा और यमुना घाटों पर व्रती महिलाओं और उनके परिवार के सदस्यों की भीड़ जुटी। छठ मइया के गीतों से गंगा-यमुना तट गूंज उठे। हाथ में गन्ना और प्रसाद की थाली थी। जबकि पुरुष सिर पर बांस की टोकरी में सूप, फल, सब्जी व पूजन की अन्य सामग्री लेकर साथ चल रहे थे। घाट पहुंचने पर व्रती महिलाएं स्वयं की बनाई वेदी के पास बैठकर उसके चारों ओर गन्ने का मंडप तैयार किया। मंडप के अंदर बैठकर छठ मइया का विधिवत पूजन किया। घाट पर ढोल-नगाड़े की थाप पर युवाओं के साथ बुजुर्ग भी थिरके। बच्चों ने पटाखे जलाकर खुशी मनाई।
छठ मैया के गीत गाए, भांगड़े और ढोलक की थाप पर महिलाओं ने नृत्य किया। दीपक व झालर की रोशनी से जगमगा उठे। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जल व्रत पूरा हुआ। घर जाकर गुड़ की चाय पी। बुद्धि विहार, कपूर कंपनी,रेलवे कालोनी, केजीके कालेज में कृत्रिम घाटों पर छठ पूजा हुई। घरों में उल्लास छाया रहा।
ताजमहल के पास दिया अर्घ्य
रात का अंधेरा छाया ही हुआ था कि यमुना के घाटाें पर हलचल शुरू होने लगीं। छठ पूजा में सोमवार को सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सूर्याेदय से पहले ही लोग नदी किनारे जुटने लगे थे। सुबह करीब 5.30 बजे सूर्य की किरण नजर आने पर अर्घ्य देकर 36 घंटे लंबे उपवास को सम्पन्न किया गया। ताजमहल के पीछे दशहरा घाट से लेकर हाथी घाट और कैलाश घाट तक पर भीड़ थी।
ठेकुआ खाकर व्रत का किया पारण शुक्रवार को नहाय-खाय से छठ पर्व का आरंभ हुआ था। खरना पर शनिवार को डाला छठ का 36 घंटे के निर्जला व्रत शुरू हुआ था। कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर सोमवार की सुबह डाला छठ व्रत का व्रती महिलाओं ने पारण ठेकुआ खाकर किया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."