दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
बाराबंकी । जब किसी की पहचान ही उसके अल्फाज बन जाएं तो परिश्रम का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। ऐसे ही युवाओं के चेहते शायर हैं अजहर इकबाल। हिंदी और उर्दू भाषा के बेहतर तालमेल से शायरी कहने वाले अजहर जितनी सरलता से अपनी बात को लोगों तक पहुंचाते हैं, उतना ही सादा उनका व्यक्तित्व है।
मुजफ्फरनगर (बुढ़ाना) से देवा मेला के मुशायरे में हिस्सा लेने आए अजहर इकबाल को जानने में उनकी कुछ पंक्तियां आपकी मदद करेंगी।
‘गाली को प्रणाम समझना पड़ता है, मधुशाला को धाम समझना पड़ता है,
आधुनिक कहलाने की अंधी जिद में, रावण को भी राम समझना पड़ता है।’
अपने आप आते हैं श्रीराम और श्रीकृष्ण
वह अपनी बात राम और कृष्ण से शुरू करते हैं। कहते हैं, वह यह कोशिश नहीं करते कि श्रीराम या श्रीकृष्ण को शायरी में लाया जाए। यह इस मुल्क की मिट्टी की खासियत है कि यह चरित्र हमारी जिंदगी के करीब हैं, इनकी कहानियां हमें अपनी महसूस होती हैं। यह सब शायरी में अपने आप आ जाते हैं। उनका मानना है कि हिंदुस्तान में जो भाईचारा है, यह उन बुजुर्गों की देन है, जिन्होंने ये मोहब्बतें फैलाईं।
देवा के मुशायरे में उर्दू के बड़े-बड़े नाम आए हैं, जिनके सामने हमारी हैसियत कुछ भी नहीं है। ओटीटी प्लेटफार्म के बावजूद मुशायरों की अहमियत के बारे में उन्होंने कहा कि यह हमारी मिट्टी की सौंधेपन की वजह से है। शायरी का अंदाज आज भी मुशायरा है। नई पीढ़ी का साहित्य के प्रति रुझान के बारे में कहा कि दिल्ली में रेख़्ता जैसे फेस्टिवल्स में दो लाख से ज्यादा लोग आते हैं, जिससे यह साबित होता है कि हमारा युवा साहित्य की तरफ आ रहा है। हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे पूर्वजों की देन को संभालने के लिए तैयार है, जो हम विरासत में मिली है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."