दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
कानपुर, विजय दशमी का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता और बुराई रूपी रावण का पुतला दहन करके खुशियां मनाते हैं। इन खुशियों के पीछे न जाने कितनों के परिवार का पेट भी पलता है। वह चाहे मेला में लगाने वाले खिलौना, खान-पान और अन्य सामान के दुकानदार हो या फिर झूला-चर्खी से बच्चों को रिझाने वाले हों।
इनके सबके अलावा भी कुछ ऐसे भी हैं जिनसे भले ही लोग अनजान होते हैं लेकिन उनकी कारीगरी पर खूब तालियां बजाते हैं। ये वो हुनरमंद कारीगर हैं, जो आकर्षक, अद्भुत और बड़े से बड़ा रावण का पुतला बनाते हैं। इन्हीं में से एक कानपुर के मो. इकबाल हैं, जिनकी चार पीढ़ियां इस काम से जुड़ी हैं और उनका परिवार पल रहा है।
चार पीढ़ियों से बना रहे रावण का पुतला
रेल बाजार रामलीला मैदान में पिछले 45 वर्षों से मो. इकबाल का परिवार रह रहा है। वह बताते हैं कि उनका परिवार चार पीढ़ियों से पुतले बनाकर जीवन यापन कर रहा है। परिवार में रहमतउल्लाह से पुतले बनाने का हुनर मिला, इसके बाद बाबा नूर मोहम्मद और फिर उनके बाद पिता मो. सलीम ने पुतले बनाने की परंपरा आगे बढ़ाए रखा और अब वह भी इस हुनर से परिवार का पेट पाल रहे हैं।
सलीम बताते हैं कि एक समय शहर की तकरीबन सभी रामलीला में परिवार के बनाए पुतले दहन के लिए जाते थे। अब उनकी विरासत को बेटे मो. इकबाल बढ़ा रहे हैं। उन्होंने बताया कि शहर के अलावा फतेहपुर, उन्नाव, हमीरपुर, झींझक, सिकंदरा, जालौन, उरई, बिल्हौर सहित कई जिलों से पुतले बनाने के आर्डर मिलते हैं।
90 से एक लाख रुपये तक बिकते पुतले
इकबाल बताते हैं कि मंदिरों के लिए कलाकृति और दशहरा के पुतलों के आर्डर इस वर्ष मिले हैं। 30 से 40 फुट तक के पुतलों के लिए 25 से 30 हजार और 80 से 90 फुट के पुतलों के लिए 90 से एक लाख रुपये तक मिलते हैं। ऐसे आठ से 10 पुतले बनाने से पूरे परिवार का साल भर गुजर-बसर हो जाता है।
रावण का पुतला देता है रोटी
मो. इकबाल बताते हैं कि रावण का पुतला ही दस दिन के काम में साल भर के लिए परिवार को रोटी देता है। कोरोना काल में जब दशहरा मेला नहीं हुए तो परिवार के लिए रोटी के लाले हो गए थे। अब एक बार फिर पुतलों ने सहारा दिया है और बड़े पुतलों के आर्डर ज्यादा मिले। पूरे परिवार के साथ सहयोगियों को लगाया और आर्डर पूरे किए। परिवार में चाचा मो. कल्लू, शकील, इमरान और गड्डू भी पुतले बनाने में मदद करते हैं।
Author: samachar
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