टिक्कू आपचे की रिपोर्ट
इस साल दिग्गज एक्ट्रेस आशा पारेख को ‘दादा साहब फाल्के’ अवॉर्ड से नवाजा जाएगा। इससे पहले भी साल 1992 में उन्हें फिल्मों में बेहतरीन अमिनय करने के लिए 1992 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया जा चुका है। एक्ट्रेस को ये अवॉर्ड 30 सितंबर को दिया जाएगा। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने इस अवॉर्ड की घोषणा की है।
आशा पारेख को हिंदी फिल्मों के इतिहास में सबसे प्रभावशाली एक्ट्रेस में से एक माना जाता है। पारेख ने 1960 और 1970 के दशक में अपने करियर की ऊंचाईयों को छुआ। लेकिन उन्होंने अपने करियर की शुरुआत महज 10 साल की उम्र में की थी। उन्होंने साल 1952 में फिल्म ‘मां’में काम किया था। फिल्म निर्माता बिमल रॉय ने उन्हें कास्ट किया था।
इसके बाद उन्हें कई फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। फिर कुछ फिल्में करने के बाद उन्होंने शिक्षा पूरी करने के लिए एक ब्रेक लिया और साल 1959 लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्म ‘दिल देके देखो’ में मुख्य अभिनेत्री के रूप में वापसी की, जिसमें शम्मी कपूर भी थे।
आशा और हुसैन ने एक साथ कई हिट फिल्में दीं, जिनमें ‘जब प्यार किसी से होता है’ (1961), ‘फिर वही दिल लाया हूं’ (1963), ‘तीसरी मंजिल’ (1966), ‘बहारों के सपने’ (1967), ‘प्यार का मौसम’ (1969), और ‘कारवां’ (1971) शामिल हैं। इसके अलावा आशा पारेख को राज खोसला की ‘दो बदन’ (1966), ‘चिराग’ (1969), और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ (1978) के लिए जाना जाता है। इसके बाद उन्होंने शक्ति सामंत की फिल्म’कटी पतंग’ में काम किया, जिससे बड़े पर्दे पर उनकी छवि में बदलाव आया और उन्हें गंभीर और दुखी किरदार वाले रोल मिलने लगे।
आशा पारेख ने गुजराती, पंजाबी और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है। एक्ट्रेस ने टेलीविजन में भी अपना हाथ आजमाया और अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की। उन्होंने गुजराती धारावाहिक ज्योति (1990) का निर्देशन किया और पलाश के फूल, बाजे पायल, कोरा कागज़ और दाल में काला जैसे शो का निर्माण किया।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान है। आशा पारेख से पहले राज कपूर, यश चोपड़ा, लता मंगेशकर, मृणाल सेन, अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना को इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। रजनीकांत को भी ये अवॉर्ड दिया गया था।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."