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23 February 2025 7:59 pm

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4 साल का “सम्‍भव” 17 महीने से पिता की ‘लाश’ से जी उठने की ‘आस’ कर रहा था.. 

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

कानपुर। पापा को रोज सुबह देखते थे। उनके पास भी जाते थे। उनकी स्किन ब्लैक हो गई थी पर वह किसी बात का जवाब ही नहीं देते थे। दादी कहती थी कि वह जल्दी अच्छे हो जाएंगे, फिर घुम्मी-घुम्मी जाएंगे। विमलेश कुमार का चार वर्षीय बेटा सम्भव कुछ इस तरह से यादों को संजोये है। मासूम को तो इस बात का भान भी नहीं था कि जिससे वह अपने मन की बात कह रहा है, वह अब कभी नहीं सुन पाएगा।

विमलेश का अंतिम संस्कार शुक्रवार रात को ही करा दिया गया था। शनिवार को घर पर पूजा-पाठ चल रहा था। इस बीच घर की सीढ़ियों से चढ़ते-उतरते सम्भव दीवार की आड़ से उस तखत को बार-बार देख रहा था, जिस पर उसके पिता ने 17 महीने का लम्बा समय गुजार दिया था। सम्भव वैसे तो बात करने से कतरा रहा था पर किसी तरह थोड़ी-बहुत बात की। उसने बताया कि पापा को कई बार इंग्लिश पोयम सुनाई। हिन्दी की कविता सुनाता हूं मगर पापा किसी बात का जवाब ही नहीं देते। मैंने पापा को कई बार बोला भी कि जल्दी ठीक हो जाओ मगर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 

शव के साथ बच्चे गुजार रहे थे जीवन 

विमलेश के पिता रामऔतार के तीन बेटों के परिवार के साथ एक ही मकान में रहते हैं। इनमें रामऔतार की पत्नी रामदुलारी के अलावा बड़ा बेटा सुनील कुमार, उसकी पत्नी माया, बेटी हिमांशी, बेटी कृति और बेटा पार्थ हैं। हिमांशी एनडी कॉलेज में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है। कृति ब्राइट एंजेल स्कूल छपेड़ा पुलिया में कक्षा सात में पढ़ रही है तो पार्थ लोअर केजी का छात्र है। रामऔतार का दूसरा बेटा दिनेश कुमार, पत्नी अर्चना और बेटे ट्रम्प के साथ रहता है। ट्रम्प वीरेन्द्र स्वरूप स्कूल शारदा नगर में लोअर केजी का छात्र है।

इनके साथ ही विमलेश की पत्नी मिताली, 18 महीने की बेटी दृष्टि और सम्भव रहते हैं। सम्भव वीरेन्द्र स्वरूप स्कूल, शारदा नगर में लोअर केजी में पढ़ता है। ये सभी लोग 17 माह से शव के साथ रह रहे थे। बच्चे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी गुजार रहे थे। सभी बच्चे अपने पापा-ताऊ को देखकर निकलते थे और लौटकर देखते थे। बीच-बीच में कुछ समय शव के साथ गुजारते भी थे। रामदुलारी तो लगातार विमलेश की सेवा में लगी रहती थीं। रविवार को सभी की छुट्टी रहती थी। उस दिन पूरा परिवार विमलेश के सामने ज्यादातर समय बिताता था। उससे बात करने का प्रयास किया जाता था।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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