दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
ये बेटियां बोल-सुन नहीं सकतीं, लेकिन संकेतों की भाषा को आत्मसात कर कथक के जरिए प्रतिभा की चमक पूरे देश में बिखेर दी। संगीत और सुर-ताल सुने बिना शास्त्रीय नृत्य मुश्किल था, लेकिन गुरु मां द्वारा दी गई सांकेतिक भाषा की समझ से हुनरमंद होकर इन्होंने सबको चौंका दिया।
ये बेटियां हैं बालश्री से पुरस्कृत निताशा खान और शिवानी कनौजिया।
कानपुर बिठूर के ज्योति बधिर विद्यालय में प्रशिक्षण के बाद विविध मंचों पर ये कला का लोहा मनवा रही हैं। साथ ही अपने जैसी बेटियों को इस विद्या में निपुण भी बना रही हैं।
कथक सम्राट बिरजू महाराज की शिष्या वंदना देवराय ने बताया कि वर्ष 1990 से बिठूर में संचालित विद्यालय में निताशा और शिवानी की तरह ही शिक्षा हासिल करने वाले बच्चों को पढ़ाई के साथ शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि फूलबाग की निताशा और बर्रा की शिवानी की कथक में रुचि देखते हुए उन्हें नियमित रूप से प्रशिक्षण दिया गया।
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इसकी बदौलत निताशा और शिवानी को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से बालश्री पुरस्कार से नवाजा गया। सुनने और बोलने में असमर्थ बेटियों ने अपनी काबिलियत से ऐसा शोर मचाया, जिसकी गूंज अब देशभर में सुनाई दे रही है।
गुरु मां से बेटियों ने सीखा कथक : कथक गुरु वंदना देवराय ने बताया कि बचपन से बोलने और सुनने की क्षमता नहीं होने के चलते इन बेटियों को संकेत की भाषा से कथक सिखाया गया। ऐसे बच्चों में सीखने की क्षमता अन्य बच्चों से अधिक होती है।
इन्हें एक बार कथक करके दिखाने और फिर हर थाप पर अंगुली के इशारों और हथेली की गतिविधियों के जरिये निर्देश देकर निपुण किया। उन्होंने बताया कि मंच पर आयोजन के समय वह संकेत देती हैं और बेटियां कथक में धमाल मचाती हैं।
पढ़ाई के साथ कथक की मदद से शिवानी और निताशा शास्त्रीय नृत्य में आइआइटी, आइएमए, दिल्ली, मुंबई, मंगलोर के साथ दर्जनों स्थानों पर हुए कार्यक्रम में कला से लोगों को मंत्रमुग्ध कर चुकी हैं। शहर की इन बेटियों को कई विशेष सम्मान से नवाजा जा चुका है।
Author: samachar
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