पवन सिंह की रिपोर्ट
लखनऊ। गरीब बच्चों की फीस माफ। उन्हें कॉपी-किताबें और ड्रेस मुफ्त। उन्हें मलिन बस्तियों से स्कूल तक लाने और घर छोड़ने जाने का जिम्मा भी स्कूल का। बच्चों के बैग में लंच बॉक्स न मिले तो उन्हें दोपहर का भोजन भी स्कूल कराता है। जब निजी स्कूल आरटीई के प्रवेश लेने से कतराते हों, सरकारी स्कूलों के मिड-डे-मील में घपले हो रहे हों, यह स्कूल मिसाल जैसा है। यह उन्नाव का केएसएम जूनियर हाईस्कूल है, जहां गुदडियों में छिपे लाल तराशने की कोशिश हो रही है।
राहगीर रुक कर देखते हैं बच्चों की कतार
शेखपुर के इस स्कूल ने यूपी बोर्ड से मान्यता ली है। बहुत कम फीस वाले इस स्कूल में 403 बच्चे पढ़ रहे हैं। इनमें से 43 छात्रों से फीस नहीं ली जाती। यह पटरी दुकानदारों, फेरी वालों, ठेले-खोमचे-रिक्शे वालों के बच्चे हैं। सुबह सात बजे और दोपहर करीब डेढ़ बजे शेखपुर में सड़क के किनारे बच्चों की लंबी कतार लगती है। ट्रैफिक रुक जाता है। राहगीर बच्चों की कतार देखते हैं। स्कूल के प्रबंधक प्रशांत पटनायक शिक्षकों के साथ इन बच्चों को लेकर निकलते हैं। करीब दो किमी पैदल चलकर उन्हें स्कूल लाते हैं और छोड़ने जाते हैं। स्कूल के 23 शिक्षक और प्रशांत की पत्नी अम्बुजा हर काम में उनका हाथ बंटाती हैं।
शांतिकुंज से प्रेरणा से मिलती है ऊर्जा
प्रशांत बताते हैं, ‘मैं उड़ीसा का हूं। 1983 में शांतिकुंज हरिद्वार से जुड़ा। 1987 में उन्नाव की अंबुजा से शादी हुई। वह दयालबाग यूनिर्विसटी में कंप्यूटर प्रोग्रामर थीं। हम दोनों शांतिकुंज में सेवा कर रहे थे। अंबुजा के पिता काफी वृद्ध हो गए तो हम दोनों उनकी देखरेख के लिए सन् 2000 में उन्नाव आ गए। शेखपुर में जमीन खरीदकर यह स्कूल बनाया।
शांतिकुंज में रहकर ‘सेवा’ जीवन का मूलमंत्र बन गई थी, वही ऊर्जा देती है। इन बच्चों में कौन आगे क्या बनेगा, कौन जानता है।
गरीब बच्चे अनपढ़ रह जाएं तो यह पूरी मानवता की क्षति है। इन बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए जो भी संभव है, हम करने की कोशिश कर रहे हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."