अरमान अली की रिपोर्ट
देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है और स्वतंत्रता संग्राम में उन लोगों के बलिदान को याद कर रहा है जो इसका हिस्सा बने थे। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अमृत महोत्सव की धूम मची हुई है। वहीं स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर एक बड़ी खबर सामने आई है। 38 साल पहले ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला (बैच नंबर- 4164584) का पार्थिव शरीर एक बंकर में शनिवार (13 अगस्त) को पाया गया। बीते 38 सालों से उनकी पत्नी और उनकी बेटियों को उनके पार्थिव शरीर का इंतजार था। अब उनका शव 38 सालों के लंबे इंतजार के बाद उनके परिजनों के सुपुर्द किया जाएगा।
अब न सिर्फ उनके परिवार को बल्कि उनकी यूनिट के कई अन्य दिग्गज और रिश्तेदार इस बहादुर जवान को दिल को अंतिम विदाई देने के लिए तैयार हैं। उनकी श्रद्धांजलि को लेकर हल्द्वानी में एक बड़ी सभा के आयोजन की उम्मीद है क्योंकि उनके पार्थिव शरीर को पहले वहां लाया जाएगा। उनकी बेटियां जो उस हादसे के वक्त इतनी छोटी थीं कि शायद उन्हें याद भी न हो कि उस समय क्या हुआ था। जब चंद्रशेखर के साथ ये हादसा हुआ था तब उनकी बड़ी बेटी आठ साल की और छोटी बेटी चार साल की थी।
29 मई 1984 को हुआ था हादसा
लांस नायक चंद्रशेखर भारतीय फौज की उस टीम का हिस्सा थे जिसे प्वाइंट 5965 पर कब्जा करने का काम दिया गया था। ये इस वजह से भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इस पर पाकिस्तानी फौज की भी नजरें टिकी थीं। भारतीय सेना ने इसके पहले इस क्षेत्र को खाली किया था। इस पर कब्जा करने के लिए लांस नायक चंद्रशेखर को 19 कुमाऊं रेजिमेंट की टीम के साथ तत्काल प्रभाव से भेजा गया। ऑपरेशन मेघदूत के तहत सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए यह पहली कार्रवाई थी जो 29 मई 1984 को हुई थी।
बर्फीले तूफान में फंस गए थे 19 जवान
ऑपरेशन मेघदूत के दौरान भारतीय सेना का ये दल एक बर्फीले तूफान में फंस गया। इस हादसे में 19 जवान दब गए थे जिनमें से 14 जवानों का शव बरामद कर लिया गया था लेकिन पांच जवान लापता हो गए थे। 13 अगस्त को सियाचिन में 16,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर एक सैनिक का कंकाल मिला। जब यहां आस पास और नजरें दौड़ाई गईं तो अवशेषों के साथ सेना के नंबर वाली एक डिस्क भी मिली जिससे लांस नायक चंद्रशेखर की पहचान करने में मदद मिली।
Author: samachar
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