ज़ीशान मेहदी की रिपोर्ट
जिस कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी से मुलायम सिंह यादव ने हमेशा दूरियां बना कर रखीं, उनका हाथ थामने वाले अखिलेश का साथ अब क्षेत्रीय दल भी छोड रहे हैं। राष्टीय लोक दल की तरह हर सियासी दल से गठबंधन कर चुके अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव में आखिर किस सियासी पार्टी का हाथ थामेंगे? यह बड़ा सवाल है। खुद खांटी समाजवादी इस यक्ष प्रश्न का जवाब तलाशने में जुटे हुए हैं।
आखिर वह कौन सी ऐसी वजह है कि गठबंधन करने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव खत्म होते ही अखिलेश से मोह भंग हो जाता है? 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राष्टीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को पूर्ण बहुमत की सरकार की बागडोर पकड़ाई थी। पांच साल तक कई बार मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को समय-समय पर चेताया भी था कि वे जनता के बीच रहें। लेकिन अखिलेश ने उत्तर प्रदेश का हवाई सफर शुरू किया और वे जमीन से कटते चले गए। जिसकी वजह से महज दो साल बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
इस हार के बाद मुलायम सिंह यादव के परिवार में आपसी रार शुरू हुई। जिसमें कभी शिवपाल सिंह यादव ने अमर सिंह के साथ दिल्ली में मुलायम सिंह यादव के घर में अखिलेश यादव को पार्टी से निकालने का पत्र जारी किया। तो कभी समाजवादी पार्टी के लखनऊ स्थित प्रदेश कार्यालय में मुख्यमंत्री रहते हुए शिवपाल सिंह यादव के हाथ से माइक छीन कर अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के सामने अपना दुखड़ा रोया। उन्हें तब यह तक कहना पड़ा कि उनकी सरकार के खिलाफ उनके अपने ही साजिश रच रहे हैं। परिवार से भरोसा उठने के बाद अखिलेश यादव ने बाहरियों की मदद स्वीकार की। जिसका बड़ा खामियाजा अखिलेश को लगातार मिल रही हार की शक्ल में चुकाना पड़ा।
जनता के बीच समाजवादी पार्टी की पकड़ का सही अर्थ समझ कर अखिलेश ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन थामा। उस वक्त अखिलेश और राहुल गांधी, दोनों को यह लगा कि वे आपस में मिल कर उत्तर प्रदेश में बड़ा उलटफेर कर देंगे। लेकिन उनकी ये सोच दिवास्वप्न ही साबित हुई और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की पूर्ण बहुमत की सरकार बन गई। आंकड़ा तीन सौ के पार पहुंच गया।
सपा अध्यक्ष के लगातार गठबंधन प्रयोग
कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन का परिणाम देखने के बाद अखिलेश यादव का राहुल गांधी से मोह भंग हो गया और सिर्फ दो साल बाद अखिलेश ने वह किया जिसे सियासी इतिहास की सबसे अप्रत्याशित घटना माना जाता है। समाजवादी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी घुर विरोधी बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया। इस गठबंधन के बारे में अखिलेश ने दलील दी कि ये बुआ-बबुआ का गठबंधन है। जो उत्तर प्रदेश में नया इतिहास लिखेगा। अखिलेश को लगता था कि बसपा के साथ वे उत्तर प्रदेश में अपना सियासी परचम लहरा सकेंगे।
लेकिन उनका ये हसीन ख्वाब कन्नौज में बसपा सुप्रीमो मायावती का डिम्पल यादव का पैर छूने के बाद भी मुकम्मल न हो सका। लोकसभा चुनाव खत्म होते ही बुआ-बबुआ की जोड़ी हमेशा के लिए अलग हो गई। इन दो दलों के साथ सियासी तलाक लेने के बाद अखिलेश ने छोटे क्षत्रपों को जोड़ कर कुछ नया करने की कोशिश की। उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों को जोड़कर मजबूत गठबंधन बनाया। लेकिन फिर उन्हें मुंह की खानी पड़ी। जिसकी वजह से महान दल ने सपा से नाता तोड़ा। सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर भी अखिलेश से अलग हो गए। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अब अखिलेश किसका हाथ थामेंगे? या कौन है जो 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव से गठबंधन कर उनकी नैया पार लगाएगा। यहां ये याद रखने की जरूरत है कि राष्ट्रीय लोक दल ने 25 साल में 9 सियासी दलों के साथ गठबंधन किया है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि कहीं रालोद के नक्शे कदम पर तो अखिलेश यादव का सियासी सफर नहीं चल निकला है?
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."