Explore

Search
Close this search box.

Search

19 January 2025 12:53 am

लेटेस्ट न्यूज़

महाराष्ट्र उद्धव का इस्तीफा : “चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये, दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए”, वीडियो देखें ?

38 पाठकों ने अब तक पढा

टिक्कू आपचे की रिपोर्ट 

महाराष्ट्र में एमवीए गठबंधन की सरकार जा चुकी है। उद्धव सीएम पद से इस्तीफा दे चुके हैं। उद्धव लाख कोशिशों को बाद भी शिवसेना के बागियों को अपने पाले में नहीं कर पाए और बहुमत खोता देख खुद इस्तीफा दे दिए। ठाकरे के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा झटका है। हाल के कई फैसलों के दौरान उद्धव अपने पिता बाला साहेब की छाया से निकलकर एक अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अब उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा है।

उद्धव के इस्तीफे पर एक टीबी डिबेट के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने तंज कसा। उन्होंने कहा कि चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए। उन्होंने शिवसेना नेता किशोर तिवारी से कहा कि आपके साथ विचारधारा की वजह से थे शिवसैनिक, वो किसी बाप की बपौती नहीं है।

फोटोग्राफी में ग्रेजुएट उद्धव के हाथ से सत्ता तो गई ही है, साथ ही पिता द्वारा स्थापित शिवसेना पर पकड़ कमजोर हुई है। पार्टी पूरी तरह से टूट चुकी है। ज्यादातर विधायक उनका साथ छोड़ चुके हैं। हालांकि जिस रास्ते पर उद्धव निकले थे, उससे ऐसा लगता है कि एक दिन ये होना ही था। बालासाहेब की सोच से अलग उद्धव न सिर्फ सीएम बने बल्कि अपने बेटे आदित्य को भी मंत्री बनाया। बाला साहेब खुद सत्ता से दूर रहते थे, लेकिन पार्टी पर पूरी पकड़ उनकी ही रहती थी, लेकिन अब उद्धव खुद सत्ता में थे।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद जब शिवसेना और बीजेपी के बीच सीएम कुर्सी को लेकर विवाद हुआ तो उद्धव, कांग्रेस और एनसीपी के साथ चले गए। उनके इस फैसले से आम शिवसैनिक भी नाराज दिखे। पार्टी कार्यकर्ता मातोश्री से दूर होने लगे, इसी बीच कोविड और एक सर्जरी के कारण भी उद्धव अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से दूर रहे। जिससे वो पार्टी से दूर होते रहे।

बागी नेता एकनाथ शिंदे ने इन्हीं की आवाज बनने का दावा करते हुए कहा- “हमने कभी उद्धवजी का अनादर नहीं किया। हम बालासाहेब के सैनिक हैं। हम चाहते थे कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी से अपना गठबंधन तोड़ दे। हमारी लड़ाई बालासाहेब के हिंदुत्व के लिए है।”

उद्धव ठाकरे शुरुआत में राजनीति में आना नहीं चाहते थे, फोटोग्राफी में उनकी दिलचस्पी थी, लेकिन 1990 के दशक में उन्होंने धीर-धीरे राजनीति में कदम बढाए। तब तक उनके चचेरे भाई राज ठाकरे बालासाहेब के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे और बालासाहेब के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर देखे जा रहे थे।

हालांकि बालासाहेब ने भतीजे की जगह पर अपने बेटे उद्धव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 2002 में महाबलेश्वर सम्मेलन में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उद्धव की नियुक्ति की गई। राज ठाकरे नाराज हुए लेकिन पार्टी के साथ बने रहे, हालांकि 2005 में वो शिवसेना से अलग हुए और मनसे बना लिया। उधर उद्धव पिता की छवि से अलग सौम्य व्यक्तिव अपनाए रखे, जिसने उन्हें शिवसेना के आक्रमक कैडर से दूर कर दिया।

इस बीच उद्धव ने कई झटकों का सामना किया। जिनमें वरिष्ठ नेता नारायण राणे और राज ठाकरे को बाहर निकलना शामिल था। 2012 में बालासाहेब की मृत्यु के बाद, वह शिवसेना को एकजुट रखने में कामयाब रहे साथ ही शिवसेना, मनसे से काफी आगे रही। इसके अलावा भाजपा के साथ रहते हुए उसे भी आइना दिखाते रहे।

एक वरिष्ठ भाजपा पदाधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए स्वीकार किया- “बालसाहेब के निधन के बाद, कई लोगों ने सोचा कि क्या उद्धव पार्टी को एक साथ रखने में सक्षम होंगे, लेकिन उद्धव इसमें सफल रहे। यह स्पष्ट है कि भाजपा को धोखा देने का उनका फैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया, क्योंकि यह हिंदुत्व से समझौता करने जैसा था, जो कि उनका मुख्य एजेंडा है।”

समर्थकों का मानना है कि इसमें दोष केवल उद्धव का नहीं है। गोपीनाथ मुंडे-प्रमोद महाजन के निधन के बाद से भाजपा का चरित्र बदल गया है, खासकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी के उदय के बाद। 2014 के विधानसभा चुनावों में, पहली बार सीट बंटवारे को लेकर विवाद हुआ और दोनों के रास्ते अलग हो गए। चुनाव के बाद, उद्धव ने नए भाजपा स्टार और सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ हाथ तो मिलाया, लेकिन संबंध कभी भी समान नहीं थे। कुछ लोगों का मानना ​​है कि उद्धव के बड़े बेटे आदित्य और उनकी पत्नी रश्मि ने ही इस राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पैदा किया था। दूसरे बेटे तेजस को वन्य जीवन और पर्यावरण के मुद्दों में अधिक रुचि है और वो राजनीति से दूर ही रहते हैं।

इस साल की शुरुआत में, पार्टी की एक बैठक में, उद्धव ने कहा था कि उनके पास अलग होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। उन्होंने कहा, ‘हमने भाजपा का तहे दिल से समर्थन किया, ताकि वे अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकें। समझ यह थी कि वे राष्ट्रीय स्तर पर जाएंगे जबकि हम महाराष्ट्र में नेतृत्व करेंगे, लेकिन हमारे साथ विश्वासघात किया गया और हमारे घर में हमें नष्ट करने का प्रयास किया गया। इसलिए हमें पलटवार करना पड़ा।”

उद्धव ने भाजपा पर अपने सहयोगियों को राजनीतिक सुविधा के अनुसार डंप करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘भाजपा का मतलब हिंदुत्व नहीं है। मैं अपनी इस टिप्पणी पर कायम हूं कि शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन में 25 साल बर्बाद किए।

उद्धव आखिरी तक बागियों को अपने पाले में करने की कोशिश करते रहे। कभी प्यार से तो कभी धमका कर। अपनी पिछली कैबिनेट बैठक में, उद्धव ने कहा- “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुझे मेरे ही लोगों ने धोखा दिया है।” इस्तीफे के बाद उद्धव ने कहा- “मुझे मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने का कोई अफसोस नहीं है… मैंने जो किया, मैंने मराठी लोगों और हिंदुत्व के लिए किया… राज्य के लोगों ने मुझ पर अपना प्यार जताया है। पूरे देश में दंगे हुए और महाराष्ट्र अपवाद रहा। मैं अपने मुस्लिम भाइयों को भी सुनने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं”।

अब शिवसेना में इस टूट के लिए एनसीपी को बागी गुट विलेन बना रहे हैं। हालांकि, सहयोगी अब भी उद्धव के साथ दिख रहे हैं। एनसीपी नेता जयंत पाटिल कहते हैं- “हमारे संबंध सौहार्दपूर्ण थे, एक-दूसरे के लिए परस्पर सम्मान था। वह कभी भी उच्चस्तरीय नहीं थे।” राकांपा नेता और सांसद सुप्रिया सुले ने उन्हें “एक सज्जन राजनीतिज्ञ” के रूप में वर्णित किया है, जिन्होंने “आम आदमी की चिंताओं पर ध्यान केंद्रित किया और कोविड महामारी को प्रशंसनीय रूप से संभाला”। कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री बालासाहेब थोराट कहते हैं- “उद्धव ने हमेशा सहयोगियों और कैबिनेट सहयोगियों के साथ बहुत सम्मान के साथ व्यवहार किया।”

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़