दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
बहराइच। समाज की रूढ़िवादिता से ऊपर उठकर बेटी ने समाज को एहसास करा दिया कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता। महसी तहसील के एक गांव में इकलौती बेटी ने न सिर्फ पिता की अंतिम शवयात्रा में कंधा लगाया बल्कि मुखाग्नि देकर बेटा होने का फर्ज निभाया। अंतिम संस्कार की सारी रस्में भी निभाईं। यह नज़ारा देख हर किसी की आंखें नम हो गईं।
मुखाग्नि देने के बाद आकाश को निहारते रुंधे गले से फफकते हुए महसी गांव निवासी मृतक 57 वर्षीय राकेश श्रीवास्तव की इकलौती बेटी शैली ने कहा-पापा मैं आपके सपनों को साकार करूंगी, आप जहां भी रहना वहीं से देखना कि मैं आपकी सोंच से भी बड़ा कर दिखाऊंगी, आपका नाम रोशन करुंगी, आपकी उम्मीदों पर जीते जी पानी नहीं फिरने दूंगी। इस दृश्य को देख लोग सिहर उठे।
राकेश श्रीवास्तव का लखनऊ में चले 15 दिन के इलाज के बाद बुधवार को निधन हो गया। राकेश महसी के स्वामी विवेकानंद इंटर कॉलेज में शिक्षण कार्य कर आजीविका चलाते थे। इनके परिवार में इकलौती बेटी 18 वर्षीय शैली श्रीवास्तव और पत्नी मीरा श्रीवास्तव हैं। राकेश के निधन के बाद बेटा न होने के नाते समाज में सवाल उठने लगे कि अन्तिम संस्कार कौन करेगा। इन सभी सवालों पर विराम लगाते हुए बेटी शैली जब पिता की अर्थी को कंधा देकर निकली तो सभी फफक पड़े। अन्तिम पड़ाव पर पहुंच कर बेटी ने छलकती आंखों संग पिता को मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज निभाया और बेटियों के लिए एक मिसाल बन गई।
अब बेटी के कंधों पर मां को संभालने की जिम्मेदारी
पति की मौत के बाद पत्नी मीरा श्रीवास्तव के जीवन में बेटी को पढ़ाने की चुनौती आन पड़ी है। वहीं बेटी शैली श्रीवास्तव के कंधों पर मां को संभालने व पिता के सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी भी कम नहीं है। बेटी शैली डी फार्मा का कोर्स करने के बाद बीएससी प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही है। राकेश श्रीवास्तव अपनी इकलौती बेटी को डॉक्टर बनाना चाहते थे। जिससे बेटी समाज सेवा कर उनका नाम रोशन करे, लेकिन निष्ठुर नियति को कुछ और ही मंजूर था। जिससे आंखों में बेटी को कुछ बड़ा बनाने का सपना पाले असमय ही विदा ले ली। (प्रदर्शित चित्र सांकेतिक है)
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."