अरमान अली की रिपोर्ट
श्रीनगर। हम तो अमन-चैन में विश्वास रख एक-दूसरे के साथ चलते हैं, पर न जाने क्यों शांति के रखवालों को ही निशाना बनाया जा रहा है। यह जुल्म है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। सोचा था आज नहीं, तो कल एक ऐसे समाज का सपना साकार होगा, जिमसें नफरत के लिए कोई जगह नहीं होगी, लेकिन अब सहा नहीं जाता। रूंधे गले से जब कश्मीर मेंं बसे हिंदुओं ने दर्द बयां किया, तो आंख भर आई।
पिछले एक महीने में दस कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतारना और हिंदुओं को प्रताडित करना, लग रहा है मानों कश्मीर फाइल्स की कहानी अब अपने अंतिम चरण में है, जिसका दृश्य बहुत ही डरावना है। घाटी से हिंदुओं को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ गया है। स्वर्ग कहलाए जाने वाली कश्मीर घाटी में माहौल भयावह है और लगता है कि नब्बे का दशक वापस आ गया हो।
अनंतनाग के मट्टन जिले की तस्वीरें बेहद भावुक हैं, जिसमें कर्मचारी अपना समान समेट कर पलायन कर रहे हैं। दहशतगर्दों ने ऐसा आतंक मचा रखा है कि हिंदू हर पल डर के साये में जी रहे हैं कि पता नहीं अगले एक मिनट में क्या होगा, कहां से गोली चलेगी और परिवार का कौन सा सदस्य निशाना बनेगा। टारगेट किलिंग के चलते बडगांव से अब तक तीस परिवार पलायन कर चुके हैं। दहशतर्ग ज्यादातर कश्मीरी पंडितों, सरकारी कर्मचारियों और मजदूरों को निशाना बना रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है, जन्नत में अब खून की होली खेली जा रही है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."